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पुस्तक समीक्षा: नियति को ठेंगा

अगर कहानियों में नायिकाएं विद्रोह पर उतर आएं, तो समझ जाइए कि समाज में बदलाव धीरे-धीरे दस्तक देने लगा है
तुम्हारी लंगी

अगर कहानियों में नायिकाएं विद्रोह पर उतर आएं, तो समझ जाइए कि समाज में बदलाव धीरे-धीरे दस्तक देने लगा है। कंचन सिंह चौहान के पहले कहानी संग्रह में यह दस्तक सुनाई देती है। उनकी नायिकाएं ‘जी’ कहने से पहले ‘क्यों’ पूछती हैं।  ‘बदजात’ ऐसी ही कहानी है, जिसमें एक मां का विद्रोह है। यह विद्रोह समाज से ज्यादा उस मानसिकता के खिलाफ है, जहां ‘मजबूर’ लड़कियों को शारीरिक या मानसिक रूप से कमतर लोगों के साथ शादी करनी पड़ती है। इस कहानी में भी मानसिक रूप से बीमार अपने बेटे की शादी जब वह एक स्वस्थ्य लड़की से होते देखती है, तो इसके खिलाफ खड़ी हो जाती है। इस संग्रह में नायिकाएं अलग-अलग परिस्थितियों से जूझती हुई बताती हैं कि शहर हो या गांव स्त्री की नियति वही रहती है, सहन करना। ‘वर्तुल धारा’ कहानी नए परिवेश में है, लेकिन उसका संघर्ष कई स्तरों पर चलता है। परित्यक्तता लड़की का पढ़ाई करना, पैसे कमाने के लिए सेरोगेसी करना और अंत में एक ऐसी बच्ची की मां बनना, जिसे सेरोगेसी कराने वाले दंपती अपनाने से इनकार कर देते हैं। इस कहानी की नायिका ससुराल से आने के बाद रोती-बिसूरती नहीं बल्कि नर्सिंग की पढ़ाई करती है। इसी के बरअक्स संग्रह में एक कहानी है, ‘ईज’ लेकिन ईज की नायिका सेरोगेसी के बजाय देह व्यापार में है। एकबारगी पढ़ने में लगता है कि यह वेश्यावृत्ति के पक्ष में खड़ी कहानी है। लेकिन नायिका जिस ढंग से तर्कों के साथ अपनी बात रखती है, उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। ईज की नायिका अपनी बात रखने में झिझकती नहीं, न ही उसे इस बात की ग्लानि है कि वह वेश्यावृत्ति कर रही है। दो कहानियां विकलांग विमर्श पर हैं और समाज का क्रूर चेहरा दिखाती हैं।

संग्रह की शीर्षक कहानी, ‘तुम्हारी लंगी’ विकलांगों के प्रति संवेदनहीनता को रेशा-रेशा खोलकर रख देती है। यह कहानी जीजिविषा की भी कहानी है, जो बताती है कि ठान लेने से क्या नहीं होता। कहानी की शुरुआत में अपना नाम लंगी यानी लंगड़ी बताने वाली नायिका बाद में पढ़ाई के सहारे एक बड़ी फेलोशिप ले लेती है। लेकिन कहीं भी नायिका अपनी विकलांगता को आड़े नहीं आने देती। इस कहानी में आम लोगों के मुकाबले विकलांगों को आने वाली रोजमर्रा की दिक्कतों का बहुत ही विश्वसनीय चित्रण है। अपनी बुनावट में यह कहानी इतनी कसी हुई है कि इसे पूरा पढ़े बिना बीच में छोड़ना संभव नहीं हो पाता।

कंचन सिंह चौहान का यह परिचय देना अटपटा सा लग सकता है लेकिन वे खुद सत्तर फीसदी विकलांग हैं और खुद को दूसरों के सहारे डालने के बजाय वे अपना जीवन अपने बूते जीती हैं। इसलिए जब तुम्हारी लंगी कहानी में एक संवाद आता है जब एक लड़की से उसका नाम पूछा जाता है, तो वह जवाब देती है लंगी यानी लंगड़ी। इसे पढ़ कर दिल टूट सकता है लेकिन सोचिए यदि किसी ने उस स्थिति को भुगता हो, तो?  

लेखिका के पास कहानी कहने का एक ढंग है, जो इन कहानियों को पठनीय और विश्वसनीय दोनों बनाता है। पहले संग्रह के लिहाज से भाषा सधी हुई है। लेखिका ने जिस भी किरदार को उठाया है, उस पर कहीं भी खुद को हावी नहीं होने दिया और यही इस संग्रह की विशेषता है।

तुम्हारी लंगी

कंचन सिंह चौहान

प्रकाशक | राजपाल ऐंड संस

पृष्ठः 160 | मूल्यः 225 रुपये

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