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सीएए, एनपीआर, एनआरसी\केंद्र-राज्य महा टकराव के बीज

नए कानून के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर रहे गैर-भाजपा शासित राज्य, एनपीआर का भी विरोध बढ़ा
मुखालफत: केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन राज्य में एनपीआर लागू करने के भी खिलाफ

आशंकाएं तो यही हैं कि देश भर में विरोध-प्रदर्शनों का कारण बने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), 2019, एनपीआर और एनआरसी केंद्र-राज्य टकराव की जननी बनने जा रहा है। केरल और पंजाब विधानसभा सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित चुकी है। राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार 24 जनवरी से शुरू होने वाले बजट सत्र में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव लाएगी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी विधानसभा में प्रस्ताव लाने जा रही हैं। उन्होंने गैर-भाजपाशासित और पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने का आग्रह किया है। केरल सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है और पंजाब की भी यही तैयारी है। दोनों राज्यों ने एनपीआर-एनआरसी को लागू करने से भी मना कर दिया है। केरल ने 14 जनवरी को केंद्र-राज्य संबंधों वाले अनुच्छेद 131 के तहत याचिका दायर की है।

वैसे भी, सुप्रीम कोर्ट में सीएए के खिलाफ 60 से अधिक याचिकाओं की सुनवाई 22 जनवरी से हो रही है। इस बीच सरकार ने 10 जनवरी 2020 को सीएए की अधिसूचना जारी कर दी। लेकिन सवाल है कि राज्य लागू करने से इनकार करते हैं तो क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने आउटलुक से कहा, “सीएए के खिलाफ याचिका दायर करने से कोई संवैधानिक संकट उत्पन्न नहीं होगा, क्योंकि जिस तरह नागरिकों के अधिकार होते हैं उसी तरह राज्यों के भी अधिकार होते हैं। संकट तब होगा जब राज्य एनपीआर या एनआरसी लागू करने से मना करेंगे। तब केंद्र सुप्रीम कोर्ट से निर्देश देने की मांग कर सकता है। अगर तब भी राज्यों ने इस पर अमल नहीं किया तो कोर्ट इसे अवमानना मान कर कार्रवाई कर सकता है। केंद्र सरकार भी राज्य की सरकार को बर्खास्त कर सकती है। हालांकि यह आसान नहीं होगा क्योंकि तब राज्य में छह महीने के भीतर चुनाव कराने होंगे।”

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता नलिन कोहली का कहना है कि नागरिकता कानून संविधान का उल्लंघन नहीं करता। आउटलुक से उन्होंने कहा, “विरोध बेमानी है, इससे किसी के अधिकारों का हनन नहीं होता।”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील कपिल सिब्बल ने केरल लिटरेचर फेस्टिवल में कहा कि प्रस्ताव पारित करके राज्य यह जताना चाहते हैं कि वे केंद्र के फैसले से सहमत नहीं हैं। लेकिन संवैधानिक रूप से किसी भी राज्य सरकार के लिए यह कहना मुश्किल होगा कि संसद द्वारा पारित कानून लागू नहीं करेंगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने भी सिब्बल की बात का समर्थन किया। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर केंद्र के साथ राज्यों के गंभीर मतभेद हैं, इसलिए हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। कांग्रेस के ही एक और नेता, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी कहा कि संसद से पारित कानून लागू करने से राज्य इनकार नहीं कर सकते। हालांकि बाद में कांग्रेस का बयान आया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक राज्यों को नागरिकता कानून लागू करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। पार्टी के नेता अहमद पटेल ने कहा कि पंजाब के बाद हम राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा में भी सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पास कराना चाहते हैं। 13 जनवरी को कांग्रेस और 19 अन्य विपक्षी दलों ने एक बैठक करके सीएए वापस लेने और एनपीआर-एनआरसी पर काम रोकने की मांग की थी।

हमें नहीं मंजूरः मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे

मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा, “पंजाब में 2021 की जनगणना पुराने मानकों के आधार पर होगी, केंद्र सरकार ने एनपीआर के लिए जो नए मानक जोड़े हैं उन्हें लागू नहीं किया जाएगा। जर्मनी में 1930 में हिटलर के समय जो हुआ था अब वह भारत में हो रहा है। जर्मनीवासियों ने तब इसका विरोध नहीं किया, जिसका उन्हें बाद में पछतावा हुआ, लेकिन हम अभी इसका विरोध करेंगे ताकि हमें बाद में न पछताना पड़े।” पंजाब विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल आम आदमी पार्टी ने तो प्रस्ताव का समर्थन किया। लेकिन सबसे विचित्र स्थिति एनडीए के घटक शिरोमणि अकाली दल की है। उसने प्रस्ताव का तो विरोध किया, लेकिन यह भी कहा कि वह पूरे देश में एनआरसी लागू करने के खिलाफ है। दल ने नागरिकता कानून में मुसलमानों को भी शामिल करने की मांग की।

इस बीच, भाजपा ने सीएए के बारे में बताने के लिए तीन करोड़ परिवारों के घर-घर जाने का अभियान शुरू किया है। इसके लिए राज्यसभा सांसद अनिल जैन की अध्यक्षता में छह सदस्यों की समिति बनाई गई है। इसके अलावा करीब एक हजार रैलियां भी की जाएंगी। पार्टी के नेता अब जगह देखकर बयान देने लगे हैं। बिहार में एक जनसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सीएए पर तो लोगों से समर्थन मांगा, लेकिन एनआरसी का जिक्र नहीं किया। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनआरसी के खिलाफ हैं। सीएए के खिलाफ आंदोलन में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से ‘बदला लेने’ की बात कहने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ अब कह रहे हैं कि महिलाओं को आगे रखकर नागरिकता कानून के बारे में झूठ फैलाया जा रहा है। लेकिन पश्चिम बंगाल में अगले साल शुरू में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसे देखते हुए वहां इस मुद्दे पर भाजपा का आक्रामक रुख बना हुआ है। प्रदेश भाजपा प्रमुख दिलीप घोष ने बयान दिया कि सरकार पूरे देश में एनआरसी लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है और राज्य में अवैध रूप से रह रहे 50 लाख बांग्लादेशी मुसलमानों को वापस भेजा जाएगा। इससे पहले घोष कह चुके हैं कि “भाजपा-शासित राज्यों में सीएए विरोधियों को कुत्तों की तरह मारा गया।”

उधर, टकराव को नई धार देते हुए केरल कैबिनेट ने 20 जनवरी को प्रस्ताव पारित कर दिया कि राज्य सरकार एनपीआर अपडेट करने में केंद्र का सहयोग नहीं करेगी। एनपीआर पर 1 अप्रैल 2020 से काम शुरू होना है जो 30 सितंबर तक चलेगा। केंद्र सरकार ने 2021 की जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पर 17 जनवरी को बैठक भी बुलाई थी। इसमें कई राज्यों ने माता-पिता के जन्म की तारीख और जन्म स्थान से जुड़े सवाल पर आपत्ति जताई। बैठक में पश्चिम बंगाल ने हिस्सा नहीं लिया।

इस बीच, सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 73 जिलों में 30 लाख लोगों से एनपीआर के लिए जानकारियां मांगी थीं। लोग पैन की जानकारी देने में झिझक रहे थे, इसलिए उसे हटाने का फैसला किया गया है। इसकी जगह मातृ भाषा का कॉलम जोड़ा जा सकता है। गृह मंत्रालय के अधिकारियों का यह भी कहना है कि ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर कार्ड और आधार नंबर जैसी जानकारियां देना लोगों की इच्छा पर निर्भर करेगा। 2010 में पहला एनपीआर हुआ था तो उसमें 14 तरह की जानकारियां मांगी गई थीं। नए एनपीआर में माता-पिता के जन्म स्थान और जन्म तिथि के अलावा पिछला निवास, आधार (वैकल्पिक), वोटर कार्ड, मोबाइल और ड्राइविंग लाइसेंस नंबर जोड़े गए हैं।

असम में तो सीएए का विरोध जारी ही है। असम समझौते के क्लॉज 6 पर बनी 14 सदस्यों वाली समिति ने ड्राफ्ट रिपोर्ट में असमियों की पहचान और विरासत की रक्षा के लिए संविधान में प्रावधान करने की सिफारश की है। इनर लाइन परमिट और विधानसभा और नौकरियों में आरक्षण की भी बात है। केंद्र सरकार ने समिति को अंतिम रिपोर्ट सौंपने की अवधि एक महीने बढ़ाकर 15 फरवरी कर दी है। लेकिन विरोध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री की दो रैलियां रद्द हो चुकी हैं।

विरोध का आलम तो यह है कि गोवा में 16 जनवरी को शिक्षा विभाग के संविधान की 70वीं वर्षगांठ पर एक कार्यक्रम में आठवीं कक्षा की छात्रा दीक्षा तलाउलिकर ने कहा, “इस कानून में संविधान की आत्मा, इसकी प्रस्तावना, आजादी, समानता और भाईचारा की हत्या कर दी गई है।” अब देखना है, यह टकराव क्या शक्ल लेता है।

 

किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करना आसान नहीं होगा, क्योंकि छह माह में चुनाव कराने होंगे

प्रशांत भूषण, वरिष्ठ वकील, सुप्रीम कोर्ट

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