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14 नवंबर 2022 · NOV 14 , 2022

पुस्तक समीक्षा: स्वतंत्रता के विरले सिपाही

बसावन सिंह ने इमरजेंसी का भी विरोध किया था
समाजवादी बसावन सिंह पर महत्वपूर्ण पुस्तक

जयप्रकाश नारायण (जेपी) के समाजवादी साथी बसावन सिंह ने 1942 के आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई थी और बाद में इमरजेंसी का भी विरोध किया था। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, मधु दंडवते और सुरेंद्र मोहन जैसे प्रमुख समाजवादी उनका बड़ा आदर करते थे। जेपी ने 1974 का आंदोलन शुरू करने से पहले तीन व्यक्तियों से राय-विमर्श किया था। उन तीनों में सबसे पहले जिस व्यक्ति से उन्होंने विमर्श किया, वे उनके आत्मीय समाजवादी मित्र प्रसिद्ध सेनानी और लोकप्रिय मजदूर नेता बसावन सिंह थे। दूसरे नेताओं में कर्पूरी ठाकुर और रामानंद तिवारी थे।

हाल में बसावन सिंह की पुत्री, इतिहास की अध्येता तथा पत्रकार गायत्री शर्मा ने अपने पिता पर एक अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया, जो हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में है। उसमें सत्येंद्र नारायण सिंह, कैलाश पति मिश्र, मुनीश्वर प्रसाद सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के अलावा पूर्व रेल मंत्री मधु दंडवते, समाजवादी नेता सुरेंद्र मोहन, प्रेम भसीन, ब्रजमोहन तूफान, जेपी के सचिव तथा पूर्व सांसद शिशिर कुमार, जेपी के तीसरे सचिव सच्चिदानंद, हरकिशोर सिंह, चतुरानन मिश्र जैसे लोगों के लेख हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।

आज की पीढ़ी को शायद नहीं पता होगा कि आजादी की लड़ाई में जेल के भीतर सबसे अधिक दिनों तक भूख हड़ताल करने वाले स्वतंत्रता सेनानी बसावन सिंह ही थे। अंडमान-निकोबार की जेल में काला पानी की सजा पाने वाले व्यक्तियों को छोड़ दें तो शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसने बसावन सिंह जितना (पत्नी कमला सिन्हा के अनुसार 15 साल) लंबा समय जेल में बिताया होगा। इस ग्रंथ में कुछ लोगों ने 18 साल जेल जीवन की बात लिखी है। शायद आजाद भारत में उनके जेल जीवन को शामिल कर लिया गया हो।

बसावन सिंह का परिचय मात्र इतना नहीं है, बल्कि आजादी के बाद मजदूरों के हक के लिए लड़ने वाले वे प्रखर नेता थे, जिनके कारण डालमिया नगर के 3,600 मजदूरों की नौकरी बहाल हुई थी। आजादी की लड़ाई के दौरान वे टाटा लेबर एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष थे जबकि अध्यक्ष नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे। सुभाष बाबू के बाद वे उसके अध्यक्ष बने थे। देश के श्रमिक आंदोलन में बी.टी. रणदिवे, वी.वी. गिरी का नाम अक्सर लिया जाता है पर बसावन बाबू का योगदान उनसे कम नहीं है। बिहार में उनके जैसा श्रमिक नेता कोई नहीं हुआ।

अब कायदे से बसावन बाबू की एक जीवनी लिखे जाने की जरूरत है। उस दौर के समाजवादी क्रांतिकारियों का जीवन इतना त्यागमय, संघर्षपूर्ण और प्रेरक रहा है कि रामबृक्ष बेनीपुरी, योगेंद्र शुक्ल जैसे लोगों की भी जीवनियां लिखे जाने की बेहद आवश्यकता है।

आम पाठकों और आज की नई पीढ़ी को बसावन सिंह के बारे में पूरी जानकारी शायद ही हो। इस दृष्टि से गायत्री शर्मा ने यह अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित करके एक नेक काम किया है। गायत्री शर्मा खुद पटना टाइम्स ऑफ इंडिया में पत्रकार रही हैं और उन्होंने बिहार में समाजवादी आंदोलन के इतिहास पर पीएचडी की है तथा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की फेलो रही हैं।

ग्रंथ के आरंभ में अंग्रेजी में कुछ लेख हैं, तो दूसरे खंड में हिंदी में या अंग्रेजी में लिखे गए कुछ लेखों के हिंदी अनुवाद हैं। इसमें बसावन सिंह के कई दुर्लभ चित्र और उन पर 2000 में निकले डाक टिकट का फोटो भी है। ग्रंथ के आरंभ में कमला सिन्हा का भी लेख है जो बसावन बाबू की दूसरी पत्नी थीं। वे श्यामाप्रसाद मुखर्जी की भतीजी थीं और संयुक्त मोर्चा सरकार में विदेश राज्यमंत्री भी थीं।

आजादी की लड़ाई में हजारीबाग जेल से जेपी के भागने की कथा तो सब जानते हैं लेकिन गिरफ्तार होने के तीन दिन के भीतर पटना के बांकीपुर जेल से दीवार फांद कर भागने की बसावन सिंह की कथा बहुत कम लोग जानते होंगे। दीवार फांदने के बाद बसावन बाबू के पूरे शरीर में बबूल के कांटे चुभ गए। उन्होंने उसी अवस्था में दो किलोमीटर तक पैदल चलकर अपने डॉक्टर मित्र के पास रुक कर बबूल के कांटे निकलवाए और फिर भूमिगत हो गए। बाद में कोलकाता में उन्हें पकड़ लिया गया। गया जेल में 57 दिनों तक उनके भूख हड़ताल के दौरान की एक घटना चौंका देने वाली है। बैकुंठ शुक्ल ने उनका अनशन तुड़वाने के लिए उनकी मां को जेल में बुलाया लेकिन मां ने उलटे अपने पुत्र से कहा कि वह अनशन न तोड़े और देश की रक्षा की लड़ाई में विजयी हो। युगल किशोर पाठक ने अपने लेख में बसावन बाबू की मां को गोर्की की मां बताया है। बसावन बाबू के नायक योगेंद्र शुक्ल जैसे क्रांतिकारी थे, जिन्हें शेरे बिहार कहा जाता था। उनके कारण वे भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के भी संपर्क में थे। इस ग्रंथ से यह भी पता चलता है कि भगत सिंह हथियारों की ट्रेनिंग के लिए बिहार आए थे और योगेंद्र शुक्ल से मिले थे। योगेंद्र शुक्ल ने बिहार सोशलिस्ट लिबरेशन आर्मी बनाई थी।

जब कभी समाजवादी आंदोलन के इतिहास को विकसित किया जाएगा तो उसमें यह ग्रंथ मूल्यवान साबित होगा और नई पीढ़ी के लोगों के लिए प्रेरणादायक भी होगा। बिहार ही नहीं, देश की आजादी का इतिहास बसावन बाबू के बिना अधूरा है। मजदूर आंदोलन का इतिहास भी बसावन बाबू के बिना अधूरा है।

 

बसावन सिंहः ए रेवोल्यूशरी पैट्रियाट

संपादकः गायत्री शर्मा

प्रकाशक|अनामिका पब्लिशर्स   मूल्यः 2500 रुपये | पृष्ठः 397

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