Advertisement

पुस्तक समीक्षा : फासीवाद की स्मृतियों से बिंधा वर्तमान

उपन्यास पढ़कर कहा जा सकता है कि कहानी का मुख्य विषय वह जन्म जन्मांतर नहीं, बल्कि इसके माध्यम से दो अलग-अलग दुनियाओं की पड़ताल करते हुए कथाकार जो वितान रचता है यह उसकी कहानी है
जन्म-जन्मांतर

अपनी कहानियों के माध्यम से अलग पहचान बना चुके चर्चित कथाकार विवेक मिश्र अपने पहले चर्चित और पुरस्कृत उपन्यास डोमिनिक की वापसी के कई साल बाद जन्म जन्मांतर के साथ पाठको के सामने आए हैं। विवेक फिर जन और उसके अंतर्मन के आंदोलन के साथ उपस्थित हैं, जो उनकी कहानियों का मूल किरदार रहा है। विवेक की देश, दुनिया, समाज और जन के प्रति चिंताएं लगभग सभी कहानियों में अलग-अलग रूपों में आती रही हैं। इस बार विवेक ने अपनी बात कहने के लिए जिस कथ्य और शिल्प का सहारा लिया है वह उनके पूर्व लेखन से अलग शैली है। उपन्यास के नाम को लेकर मन में जिस जन्म जन्मांतर की बात उभरती है, विषय वस्तु उसी की बात करती है। उपन्यास पढ़कर कहा जा सकता है कि कहानी का मुख्य विषय वह जन्म जन्मांतर नहीं, बल्कि इसके माध्यम से दो अलग-अलग दुनियाओं की पड़ताल करते हुए कथाकार जो वितान रचता है यह उसकी कहानी है। जन्म जन्मांतर का वह किस्सा उसी का एक किरदार भर साबित होता है।

उपन्यास की कहानी शुरू होती है इन पंक्तियों से, “जिंदगी में कुछ हादसे आसमान से जमीन की ओर लपकती बिजली की तरह होते हैं। वे किसी अभागे के सिर पर आफत की तरह गिरते हैं। जिसके सिर पड़ते हैं, उसे राख कर देते हैं और राख से जी उठने की ताकत सबके पास नहीं होती।”

किस्सा शुरू होता है डॉ. व्योम से, जो सर्दियों की एक सर्द अंधेरी रात में अपने छोटे से क्लिनिक को बंद करके घर लौट रहे होते हैं। उनकी सहायक रूबी पहले ही जा चुकी होती है। तभी उनका सामना ऐसे व्यक्ति से होता है, जो घायल अवस्था में उनके सामने आ खड़ा होता है। इसी व्यक्ति के इलाज और पहचान के साथ शुरू होता है उनके अतीत और वर्तमान के बीच आवाजाही का सिलसिला। एक ओर पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी का चक्रव्यूह है, दूसरी ओर बदलते जीवन मूल्यों और सिद्धांतों के माध्यम से उस बदलाव और उलझाव के तार आज के समय से जाकर जुड़ जाते हैं। दो अलग-अलग कालखंडों के बीच का यह साम्य ही इन्हें जोड़ता है। जिस फासिज्म की स्मृतियां सीतेश के पूर्वजन्म में परिलक्षित होती हैं, ठीक उन्हीं का सामना डॉ. व्योम और रूबी को करना पड़ रहा है। बल्कि सीतेश का आज भी इससे प्रभावित है। 

इस रोचक और महत्वपूर्ण उपन्यास में दरअसल मानव सभ्यता के दो युगों में निरंतर सक्रिय विध्वंसकारी ताकतों के तुलनात्मक अध्ययन और पुनर्जन्म की अवधारणा सामने आती है। यह भी कि बेशक नई चुनौतियां और नई पृष्ठभूमि है पर नए जन्म में भी मानवता उन ताकतों से निरंतर संघर्षशील है।

जन्म-जन्मांतर

विवेक मिश्र

प्रकाशक|सामयिक प्रकाशन

पृष्ठ संख्या:144

मूल्य: 250 रुपये

Advertisement
Advertisement
Advertisement