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एक सर्जक का सफर

यह पुस्तक जैनेन्द्र कुमार की जीवन-यात्रा का अंकन है
अनासक्त आस्तिक

यह पुस्तक जैनेन्द्र कुमार (1905-1988) की जीवन-यात्रा का अंकन है, जिसे ज्योतिष जोशी ने गहरे उतरकर लिखा है। जैनेन्द्र हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा से अलग नए तेवर, नई भाषा, नई सोच, खासकर स्‍त्री को लेकर नए रूप-विधान के साथ बौद्धिक रूप से सजग लेखक के रूप में आए। उनके प्रारंभिक तीन उपन्यास परख, सुनीता और त्यागपत्र  चर्चित रहे।

जैनेन्द्र की प्रतिभा को सबसे पहले प्रेमचंद ने पहचाना था। जैनेन्द्र ने स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और जेल गए। उस वक्त के कई बड़े नेताओं के साथ उनका निकट परिचय था। लेकिन इसका उन्होंने कभी अनुचित लाभ नहीं उठाया। उन्होंने सरकारी मकान लेने का इंदिरा गांधी का अनुरोध ठुकरा दिया था।

बड़े लोगों के साथ जैनेन्द्र के संवाद को समझने में यह पुस्तक सहायता करती है। भारत विभाजन, गांधी हत्या या किसी परिवारी जन की मृत्यु, हर मामले में जैनेन्द्र का चिंतन पूरी प्रामाणिकता के साथ पुस्तक में अंकित है। वैसे भी जैनेन्द्र अपने जीवन, संघर्ष, अपने निर्माण आदि को लेकर काफी कुछ लिख गए हैं। ज्योतिष जोशी ने उनका यथास्थान उपयोग किया है। भाषा में सहजता है पर बौद्धिक बहस के आते ही बोझिल हो जाती है-ठीक जैनेन्द्रीय विमर्श की तरह।

जैनेन्द्र ने अपने उपन्यासों की प्रस्तावना में काफी हस्तक्षेप किया है, पात्रों के संघर्ष व्यक्तित्व और विचारों को लेकर लेखकीय मत दिए हैं। उस तरफ ध्यान न देते हुए पुस्तक में जैनेन्द्र की जीवन-यात्रा में आए विभिन्न पड़ावों, उनके भटकाव, उतार-चढ़ाव आदि को ध्यान में रखा गया है। आजादी के बाद वे लेखन से विरत हो गए। करीब एक दशक बाद वे पुनः सक्रिय हुए और मुक्तिबोध, विवर्त, जर्यवर्धन, दर्शाक, अनंतर, कल्याणी आदि उपन्यासों की रचना की। मुक्तिबोध पर उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला। यह उपन्यास आकाशवाणी के लिए लिखा गया था पर ज्योतिष जोशी ने इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया। नारी विमर्श के आज के युग में अगर हम जैनेन्द्र के स्‍त्री संबंधी विचारों की प्रासंगिकता को देखें तो वे प्रगतिशील नहीं बल्कि प्रतिक्रियावादी नजर आते हैं। जैसे, “अभागिनी है वह जो स्‍त्री जो राजनीति में आती है या उसका विचार भी करती है। राजनीति करे वह स्‍त्री जिसके पास पुरुष न हो।” जैनेन्द्र को स्‍त्री मन का चितेरा कहा गया है लेकिन जैनेन्द्र अपने स्‍त्री पात्रों को ठोस व्यक्तित्व नहीं दे सके। वे स्‍त्री स्वातन्त्र्य के एक सीमा तक हिमायती थे। जैनेन्द्र ने जिस आदर्श नारी की कल्पना की वह ठोस आकार न ले सकी। उनका चिंतन इस संदर्भ में दूर तक नहीं जाता, वे स्‍त्री विरोधी और मर्दवादी कथाकार नजर आते हैं। वैसे भी उनका समस्त लेखन धैर्य की मांग करता है। उनके विचारों, दर्शन, चिंतन से असहमति रखते हुए भी उनकी राय महत्वपूर्ण है। वे हिंदी में एक महान लेखक के रूप में समादृत हैं और रहेंगे। ज्योतिष जोशी ने उनके हर रूप को अभिव्यक्ति देने का सार्थक काम किया है।

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