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मानवीय आदर्शों की स्वीकारोक्ति

पुस्तक में संपादक की उपस्थिति दक्ष आलोचक की तरह नजर आती है
अन्वय और अन्विति साहित्य के परिसर में कुंवर नारायण

विश्व कविता में सार्थक पहचान बना चुके हिंदी के अन्यतम कवि कुंवर नारायण पर एकाग्र आलोचना-संचयन अन्वय, अन्विति साहित्य के परिसर में, कुंवर नारायण दस्तावेजी कृति है। इसका संपादन गीतकार और चर्चित आलोचक ओम निश्चल ने किया है। बड़े कैनवास का आस्वाद रचने वाली दो खंडों की संपादित किताब का पहला खंड कुंवर नारायण के व्यक्तित्व और उनके रचना-संसार पर है। दूसरे खंड में उनकी कृतियों पर एकाग्र उत्कृष्ट आलोचना से दिलचस्प पाठ निर्मित किया गया है, जो उनकी कृतियों के बहाने, रचनाकार के तौर पर सजग रोशनी डालता है। इस तरह के संयोजन में आलोचक ओम निश्चल की संतुलित दृष्टि देखते ही बनती है। उन्होंने कृतियों को केंद्र में रखते हुए कुंवर नारायण के अधिकारी विद्वानों से न सिर्फ लेख लिखवाए हैं, बल्कि प्रकाशित सामग्री का सलीके से चयन किया है। ऐसा करते हुए संपादक रीडर बनाने की कोशिश करता है और उसमें सफल दिखाई देता है। किसी भी आलोचक के लिए कुंवर नारायण की प्रतिभा को एक या दो जिल्दों में साध पाना आसान नहीं है। इसलिए कि कुंवर नारायण के रचनात्मक अवदान पर जिसका भी ध्यान जाता है, वह इस बात को लेकर गहरे अचरज में पड़ जाता है कि निहायत समकालीन अर्थों में नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में मौजूद उनका कवि मन गंभीरता से साहित्य आलोचना, प्रबंध काव्य आदि लिखने के साथ, उतनी ही बौद्धिकता से विश्व सिनेमा के अंतरंग पहलुओं पर भी विमर्श करता है। ये कुंवर नारायण के व्यापक सामाजिक सरोकार हैं, जिनकी वजह से वे भारतीय शास्‍त्रीय संगीत, प्रदर्शनकारी कलाओं और भारतीय इतिहास के तमाम सांस्कृतिक पक्षों पर सार्थकता से हस्तक्षेप करते हैं। मनुष्यता की आवाजाही से अनुप्राणित उनका सर्जक हमेशा ही मानवीयता की स्थापना के प्रति आग्रही रहा है।

पुस्तक की सबसे बड़ी सफलता यही है कि उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में संपादक की दृष्टि सधे ढंग से तटस्थ मीमांसा करती है। ऐसा करने और कुंवर नारायण विमर्श रचने में ओम निश्चल ने नए रचनाकारों की समीक्षाओं और आलोचनाओं को जरूरी महत्व दिया है। इसी से किताब में एक अलग तरह का सम्मोहन पैदा हो सका है। उदाहरण के तौर पर आत्मजयी के संदर्भ में पंकज चतुर्वेदी, ‘अपने सामने’ के लिए शिरीष कुमार मौर्य, ‘आज और आज से पहले’ के संदर्भ में कृष्ण मोहन, ‘इन दिनों’ पर आशुतोष दुबे ‘कई समयों में’ के लिए वैभव सिंह की और ‘लेखक का सिनेमा’ पर गीत चतुर्वेदी की आलोचनाएं संकलित की गई हैं। ये सभी आधुनिक समय के दृष्टि-संपन्न युवा हैं। इनकी आलोचना में नए किस्म की हरारत देखी जा सकती है। अपने से दो पीढ़ी पहले के कुंवर नारायण के रचना-संसार से जुड़कर इन कवि, आलोचकों ने हिंदी कविता के परिदृश्य पर अनूठे ढंग का कुंवर नारायण विमर्श रचा है। हिंदी के लिए यह उपलब्धि सरीखा है।

पुस्तक में संपादक की उपस्थिति दक्ष आलोचक की तरह नजर आती है। चौकस मगर आत्मीय। इस संचयन में उनका होना कुंवर नारायण के सहोदर की तरह देखा जा सकता है, जो विनयी भाव से उनके कृतित्व पर विहंगम दृष्टि डालने का उपक्रम रचने में संलग्न है। यह ओम निश्चल की सफलता है कि वे कुंवर नारायण जैसे बड़े रचनाकार के वृहत परिसर में घुसकर उनके कृतित्व की समीक्षा के इतने सुंदर सीमांत रचते हैं कि इस तरह के काम की एक स्थायी उपयोगिता साबित होती नजर आती है। हालांकि दोनों पुस्तकों में, अन्वय खंड इस मामले में बड़ा बन पड़ा है कि उसमें कुंवर नारायण के रचनाकार व्यक्तित्व पर गहरी दृष्टि के साथ लेखन संभव हुआ है, जिसमें कई पीढ़ियों के लगभग पचास रचनाकारों के निबंध शामिल हैं। कुछ उल्लेखनीय नामों में अशोक वाजपेयी, मंगलेश डबराल, हरीश त्रिवेदी, लीलाधर जगूड़ी, मुद्राराक्षस, नरेश सक्सेना, असद जैदी, गिरिधर राठी, विजय बहादुर सिंह, पुरुषोत्तम अग्रवाल, विनोद भारद्वाज, विजय कुमार, राजेश जोशी, अनामिका और रवि भूषण आदि के नाम लिए जा सकते हैं। कुंवर नारायण की रचनाओं को इतनी विपुल स्वीकार्यता मिली हुई है कि उनका आकलन पिछले पचास वर्षों में विभिन्न दौर के अंतर्गत अलग-अलग बुद्धिजीवियों, समकालीन और नवोदित रचनाकारों ने अपने-अपने ढंग से संभव किया है। आप कुंवर नारायण समग्र मूल्यांकित करते हुए यह नहीं कह सकते कि इस पर किसी एक वाद या खास विचारधारा की दृष्टि हावी है।

कुंवर नारायण दरअसल ऐसे समावेशी रचनाकार का बाना अख्तियार करते हैं, जिसमें उन्हें सराहने और सजग बौद्धिक दृष्टि से परखने वाला समाज कई स्तरों वाला मूल्यांकन करता चलता है। ओम निश्चल कुछ-कुछ अजातशत्रु भाव से अपना संपादकीय दायित्व निभाते हैं, जिसमें सबसे बड़ी कसौटी कुंवर नारायण को समग्र दृष्टि से देखने-परखने की है। बिना शोरगुल किए और किसी भी खेमे की वरीयता सूची में आए, कुंवर नारायण ने जो साहित्य, कला और आलोचना की दुनिया में सिरजा है, उसका उसी रूप में बड़े स्तर पर मर्मस्पर्शी, संवेदना से भरा हुआ, कलात्मक और आत्मीय आख्यान रचने में अन्वय और अन्विति के दो खंडों का सृजन किया गया है। यह दोनों पुस्तकें साहित्य के परिसर में कुंवर नारायण की आवाजाही का मानक विश्लेषण है। भारतीय कविता की लोकव्यापी और दार्शनिक चेतना के लिए मशहूर कुंवर नारायण के व्यक्तित्व और रचना संसार को ध्यान में रखकर बनाए गए इन दोनों रीडर का एक खास और स्थायी महत्व है, जो दिन-ब-दिन कुंवर नारायण को समझने के संदर्भ में और अधिक गहराता जाएगा।

स्वयं संपादक का यह कथन, इस पूरे आयोजन को गरिमा देता है, जब वे कुंवर नारायण पर यह कहते हैं, “कुंवर नारायण के विपुल कविता संसार, चिंतन, निबंध और डायरी से गुजरते हुए एक ऐसे कवि का बोध होता है, जो शब्दों से रची इबारत को अपनी अनुरागमयता से निरंतर सींचता और संवर्धित करता है। ऐसे कवि कभी-कभी हुआ करते हैं, जो साहित्य और ललित कलाओं को जीवनोपयोगी बनाने के लिए और कुछ मानवीय आदर्शों के लिए पूरा जीवन ही समर्पित कर देते हैं।” दोनों संचयन, ऐसी ही मानवीय आदर्शों की लिखित स्वीकारोक्ति जैसे हैं।

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