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बघेल के चौके-छक्के

लेकिन पहले साल के बाद कई कड़ी चुनौतियां कर रही हैं इंतजार
छत्तीसगढ़ी पर जोरः सरकार की पहली वर्षगांठ पर रायपुर के कार्यक्रम में बघेल और अन्य नेता

छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने 17 दिसंबर को एक साल पूरा किया। सरकार ने पहले ही साल में आक्रामक पारी खेली और खूब चौके-छक्के भी लगाए। सरकार बनने के चंद घंटे के भीतर किसानों का कर्जा माफ करने और किसानों का धान 2,500 रुपये क्विंटल में खरीदने का ऐलान किया गया और उस पर अमल भी हुआ। सरकार ने सभी को 35 किलो चावल देने का वादा पूरा किया और ग्रामीण अर्थव्यवस्‍था को तवज्जो दी।

पहली बार मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल की राजनैतिक अहमियत में भी इजाफा हुआ। वे राज्य की राजनीति से उभरकर राष्ट्रीय परिदृश्य में आ गए। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव और अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारक के तौर पर उन्हें भेजकर उनका कद बढ़ाया। प्रधानमंत्री के खिलाफ आक्रामक बयानों के चलते भी वे सुर्खियों में रहे। 

कांग्रेस की राज्य की सत्ता में 15 साल बाद वापसी हुई, तो मुख्यमंत्री बघेल ने पिछली सरकार के कामकाज और फैसलों की परतें खोलने के साथ तब के ताकतवर अफसरों पर कार्रवाई कर आक्रामकता का परिचय दिया, लेकिन कोर्ट में सरकार की मजबूती नहीं दिखी। यही वजह रही कि झीरम घाटी कांड की दोबारा जांच लटक गई। नान घोटाला और डीके सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल में गड़बड़ी के जिम्मेदारों पर शिकंजा कस नहीं पाए। पिछली सरकार के कामकाज की जांच और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के परिजनों को निशाने पर लेने को भाजपा ने बदलापुर की राजनीति करार दिया। 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक साल में छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को स्थापित करने के प्रयास के साथ गांधी जी और भगवान राम को उभारने के लिए भी कदम बढ़ाए। गांधी जी की 150वीं जयंती पर पदयात्रा और राम वन गमन पथ पर काम की शुरुआत इसके उदाहरण हैं। बघेल ने अन्य पिछड़े वर्ग का रिजर्वेशन 14 से बढ़ाकर 27 कर दिया और एससी वर्ग का आरक्षण भी एक फीसदी बढ़ाया। राज्य में आरक्षण 85 फीसदी को पार कर जाने से मामला कोर्ट में अटक गया, लेकिन बघेल पिछड़े वर्ग के हितैषी बनकर उभरे। बिजली बिल आधा करने का वादा भी निभाया। छत्तीसगढ़ पत्रकारों की सुरक्षा के साथ उनके हित में कई कदम उठाने वाला राज्य भी बन गया है। राज्य में सरकारी नौकरियों के द्वार खुले हैं, लेकिन वादे के मुताबिक सरकार को अभी और काम करने होंगे। 

बघेल सरकार ने वादे के मुताबिक उद्योग न लगने पर किसानों की जमीन लौटाकर नई पहल की। नक्सल प्रभावित इलाकों में आदिवासियों के स्वास्थ्य बेहतर करने की रणनीति और कुपोषण के खिलाफ अभियान सरकार की नई सोच को दर्शाता है। इसके सकारात्मक नतीजे भी दिखाई पड़े हैं। लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा विधायक की हत्या को छोड़ दें तो, राज्य में एक साल के भीतर कोई बड़ा नक्सली हमला नहीं हुआ और कांग्रेस को नक्सली क्षेत्र के दो विधानसभा उपचुनाव में सफलता भी मिली। धान 2,500 रुपये क्विंटल में खरीदने से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई और राज्य में मंदी का असर दिखाई नहीं पड़ा। हालांकि समर्थन मूल्य से अधिक दाम के मुद्दे ने बघेल सरकार के चेहरे पर पसीना ला दिया है। केंद्र सरकार के अधिक मात्रा में चावल खरीदने से हाथ झटकने से मामला गड़बड़ा गया है। सरकार अपने फंड से किसानों को 2,500 रुपये देने का वादा कर रही है, पर किसान कब तक सब्र करते हैं, यह बड़ा सवाल है। चुनाव के समय किए शराबबंदी समेत और कुछ वादों पर भी अमल बाकी है। एक साल में बघेल की राजनैतिक चतुराई भी दिखाई पड़ी, लेकिन प्रशासनिक अनुभव की कमी भी दिखी। खासतौर पर जिले और शीर्ष स्तर पर कुछ अधिकारियों की पोस्टिंग से विपक्ष को उन पर हमले का मौका मिल गया।

दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत के साथ सरकार चला रहे मुख्यमंत्री बघेल के सामने पहले साल तो कोई चुनौती नहीं आई। राजनैतिक विरोधी शांत रहे, मगर आने वाले दिनों में उनके सामने कई चुनौतियां कड़ी होने वाली हैं, खासतौर से आर्थिक मोर्चे पर। केंद्र सरकार से कितनी मदद मिलती है, इस पर बघेल सरकार की गति तय होगी। उधर, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं। लेकिन इस एक साल में जनता को नए तरह का मुख्यमंत्री देखने को मिला, छत्तीसगढ़ी में बात करने वाला और छत्तीसगढ़ की बात करने वाला। 

 

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