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पुस्तक समीक्षा : तीसरी कसम का स्वर्णिम इतिहास

दो गुलफामों की तीसरी कसम पुस्तक में रेणु के किरदारों की पूरी छानबीन की है
तीसरी कसम के निर्माण की अनकही कहानी

यह कोई छुपा हुआ तथ्य नहीं है कि हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ को गीतकार और कवि शैलेंद्र ने जिस तरह सिनेमा के परदे पर उतारा, वह अद्भुत है। आज भी यह फिल्म सिने जगत में श्रेष्ठतम फिल्मों में गिनी जाती हैं। हालांकि रेणु को हमेशा यह मलाल रहा कि उन्होंने यह कहानी लिखी ही क्यों। न वे तीसरी कसम लिखते न यह शैलेंद्र को पसंद आती, न वे इस पर फिल्म बनाते और न उनकी असमय मृत्यु होती।

तीसरी कसम कहानी लिखने की यात्रा और फिल्म बनने के किस्से तो टुकड़ों-टुकड़ों में खूब हैं, लेकिन लेखक और पत्रकार अनंत ने उन टुकड़ों से इतर इस पुस्तक के लिए बहुत श्रम किया है। लेखक ने दो गुलफामों की तीसरी कसम पुस्तक में रेणु के किरदारों की पूरी छानबीन की है। उन्हें यह किरदार कहां मिले, उनका चरित्र और परिस्थितियां कैसी थीं और आखिर यह कहानी शैलेंद्र तक पहुंची कैसे। इस पुस्तक को पढ़ कर आश्वस्ति भी होती है कि रेणु पर काम जारी रहेगा। भारत यायावर के अचानक चले जाने से लग रहा था कि रेणु के काम को गति मिलना बंद हो जाएगी।

अनंत इस पुस्तक के पहले भी देशज अस्मिता और रेणु साहित्य का संपादन कर चुके हैं। इस पुस्तक के लिए उन्होंने बड़ी मेहनत की है। उन्होंने फणीश्वर नाथ रेणु के परिवार के सदस्यों, उनके परिचितों से मिलकर बातचीत के संदर्भ, शोधों और रेणु रचनावलीयों की मदद से कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई हैं। इससे बिखरे हुए पन्ने और कई नई बातें सामने आई हैं।

इस पुस्तक में फणीश्वर नाथ रेणु और गीतकार कवि शैलेंद्र के बीच आत्मीय संबंध को खूबसूरती से समेटा गया है। फिल्म बनाने के सफर की कठिनाईयां, फिल्म उद्योग का स्वार्थी चेहरा सब कुछ इस किताब में दर्ज है। पुस्तक पढ़ कर लगता है, तीसरी कसम सिर्फ फिल्म नहीं है बल्कि शैलेन्द्र की तपस्या थी, जिसका फल उन्हें तब नहीं मिला। जब उन्होंने दुनिया छोड़ दी, तब यह फिल्म इतिहास में दर्ज हो गई।

यह फिल्म भले ही शैलेन्द्र की पहली और आखरी फिल्म साबित हुई लेकिन उन्होंने कहानी से हिरामन और हीराबाई के पात्रों को जिस तरह लोगों के बीच पहुंचाया उसकी जानना बहुत ही दिलचस्प है। इसी तरह पुस्तक में सैकड़ों छोटी-छोटी ऐसी कहानियां हैं, जो अनंत भाषाई कौशल के साथ दर्ज करते रहे हैं।

दो गुलफामों की तीसरी कसम

अनंत

कीकट प्रकाशन

मूल्य: 650 रुपये, पृष्ठ:240

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