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सोशल मीडिया : काबू करने की कवायद

आलोचना और अपने बनाए अफसाने की जवाबी मुहिम से तंग आकर सरकार उसी माध्यम पर नियंत्रण चाहती है जिसके सहारे उसका डंका बजा, नए आइटी नियम और ट्विटर विवाद तो बस बहाना
ट्विटर

शायद हर सत्ता प्रतिष्ठान की अलोकतांत्रिक फितरत की सबसे कठिन परीक्षा कार्टून और व्यंग्य ही लेते हैं। हाल में प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट मञ्जुल का कोविड की दूसरी लहर पर एक कार्टून केंद्र सरकार को ऐसा नागवार गुजरा कि उसने ट्विटर को कथित तौर पर शिकायती पत्र लिख डाला। सरकार का यह शिकायती लहजा दूसरे मामलों में तो इस कदर तीखा हो गया है कि उसकी इन सोशल मीडिया बहुराष्ट्रीय कंपनियों से ठन गई है। मामला यहां तक तूल पकड़ गया कि सरकार के खिलाफ ह्वाट्सऐप कोर्ट पहुंच चुकी है, तो 6 जून 2021 को उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत वगैरह के ट्विटर अकाउंट अनवैरिफाइड होने से हायतौबा मच गई। हालांकि मामला तूल पकड़ा तो ये अकाउंट फिर से वेरिफाइड (ब्लूटिक) हो गए।

यह इसलिए कुछ चौंकाता है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहचान सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, ह्वाट्सऐप) का बेहतरीन इस्तेमाल कर उसका फायदा उठाने वाले नेता के रूप में रही है। वे ट्विटर पर 6.3 करोड़ फॉलोअर के साथ दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं। यह तथ्य छुपा नहीं कि सोशल मीडिया उनके केंद्रीय मंच पर आरोहण और उसके बाद सत्ता पर मजबूती में प्रमुख भूमिका निभाता रहा है। जाहिर है, अब सरकार उसी माध्यम पर काबू पाने की मुहिम में दिखती है तो इससे उसकी फितरत के साथ असहमतियां और असंतोष बढ़ने का भी संकेत माना जा सकता है।

इस बीच 21 मई 2021 की घटना काफी अहम है। ट्विटर ने भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के तथाकथित कांग्रेस टूलकिट वाले ट्वीट पर ‘मैनिपुलेटेड मीडिया’ का टैग लगा दिया। ‘मैनिपुलेटेड मीडिया’ का टैग ट्विटर उस कंटेट को देता है, जिसमें हेर-फेर या गलत तथ्यों के इस्तेमाल का संदेह होता है। 14 मई को पात्रा ने कांग्रेस के दो दस्तवेज की प्रतिलिपि ट्वीट की और कहा कि सरकार को ऐसे बदनाम करने की मुहिम चल रही है। कांग्रेस ने सेंट्रल विस्टा के दस्तावेज को तो सही बताया मगर तथाकथित टूलकिट को फर्जी बताया और एफआइआर भी दर्ज कराई। इसके एकाध दिन बाद पात्रा का कोई जवाब न मिलने और टूलकिट का मूल दस्तावेज पेश न करने पर ट्विटर ने उस पर ‘मैनिपुलेटेड मीडिया’ का टैग लगा दिया था। यह कार्रवाई सरकार को नागवार गुजरी और दिल्ली पुलिस की छह सदस्यीय टीम 24 मई को ट्विटर के हरियाणा के गुरुग्राम और दिल्ली के लाडोसराय दफ्तर में धमक गई। वहां पुलिस कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर (इंडिया) को नोटिस थमाने पहुंची थी। जाहिर है, मामला अब केवल कानूनी नहीं रह गया है।

बुरा न मानोः इसी कार्टून पर केंद्र ने ट्विटर से शिकायत की (मञ्जुल के ट्विटर से साभार)

फौरी तौर पर यह विवाद 26 मई 2021 से लागू हुई नई सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरमीडियरी दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियमावली से तूल पकड़ता दिखता है, जिसे लागू करने पर ट्विटर और ह्वाट्सऐप ने आपत्ति जताई है। फेसबुक की कंपनी ह्वाट्सऐप तो नियम लागू होने के दिन (26 मई) ही दिल्ली हाइकोर्ट पहुंच गई और उसने नए आइटी नियमों में ट्रेसेबिलिटी या स्रोत का पता बताने के नियम पर आपत्ति जताई। उसका कहना है कि यह व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है। नए नियमों की अनदेखी पर कंपनी के कर्मचारियों पर आपराधिक मामला चलाए जाने के प्रावधान पर भी इसने आपत्ति जताई है।

इस बीच ट्विटर ने अपने कार्यालयों पर पुलिस के पहुंचने पर आपत्ति जताई और बयान जारी किया, ‘‘फिलहाल हमें भारत में लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी की चिंता है, जिन्हें हम सेवाएं देते हैं।’’ इस बयान ने आग में घी का काम किया और भारत सरकार ने बयान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा, ‘‘भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना ट्विटर जैसी निजी, लाभकारी, विदेशी संस्था का विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और इसके मजबूत संस्थानों की प्रतिबद्धता है।’’

विवादों के बीच सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सफाई दी, ‘‘सोशल मीडिया यूजर नरेंद्र मोदी और सरकारी नीति की आलोचना कर सकते हैं, सवाल पूछ सकते हैं।’’ लेकिन उनके दावों पर सवाल खड़ा हो रहा है, क्योंकि 5 जून को ही केंद्र सरकार ने कार्टूनिस्ट मञ्जुल के खिलाफ ट्विटर को शिकायत की है। सरकार के इस कदम पर कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य ने ट्वीट किया, ‘‘प्रिय सरकार, कृपया कार्टूनिस्ट्स को टारगेट करना बंद करें, कार्टूनिस्ट हमेशा से ही विपक्ष के साथ खड़े रहते हैं और जब आप विपक्ष की भूमिका में होंगे तो आपको उनकी जरूरत पड़ेगी।’’

नए कानून के तहत ट्रेसेबिलिटी के नियम से सरकार की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं। सरकार चाहती है कि वह जिन पोस्ट को आपत्तिजनक कहे, उसके सोर्स की जानकारी कंपनियां सरकार को दें। कंपनियों का कहना है कि ऐसा करना लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। उनके अनुसार, दो व्यक्ति के बीच संदेश एनक्रिप्टेड होता है, यानी संदेश भेजने वाला और प्राप्त करने वाला ही उसे पढ़ सकता है। सरकार की बात मानें तो प्राइवेसी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

इस मामले पर सरकार का कहना है कि ऐसा केवल उन्हीं अकाउंट के लिए होगा, जिन पर सरकार को शक होगा कि ऐसे लोग देश में अराजकता या फिर देशविरोधी ताकतों को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। लेकिन अगर यह दलील सही है तो फिर किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को लाल किले की घटना के बाद जिस तरह कई पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक कराया गया, उससे क्या संदेश मिलता है?

उस दौरान ट्विटर पर कई फेक न्यूज और भड़काऊ पोस्ट होने का सरकार ने दावा किया। ऐसे अकाउंट्स के खिलाफ सरकार ने ट्विटर से ऐक्शन की मांग की। सरकार ने 4 फरवरी को ट्विटर को 1157 अकाउंट की सूची सौंपी। उसका दावा था कि इन अकाउंट के जरिए देश के खिलाफ दुष्प्रचार किया जा रहा है और उनमें अधिकतर अकाउंट पाकिस्तान से जुड़े लोगों के या खालिस्तान समर्थकों के थे। ट्विटर ने इस लिस्ट में शामिल सभी ट्विटर हैंडल्स पर कार्रवाई नहीं की, बल्कि कुछ हैंडल्स को ही ब्लॉक किया। बाद में कई अकाउंट फिर से बहाल कर दिया और कहा कि इनमें अधिकांश अकाउंट मीडिया से जुड़े लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के हैं। ट्विटर ने एक बयान जारी कर कहा, ‘‘हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करते रहेंगे और भारतीय कानून के मुताबिक इसका रास्ता भी निकाल रहे हैं।’’

तूल पकड़ते मामले के बीच केंद्र सरकार ने ट्विटर को नए आइटी नियमों का पालन करने के लिए 26 मई को पहला, 28 मई को दूसरा और 5 जून को आखिरी नोटिस भेजा है। सरकार ने कहा है, ‘‘ट्विटर 26 मई से सोशल मीडिया के लिए लागू शर्तों का तुरंत पालन करे वरना कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।’’ रविशंकर प्रसाद का कहना है, ‘‘सरकार चाहती है कि कंपनियां शिकायतों का निपटारा 15 दिनों में करें। सरकार के नियमों का पालन करने के लिए कंप्लायंस अफसर की नियुक्ति करें। क्या हम उनसे चांद मांग रहे हैं?’’ नए आइटी नियम के तहत 50 लाख से ज्यादा यूजर्स वाली कंपनियों को भारत में चीफ कंप्लायंस अधिकारी, नोडल अधिकारी और रेजिडेंट कॉन्टैक्ट पर्सन नियुक्त करना है। अभी कंपनी के मुख्यालय में शिकायत भेजनी पड़ती है। ट्विटर ने अंतरिम शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति कर दी है, पर कंप्लायंस और नोडल ऑफिसर के संबंध में स्थिति साफ नहीं है।

जाहिर है, मुद्दा कानूनी से ज्यादा राजनैतिक है। सवाल यह भी है कि क्या बिना संसद की मंजूरी के किसी कानून की नियमावली में ऐसे बदलाव किए जा सकते हैं? सरकारी कोशिशें आशंकाएं मिटाने के बजाय बढ़ा रही हैं।

 

नए आइटी नियम

केंद्र सरकार अब किसी भी पोस्ट, ट्वीट, संदेश के बारे में कंपनियों से पूछ सकेगी कि उसका स्रोत क्या है।

सरकार किसी पोस्ट को नुकसानदायक माने तो यह भी पूछ सकेगी कि भारत में उस पोस्ट को सबसे पहले किसने शेयर किया

कंपनियों को भारत में कंप्लायंस के लिए भारतीय अधिकारियों की नियुक्ति करनी होगी

पॉर्नोग्रॉफी कंटेट को स्वत: हटाने की व्यवस्था करनी होगी

कंपनियों को शिकायतों का निपटारा 36 घंटे में करना होगा

नए नियमों के बाद सोशल मीडिया कंपनियों को सेक्शन 79 के तहत मिलने वाली छूट खत्म हो जाएगी। अगर कंपनियां नए मानकों का पालन नहीं करेंगी तो कंपनी और उसके कर्मचारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी।

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