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साय की नियुक्ति से मजबूत हुए रमन

पहले नेता प्रतिपक्ष और अब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, दोनों नियुक्तियों में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह की चली
चुनौती भारीः राज्य भाजपा में अपने विरोधियों पर भारी पड़े डॉ. रमन सिंह और विष्‍णुदेव साय

 

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने विष्णुदेव साय को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनवाकर पार्टी के भीतर अपनी मजबूत पकड़ का प्रमाण दे दिया है। इस पद के लिए आदिवासी के साथ सामान्य और अन्य पिछड़े वर्ग के नेताओं के नाम भी चर्चा में आए थे, लेकिन साफ था कि अध्यक्ष तो अनुसूचित जनजाति वर्ग से ही बनाया जाएगा। इसके दो कारण थे, एक तो भाजपा ने अन्य पिछड़ा वर्ग के धरमलाल कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बना दिया था, दूसरा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अनुसूचित जनजाति वर्ग से हैं। ऐसे में उसकी तोड़ के लिए आदिवासी नेता को ही राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाना भाजपा की मजबूरी थी। भाजपा 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए आदिवासी वोट पर पकड़ चाहती है। इस कारण भी आदिवासी नेतृत्व जरूरी है। आदिवासी वर्ग से अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविचार नेताम का नाम था। राज्यसभा सांसद नेताम तेजतर्रार माने जाते हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुकाबले के लिए उन्हें फिट माना जा रहा था, लेकिन डॉ. रमन सिंह से पटरी नहीं बैठने की वजह से वे दौड़ से बाहर हो गए।

रायगढ़ लोकसभा सीट से चार बार सांसद रहे विष्णुदेव साय 2006 से 2010 और फिर 2014 में करीब आठ महीने के लिए प्रदेश अध्यक्ष रहे। वे दोनों बार तब अध्यक्ष बने जब राज्य में भाजपा की सरकार थी। अब पार्टी सत्ता से बाहर होने के साथ बुरे दौर से भी गुजर रही है। 90 सीटों वाली विधानसभा में पार्टी के मात्र 14 विधायक हैं, किसी नगर निगम में उसका महापौर भी नहीं है। गिनी-चुनी जिला पंचायतों में ही उसके अध्यक्ष हैं। लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के कारण जरूर पार्टी के नौ सांसद चुन लिए गए थे। विष्णुदेव साय केंद्र में राज्यमंत्री थे, फिर भी उन्हें 2019 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ाया गया। माना गया कि वे सीट नहीं निकाल पाएंगे। साय के पिछले कार्यकाल में लोकसभा और विधानसभा में पार्टी की जीत का दारोमदार सरकार पर था, उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि ज्यादा नहीं थी। साय की नियुक्ति से पार्टी का एक धड़ा नाराज है और सोशल मीडिया में उनके खिलाफ बातें भी चल रही हैं। एक कार्यकर्ता ने साय के अध्यक्ष बनने पर मुख्यमंत्री बघेल को बधाई देते हुए लिखा, 'भाजपा ने आपकी राह आसान कर दी।'

साय की नियुक्ति पर बृजमोहन अग्रवाल और प्रेमप्रकाश पांडे जैसे कुछ नेताओं ने आपत्ति भी की। डॉ. रमन सिंह के विरोधी कहे जाने वाले इन नेताओं के विरोध के कारण साय की नियुक्ति की घोषणा में विलंब हुआ, लेकिन हाइकमान ने विष्णुदेव साय के नाम पर आखिरकार मुहर लगा दी। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक भी रमन सिंह की पसंद हैं। उन्होंने ही कौशिक को छत्तीसगढ़ भाजपा का अध्यक्ष बनवाया था। कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनाने का भी बृजमोहन समर्थकों ने विरोध किया था। तब नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में बृजमोहन अग्रवाल भी थे। बृजमोहन भाजपा के जमीनी नेता हैं, लेकिन 2000 में भाजपा दफ्तर में मारपीट की घटना और फिर निलंबन से वे पार्टी में पीछे चले गए। अब उन पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मित्रता निभाने का आरोप लग रहा है।   

डॉ. रमन सिंह पार्टी के कद्दावर नेता हैं। उन्होंने 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के मुकाबले खड़े होकर 2003 में राज्य में भाजपा की सरकार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2008 और 2013 में उनके चेहरे के बूते यहां पार्टी की सरकार बनी, तो 2018 में विधानसभा चुनाव की हार का ठीकरा भी उन्हीं के सिर फूटा। 15 साल मुख्यमंत्री रहने के कारण डॉ. रमन बड़ा चेहरा बन गए हैं और उनके मुकाबले राज्य में भाजपा का कोई नेता खड़ा नहीं हो सका है। आलाकमान उनकी राय को नजरअंदाज नहीं कर पाता। नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष, दोनों में उनकी पसंद चली।

विष्णुदेव साय कभी स्व. दिलीपसिंह जूदेव के करीबी थे। मध्य प्रदेश के जमाने में जब रायगढ़-जशपुर इलाका लखीराम अग्रवाल और दिलीपसिंह जूदेव का गढ़ हुआ करता था, तब लखीराम के साथ नंदकुमार साय का नाम आता था और विष्णुदेव का दिलीपसिंह के साथ। दिलीपसिंह जूदेव के निधन के बाद उनके पुत्रों से विष्णुदेव का तालमेल नहीं बैठ पाया। इसके बाद विष्णुदेव डॉ. रमन के करीब आए। 

लेकिन इस बार अध्‍यक्ष के नाते विष्‍णुदेव के सामने कई चुनौतियां हैं। एक तो कांग्रेस की सरकार से जूझते पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश भरना होगा। एक खेमा युवा नेतृत्व की बात कर रहा है, उसे साधना होगा। किसानों-आदिवासियों के बीच भूपेश सरकार की छवि अच्छी बनी हुई है, उसे तोड़ने की रणनीति बनानी होगी। पिछले साल 2,500 रुपये में धान खरीदी और अब किसान न्याय योजना के जरिए समर्थन मूल्य के अंतर की राशि की एक किस्त मिलने से किसान खुश हैं। तेंदूपत्ता का बोनस बढ़ाने का भी आदिवासियों में सकारात्मक प्रभाव दिखता है।

विष्णुदेव का लिटमस टेस्ट मरवाही उपचुनाव में हो सकता है। राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन से रिक्त हुई इस सीट पर नवंबर-दिसंबर में चुनाव हो सकता है। यह जोगी परिवार की परंपरागत सीट है। यहां भाजपा के पास कोई मजबूत नेता नहीं है। जोगी के लिए विधायकी छोड़ने वाले और कांग्रेस से भाजपा में आए रामदयाल उइके को पार्टी आजमा सकती है। विष्णुदेव को यहां पार्टी को शून्य से खड़ा करना है। वैसे एक बात साफ है कि डॉ. रमन ने उन्हें अध्यक्ष बनवाकर विरोधियों को झटका दिया और यह भी बता दिया कि राज्य में रमन की ही चलेगी।

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“भूपेश सरकार डेढ़ साल में ही अलोकप्रिय”

छत्तीसगढ़ भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय का कहना है कि भूपेश बघेल सरकार ने चुनावी घोषणा का कोई भी वादा ठीक से पूरा नहीं किया, सरकार डेढ़ साल में ही जनता में काफी अलोकप्रिय हो गई है। जनता के गुस्से का फायदा उठाने के लिए भाजपा आक्रामक रुख अपनाएगी। आउटलुक के रवि भोई के साथ बातचीत में उन्होंने पार्टी के भीतर उनकी नियुक्ति पर किसी तरह के मतभेद से इनकार किया। मुख्य अंशः

विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद छत्तीसगढ़ भाजपा बंटी दिखाई दे रही है। नेताओं और कार्यकर्ताओं में आप किस तरह जोश भरेंगे?

भाजपा एक परिवार है। यहां पार्टी पूरी तरह मजबूत है और किसी तरह का विवाद नहीं है। विधानसभा चुनाव में एंटी इन्कंबेंसी के कारण भाजपा की सरकार नहीं बन पाई, फिर कांग्रेस ने चुनाव में जनता को कई सब्जबाग दिखाए। पर लोग अब भाजपा सरकार के काम को याद करने लगे हैं।

कहा जाता है आपकी नियुक्ति का भी कुछ लोगों ने विरोध किया, आप क्या मानते हैं?

पार्टी में कई लोग पद चाहते हैं। इसमें कुछ गलत भी नहीं है, लेकिन जब आलाकमान ने मुझे नियुक्त कर दिया है तो विरोध या विवाद खत्म हो गया है। 

आप संगठन में किस तरह के बदलाव करेंगे और पार्टी के नेताओं को किस तरह एकजुट करेंगे?

सभी नेताओं को समान महत्व देकर उनका सहयोग लेने का प्रयास करूंगा।  पुरानी कार्यसमिति है, जरूरत पड़ी तो कुछ बदलाव किया जाएगा। यह सब जल्दी कर लिया जाएगा।

भूपेश बघेल सरकार के कामकाज को आप किस तरह देखते हैं? 

यह सरकार डेढ़ साल में ही अलोकप्रिय हो गई है। चुनावी घोषणा-पत्र में वादा करके अब तक शराबबंदी नहीं की है। बेरोजगारी भत्ता का कोई ठिकाना नहीं है। कर्जा माफी भी आधी-अधूरी हुई। किसानों का धान पिछले साल तो 2,500 रुपये क्विंटल में खरीदा, लेकिन इस साल नहीं। समर्थन मूल्य के अंतर की राशि की एक किस्त तो दे दी, बाकी कब मिलेगी, पता नहीं।

प्रदेश अध्यक्ष के नाते भूपेश सरकार के खिलाफ आपकी क्या रणनीति होगी?

लगातार चुनाव, फिर कोरोना संकट के कारण भूपेश सरकार के खिलाफ पार्टी अब तक सड़क की लड़ाई नहीं लड़ सकी। लेकिन अब आंदोलन और प्रदर्शन की रणनीति बनाई जाएगी।

कोरोना संकट से निपटने के लिए राज्य सरकार के कदम को कितना सही मानते हैं?

प्रवासी मजदूरों को लाने और उनके घरों तक छोड़ने की जिस तरह व्यवस्था होनी थी, वह नहीं दिखी। क्वारंटीन सेंटरों में भी अव्यवस्था है।

भूपेश सरकार कह रही है कि कोरोना संकट से निपटने में केंद्र सरकार से आर्थिक मदद नहीं मिल रही है। आप क्या कहेंगे?

केंद्र सरकार ने गरीब कल्याण योजना के तहत गरीबों को मदद दी। किसान सम्मान निधि में किसानों को पैसे दिए। जनधन खाते में भी पैसे ट्रांसफर किए। इसलिए मुख्यमंत्री की यह बात तो सही नहीं है।

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