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पुस्तक समीक्षा: स्त्रीा चेतना और विमर्श

लगभग सौ वर्षों के अंतराल के बाद कवि विमल कुमार, अरविंद कुमार नाम से संपादकीय लिखते हुए वर्तमान समय में स्त्री्-दर्पण की जरूरत पर बात करते हैं
स्त्री दर्पण

बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन के समानांतर सामाजिक स्तर पर एक आत्ममंथन की प्रक्रिया चल रही थी। उसी प्रक्रिया के एक बड़े हिस्से के रूप में स्‍त्री-स्वातंत्र्य चेतना को ‘स्‍त्री-दर्पण’ पत्रिका अपना स्वर दे रही थी। इसका प्रकाशन जून 1909 में प्रयाग से शुरू हुआ था। इसकी संपादक रामेश्वरी देवी नेहरू और प्रबंधक कमला देवी नेहरू थीं। उस समय भी पत्रिका में स्‍त्री मुद्दों पर सामाजिक राजनीतिक लेख छपते थे और पत्रिका हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र की समस्याओं को दर्ज कर रही थी। 

लगभग सौ वर्षों के अंतराल के बाद कवि विमल कुमार, अरविंद कुमार नाम से संपादकीय लिखते हुए वर्तमान समय में स्‍त्री-दर्पण की जरूरत पर बात करते हैं। वर्तमान अंक गीतांजलि श्री के बुकर पुरस्कार प्राप्त उपन्यास रेत समाधि के सम्मान स्वरूप निकाला गया है।

अपने उपन्यास के बारे में गीतांजलि श्री का कहना है कि इस किस्से में दो औरतें थीं। उनमें से एक छोटी होती गई और एक बड़ी। इसी उपन्यास के बारे में अशोक वाजपेयी कहते हैं, “इस उपन्यास की भाषा स्वयं एक चरित्र है। वह किसी जिद्दी अभिव्यक्ति या बखान नहीं है। उसमें उपन्यासकार स्वयं बोलती है।” भाषा और शिल्प के लिए जानी जाने वाली प्रत्यक्षा लिखती हैं, “गीतांजलि श्री एक किस्म के डीटैच्ड ठहराव के साथ लिखती हैं। बहुत गहरे डूब कर, बहुत मुहब्बत से भर कर, पूर्णता की सतत तलाश में और अपने लिखे के प्रति निर्मम होकर, अपनी दुनिया को तराशती हैं।” विपिन चौधरी, हर्षबाला शर्मा और सपना सिंह के लेख भी प्रशंसित और सामयिक हैं। बीच बहस में विषय आर्गेज्म है, जिस पर आउटलुक पत्रिका ने ‘देह का हक’ शीर्षक से हाल में भी अंक निकाला था। यहां पर प्रगति सक्सेना आर्गेज्म के विभिन्न पहलुओं को समझने की कोशिश करती हैं, वहीं अणुशक्ति सिंह अपने लेख में आर्गेज्म को लेकर वाजिब सवाल उठाते हुए सही निष्कर्ष पर पहुंचती हैं। उनका मानना है  कि यह समस्या वैश्विक है। फर्क केवल इतना है कि वैश्विक स्तर पर अब प्लेजर को पहचान मिल रही है। यह केवल पुरुषों के लिए केंद्रित नहीं रह गया है। लेकिन भारत में अभी यह सफर लंबा है।

इसके अतिरिक्त सत्यजित राय के सिनेमा के स्‍त्री-चरित्र को लेकर जवरीमल्ल पारख का लेख और लेखिकाओं के आत्मकथाओं पर संगीता मौर्य का महत्वपूर्ण आलेख है। सविता सिंह के कविता संग्रह पर सुजाता की समीक्षा है, तो मधु कांकरिया के नए उपन्यास पर उर्मिला शिरीष की समीक्षा है।

तेजी ग्रोवर की कविता पढ़ना मनुष्यता की उदात्त भावना की ओर जाना है। इनके साथ बांग्ला कवयत्रियों के अनुवाद भी प्रकाशित किए गए हैं।

यह अंक शिवपूजन सहाय-बच्चन देवी को समर्पित कर संपादक के कवि मन की इच्छा शायद यही है कि स्‍त्री-दर्पण पत्रिका स्‍त्री स्वातंत्र्य के क्षेत्र में नवजागरण लाए। आकार-प्रकार और साज-सज्जा के साथ ज्वलंत विषयों पर अंक निकालने के लिए स्‍त्री-दर्पण की टीम को बहुत बधाई।

स्त्री-दर्पणः स्त्री विमर्श का नया मंच

अगस्त-अक्तूबर 2022

संपादक| अरविंद कुमार और सविता सिंह

मूल्य: 100 रुपये | पृष्ठ: 72

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