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28 नवंबर 2022 · NOV 28 , 2022

स्त्री अस्मिता के सवाल

प्रतिगामी और विचार-शून्यता के इस दौर में, जब तमाम प्रगतिशील आंदोलनों के आवेग मंद पड़ गए हैं
परिंदे का अंक इक्कीसवीं सदी में स्त्री-कथा और स्त्री-विमर्श के आयाम पर केंद्रित है

प्रतिगामी और विचार-शून्यता के इस दौर में, जब तमाम प्रगतिशील आंदोलनों के आवेग मंद पड़ गए हैं, जब दलित, आदिवासी, स्त्रियों के खिलाफ हिंसक घटनाओं के प्रति राज्य-सत्ता और देश की सांस्थानिक व्यवस्था की उदासीनता डरावनी शक्ल ले चुकी है, स्त्री अस्मिता के सवाल और मुखर हो उठे हैं। साहित्य-संस्कृति-विचार की द्वैमासिक पत्रिका परिंदे का अगस्त-सितंबर, 2022 अंक इक्कीसवीं सदी में स्त्री-कथा और स्त्री-विमर्श के आयाम पर केंद्रित है। इसका संयोजन विमल कुमार ने किया है।

पत्रिका में वरिष्ठ साहित्यकार उषा प्रियंवदा, पंकज बिष्ट और प्रखर आलोचक रोहिणी अग्रवाल से साक्षात्कार और नई स्थितियों के द्वंद्व तथा नए विमर्श की रूपरेखा है। इनमें स्त्री-यौनिकता के सवाल भी मुखर हैं। रश्मि रावत, नीरज खरे, राकेश त्रिपाठी, शुभ्रा श्रीवास्तव के आलेख उन सूत्रों को पकड़ने की कोशिश करते दिखते हैं, जिनसे स्त्री अस्मिता के नए सवालों की अभिव्यक्ति संभव हो सके। युवा स्त्री-लेखन में यह अभिव्यक्ति गायब है, जो उसे मानवीयता के नए धरातल की ओर ले जाती है। इस अंक में 23 स्त्री-कथाकारों की कहानियां भी हैं। कुछ कहानियां नई संवेदनाओं के इर्द-गिर्द बुनी गई हैं। जो नए विचारों की खोज में हैं, उनके लिए इसमें कई सामग्री है।

परिंदे

अगस्त-सितंबर, 2022

मूल्य: 200 रुपये, पृष्ठ:165

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