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बघेल के लिए एक मौका और या....?

लोकसभा चुनाव लड़ने वाले बड़े नेता भी नगर निकाय चुनाव में जोर-आजमाइश में लगे, कांग्रेस-भाजपा दोनों आधार बढ़ाने की तैयारी में
तैयारीः निकाय चुनाव के सिलसिले में पार्टी नेताओं के साथ भूपेश बघेल

छत्तीसगढ़ में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव भूपेश बघेल की सरकार के लिए लिटमस टेस्ट की तरह हैं। ये चुनाव भाजपा के लिए भी अस्तित्व की रक्षा के समान हैं। राज्य में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार के एक साल पूरे होने के  साथ 21 दिसंबर को नगरीय निकायों के लिए वोटिंग होगी। वैसे तो इस चुनाव में जोगी कांग्रेस भी मैदान में है, लेकिन असली मुकाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में ही है। दोनों राष्ट्रीय दल के कई बड़े और घुटे नेता मैदान में हैं। इस बार यहां ईवीएम की जगह बैलट पेपर से मतदान होना है। महापौर और अध्यक्षों के चुनाव पार्षदों के जरिए होंगे। राज्य में 10 नगर निगम, 38 नगर पालिका और 103 नगर पंचायतों में चुनाव होने हैं। राज्य भर में 2,840 पार्षद चुने जाने हैं।

इसी साल लोकसभा चुनाव में रायपुर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे महापौर प्रमोद दुबे पार्षद बनने के लिए जोर-आजमाइश में लगे हैं। शहरों की राजनीति करने वाले कांग्रेस के और भी कई दिग्गजों का फैसला इस चुनाव में होना है। भाजपा की तरफ से भी कई पुराने नेता वार्ड प्रतिनिधि बनकर अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं। कुछ साल पहले तक विधायक के टिकट के बड़े दावेदार रायपुर शहर भाजपा के अध्यक्ष राजीव अग्रवाल इस बार पार्षद का चुनाव लड़ रहे हैं। पार्षदों के बीच से ही महापौर और अध्यक्षों का चुनाव होने से कांग्रेस और भाजपा में टिकटों के लिए भारी मारामारी रही। दोनों दलों में बगावत करने वालों की तादाद भी काफी है। टिकट न मिलने पर कुछ नेताओं ने आत्महत्या की धमकी दी, तो कुछ ने कोशिश तक कर डाली।

निकाय चुनाव में 33 फीसदी महिला आरक्षण लागू होने से कुछ नेताओं ने अपनी पत्नियों को आगे कर टिकट ले लिया। इसको लेकर भी नाराजगी है। टिकट के दावेदारों ने अपने वरिष्ठ नेताओं का घेराव तक किया। भाजपा और कांग्रेस में निकाय चुनावों के लिए दावेदारी की अपनी-अपनी वजहें भी हैं। राज्य में कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में आई है, ऐसे में विपक्ष की राजनीति करते कांग्रेस नेताओं को उम्मीद है कि पार्टी की सरकार रहते उनका भाग्य चमकेगा, संघर्ष के दिन फिरेंगे और सत्ता का स्वाद चखने को मिलेगा। दूसरी तरफ भाजपा नेता शहरों की राजनीति में अपना वजूद बनाए रखने की फिराक में हैं।

विधानसभा और लोकसभा के बाद राज्य का यह बड़ा चुनाव है, जिसमें राजनीतिक दलों को अपनी ताकत दिखाने का अवसर मिलेगा। यहां विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दो-तिहाई से ज्यादा सीटें जीत कर सत्ता में आई, लेकिन लोकसभा में उसे 11 में से सिर्फ दो सीटें मिली। हालांकि कुछ महीने पहले हुए विधानसभा के दो उपचुनाव में कांग्रेस को सफलता मिली। इस कारण पार्टी स्थानीय निकायों के चुनाव को लेकर भी काफी उत्साहित दिख रही है।

इस चुनाव में स्थानीय मुद्दों के साथ राज्य सरकार की एक साल की उपलब्धियां और कामकाज बड़ा फैक्टर होगा। कांग्रेस ने इसको ध्यान में रखकर स्थानीय और राज्य स्तर के घोषणा-पत्र बनाने का फैसला किया है। भूपेश सरकार ने शहरी निकायों पर कांग्रेस के कब्जे के लिए चुनाव प्रणाली में बदलाव किया है। वह पूरी ताकत भी झोंक रही है, क्योंकि इससे सरकार की मजबूती का संदेश जाएगा। भाजपा भी दम दिखा रही है। वह भूपेश सरकार के कामकाज की नाकामी को हथियार बनाए हुए है। चुनाव में महापौर और अध्यक्ष के दावेदार स्वयं की जीत के साथ समर्थकों की जीत के लिए भी ताकत लगा रहे हैं। एक बात साफ है कि यह चुनाव बड़ा रोचक होने वाला है। दोनों बड़े दल अधिक से अधिक पार्षद ‌जिताकर शहर की सत्ता कब्जाने की कोशिश करेंगे और सीटें कम हुईं तो तोड़फोड़ की राजनीति चलेगी।

 

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