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विविधता को तरजीह

जीवनी, यात्रा, संस्कृति, खान-पान जैसे विषयों पर शोधपरक और इलेस्ट्रेटेड किताबों से कितना व्यापक होगा हिंदी का संसार
दुर्लभ तस्वीरों, रेखाचित्र और आंकड़ों को समेटे बहुवचन सीरीज की किताबें पढ़ने के अनुभव को बनाती हैं रोचक

जब स्थायी संरचनाओं को गिराए बिना शहरों के विकास और नई जरूरतों के लिए जगह हासिल करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता, परंपरागत शहर निर्माण के तरीकों को बदलने के सबसे अनूठे, सरल और कम तकनीक वाली तरकीबें कुंभ नगरी से हासिल की जा सकती हैं। कुंभ की विशेषता केवल छोटी सी अवधि में निर्माण ही नहीं है, बल्कि इसे शीघ्र और बड़े कार्यकुशल ढंग से हटाना भी है।

समकालीन निर्माण सभ्यता के उलट यह नजरिया पश्चिम के शोधार्थियों को 2013 के इलाहाबाद कुंभ की तैयारियों और संरचना के गहन अध्ययन से मिला। लेकिन, हिंदी में इस तरह के विषयों पर शोधपरक पुस्तकें कम ही मिलती हैं। जैसा कि वरिष्ठ कवि एवं आलोचक प्रयाग शुक्ल ने आउटलुक से कहा, “बड़ा पाठकवर्ग होने के बावजूद हिंदी साहित्य कविता, कहानी और उपन्यास तक ही सीमित रहा है, जबकि अंग्रेजी में हर विषय पर किताबें उपलब्ध हैं।”

केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं, वन्यजीवन, बच्चों के लालन-पालन जैसे तमाम विषयों पर भी हिंदी में विकल्पों की कमी दिखती है। इसे दूर करने की पहल करते हुए अंग्रेजी के नामचीन प्रकाशक नियोगी बुक्स ने ‘बहुवचन’ के जरिए हिंदी के साहित्य संसार में दस्तक दी है। बहुवचन सीरीज की पहली 12 इलेस्ट्रेटेड (सचित्र विवरण) और शोधपरक पुस्तकें उन विषयों पर हैं जो पहले ही अंग्रेजी में आ चुकी हैं। इन किताबों का ले-आउट आकर्षक है। कवर से लेकर अंदर के पन्नों तक की प्रस्तुति पर काफी काम किया गया है। विषय को लेकर समझ स्पष्ट करने के लिए उम्दा और दुर्लभ तस्वीरों, रेखाचित्र तथा आंकड़ों का भी बखूबी प्रयोग किया गया है।

मसलन, कुंभ कितना विशाल होता है, इसे बताने के लिए सेलफोन डाटा का इस्तेमाल किया गया है। इसी तरह अपने बच्चों को कैसे खिलायें नामक पुस्तक में न केवल खानपान से जुड़े मिथक और भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश की गई है, बल्कि भारत की क्षेत्रीय विविधता को ध्यान में रखते हुए बच्चों के लिए व्यंजन बनाने की रेसिपी से लेकर उसके परोसने तक की हर चीज की गहन जानकारी दी गई है। प्रयाग शुक्ल ‘बहुवचन’ को हिंदी साहित्य में अभाव की पूर्ति करने का प्रयास मानते हैं। उनका कहना है कि इससे हिंदी का एक नया पाठकवर्ग तैयार होगा खासकर, युवा और बच्चों के बीच।

नियोगी बुक्स के प्रकाशक और प्रबंध निदेशक बिकास डे नियोगी ने आउटलुक को बताया, “अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार प्रकाशन कर भारतीय भाषाओं की पहुंच और मजबूत करना बहुवचन का मकसद है। जब हम अंग्रेजी में प्रकाशन के मानकों से समझौता नहीं करते तो भारतीय भाषाओं में इसे अनदेखा क्यों करें।” पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. कर्ण सिंह का मानना है कि मातृभाषा में इलेस्ट्रेटेड किताबें उपलब्ध होने पर पुस्तकों को लेकर बच्चों में उत्सुकता बढ़ेगी।

नियोगी बुक्स की बिजनेस डेवलपमेंट ऐंड आउटरीच ऑफिसर त्रिशा डे नियोगी ने बताया, “मातृभाषा में पढ़ने का मजा अलग होता है। हिंदी में हमने ‘बहुवचन’ से प्रकाशन की शुरुआत की है। इस सीरीज के तहत पूरे साल हर महीने एक किताब जारी की जाएगी।” उनके मुताबिक बहुवचन की शुरुआती प्रतिक्रिया काफी उत्साहजनक रही है। कंपनी को हिंदी में कुछ मेनस्क्रिप्ट भी मिले हैं। साल भर से हिंदी की मूल कृति पर इलेस्ट्रेटेड किताब प्रकाशित करने की योजना पर कंपनी काम कर रही है। आने वाले दिनों में अन्य भारतीय भाषाओं में भी इस तरह की किताबें प्रकाशित की जाएंगी।

लेखिका सलमा हुसैन ने आउटलुक से कहा, “हर कोई अपनी भाषा में अलग-अलग विषयों पर अच्छी किताबें चाहता है। न केवल कंटेंट के हिसाब से, बल्कि ले-आउट, डिजाइनिंग वगैरह में भी गुणवत्ता मायने रखती है। मेरा मानना है कि ‘बहुवचन’ जैसे प्रयासों से हिंदी का और ज्यादा प्रचार-प्रसार होगा। खासकर, वह विदेश में रह रहे उनलोगों तक भी पहुंचेगी जो अपनी मातृभाषा में किताबें पढ़ना पसंद करते हैं, लेकिन गुणवत्ता के अभाव में अंग्रेजी में प्रकाशित किताबों को पढ़ने के लिए मजबूर होते हैं।” शुक्ल कहते हैं, “किताबों का आकार-प्रकार काफी मायने रखता है। इस पैमाने पर ‘बहुवचन’ सीरीज की सभी किताबें खरी उतरती हैं। किताबों के कंटेंट, ले आउट, प्रिंटिंग हर चीज में वेरायटी नजर आती है। यह सही है कि शुरुआती सभी किताबें अंग्रेजी से अनूदित हैं। लेकिन, हिंदी के हिसाब से डिजाइनिंग वगैरह में जहां तब्दीली की जरूरत थी, की गई है। इससे हिंदी लिटरेचर और समृद्ध होगा तथा उसकी पहुंच का विस्तार होगा।”

त्रिशा ने बताया कि ‘बहुवचन’ के प्रकाशन के दौरान सबसे चुनौतीपूर्ण काम सीरीज की किताबों की कीमत तय करना रहा। उन्होंने बताया हिंदी की कई बेस्टसेलर किताबें 700 रुपये या उससे ज्यादा की हैं। इसे ध्यान में रखकर ‘बहुवचन’ सीरीज की किताबों की कीमत 500-1000 रुपये के रेंज में रखी गई है। बिना तस्वीरों वाली बेस्टसेलर किताबों का 700 रुपये में बिकना बताता है कि क्वालिटी मिलने पर हिंदी के पाठक कीमत की परवाह नहीं करते। उन्होंने बताया कि हिंदी में फिक्शन किताबों का प्रकाशन नियोगी बुक्स की फौरी प्राथमिकता नहीं है। फिलहाल, कंपनी उन पाठकों तक पहुंचना चाहती है जिन्हें मातृभाषा में हर तरह की चीजें पढ़ना पसंद है। इसी कड़ी में ‘बहुवचन’ सीरीज के तहत लता मंगेशकर पर उनके 90वें जन्मदिन पर एक किताब प्रकाशित करने की योजना बनाई जा रही है।

हिंदी के पाठक ‘बहुवचन’ के इस प्रयास को किस तरह लेते हैं यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इस सीरीज की शुरुआती सभी 12 किताबें जो जीवनी से लेकर यात्रा और भोजन से लेकर संस्कृति तक से जुड़ी हैं, पढ़ने के अनुभव को रोचक बनाती हैं और तस्वीरें ठहरने को मजबूर करती हैं।

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