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पुस्तक समीक्षा: अनकही फैज

फैज में मोहब्बत और क्रांति का रंग ऐसा घुलामिला है कि कहना मुश्किल है कि वे मोहब्बत के शायर हैं या प्रतिरोध के
अनकही फैज

पाकिस्तान के लायलपुर के जमींदार परिवार में जन्मे शर्मीले युवक के बारे में भला कौन जानता था कि वह एक दिन दुनिया में मोहब्बत और इंकलाब के बड़े शायर हो जाएंगे। उसकी शायरी ने उन्हें न केवल अपने मुल्क बल्कि इस उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा शायर बना दिया। कालांतर में उनका नाम दुनिया के महान कवियों पाब्लो नेरुदा, नाजिम हिकमत, ब्रेख्त और लोर्का के साथ शुमार किया जाने लगा। वे मुखालफत तथा इंकलाब के मसीहा बन गए।

उसकी शायरी में शायद वह दर्द और इंकलाब न आता, अगर लियाकत अली को सत्ता से बेदखल करने वाले रावलपिंडी कॉन्सपिरेंसी केस में उन्हें फंसाया न गया होता। इस जेल यात्रा से उनकी शख्सियत में भी नया आयाम जुड़ा और जेल से निकलने के बाद नए फैज का जन्म हुआ। ये अजीम शायर आज सभी की जुबान पर हैं। वे जितना पाकिस्तान में मशहूर हैं, उससे कहीं ज्यादा भारत में लोकप्रिय हैं। मीर, गालिब और इकबाल के बाद कोई शायर लोगों की जुबान पर है, तो फैज ही हैं।

भारत के लोग उन्हें अपने वतन का शायर मानते हैं, क्योंकि उनकी शायरी में बयां दुख-दर्द, कश्मकश, क्रांति की अकुलाहट भारतीय यथार्थ की मिट्टी से मेल खाती है। फैज में मोहब्बत और क्रांति का रंग ऐसा घुलामिला है कि कहना मुश्किल है कि वे मोहब्बत के शायर हैं या प्रतिरोध के। फैज के नाती अली मदीह हाशमी ने फैज साहब की अधिकृत जीवनी कुछ साल पहले अंग्रेजी में लिखी थी। अब उसका हिंदी अनुवाद आया है। अनुवाद वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार ने किया है। हिंदी पाठकों को पहली बार इस शायर की जिंदगी के अफसानों से रू-ब-रू होने का मौका मिलेगा। जीवनी में फैज की जिंदगी और शायरी के सभी पहलुओं पर तफसील से लिखा गया है।

इसमें एक युग समेटा गया है। फैज अहमद खान का फैज अहमद ‘फैज’ बनना अपने आप में इतिहास है। पाकिस्तान की हुकूमत से टकराव ने उनके अंदर के बागी का विकास किया और उनके जीवन संघर्ष ने बड़ा शायर बना दिया। इसमें उनके वामपंथी दोस्तों का भी हाथ रहा, जिनकी सोहबत में आकर वे मार्क्सवाद की ओर झुके। प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ने के बाद उनकी शख्सियत में नया आयाम जुड़ा।

फैज की मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग, बोल कि लब आजाद हैं तेरे और यह दाग दाग उजाला शब-गजीदा सहर, वह इंतजार था जिसका यह वह सहर तो नहीं, खून के धब्बे धुलेंगे न जाने कितनी बरसातों के बाद, हम जो तारीक राहों में मारे गए जैसी पंक्तियां हर जुबान पर हैं।

बीते जमाने की मशहूर गायिका नूरजहां से लेकर मेहदी हसन और आज की मशहूर गजल गायिका राधिका चोपड़ा ने फैज की नज्मों को गाकर घर-घर पहुंचा दिया। उर्दू के अजीम शायर फैज ने जब मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग जैसी नज्म लिखी तो उनके कद्रदानों और पाठकों के मन में सवाल उठा कि आखिर फैज साहब का यह महबूब कौन है? इस जीवनी से पता चलता है कि फैज को पहली बार मोहब्बत का एहसास 17 साल की उम्र में हुआ। वह भी अफगानी लड़की से। हालांकि इस कहानी का कोई अंजाम नहीं निकला। मोहब्बत की यह आग उनके सीने में ही दबकर रह गई। बाद में उनकी एकतरफा मोहब्बत कई लड़कियों से हुई। लेकिन एक विदेशी महिला एलिस से मोहब्बत हुई, तो वे उनकी शरीकेहयात बन गईं। फैज और एलिस की पहली मुलाकात मोहम्मद दीन तासीर के घर हुई थी। तासीर साहब अमृसर के एक कॉलेज प्रिंसिपल थे। वे अल्लामा इकबाल के शागिर्द और सज्जाद जहीर के दोस्त थे। उनकी शादी क्रिस्टनबेल से हुई थी, जो एलिस की बड़ी बहन थीं। एलिस उनसे मिलने पाकिस्तान आई थीं। उनका पूरा नाम एलिस कैथरिन इवी जॉर्ज था। वे किताबों की बिक्री करने वाले परिवार में 1913 में जन्मी थीं और उनके तीन भाई थे। उनकी मां एलिस गार्टन क्रूसीफिक्स ने 1910 में उनके पिता ज्योफ्रे जॅार्ज से शादी की थी।

 फैज साहब पारंपरिक मुस्लिम परिवार में जन्मे थे। ब्रिटेन की गोरी खातून से निकाह उस जमाने में तरक्कीपसंद फैसला था। एलिस ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी की मेंबर थीं। एलिस साहसी और धैर्यवान महिला थीं। वे रंगकर्मी, पत्रकार और शायरा थीं। वे कृष्णमेनन की सेक्रेटरी भी रह चुकी थीं। बाद में वे संयुक्त राष्ट्र की अधिकारी भी बनीं। उन्होंने हर मुसीबत में फैज का साथ दिया। जब फैज रावलपिंडी कॉन्सपिरेंसी केस में गिरफ्तार हुए तब एलिस ने बड़ी हिम्मत दिखाई।

फैज की अम्मी और बहनों की ख्वाहिश थी कि फैज साहब किसी समृद्ध परिवार में शादी करें। मगर फैज एलिस से निकाह करने का मन बना चुके थे। फैज का परिवार मुश्किल दौर से गुजर रहा था क्योंकि फैज के वालिद के इंतकाल के समय परिवार पर 80,000 रुपये का कर्ज था और परिवार की ज्यादातर जमीन बिक चुकी थी।

भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती का पुल बने मकबूल शायर फैज अहमद फैज का असली नाम फैज अहमद खान था लेकिन बाद में खान मिट गया और उन्होंने अपना तख्लुस फैज ही रख लिया। फैज साहब के वालिद सुल्तान मोहमद अफगानिस्तान के अमीर के दुभाषिये और राजदूत रहे थे और उन्होंने उनकी जीवनी भी लिखी थी। 1901 से 1905 तक वे लंदन में रहे। उन्होंने ऑक्सफोर्ड से कानून की डिग्री ली थी। फैज के वालिद पाकिस्तान लौटकर बड़े वकील बने।

फैज ने जब विभाजन के हालात से दुखी होकर ये दाग-दाग उजाला लिखा तो उन्हें सरदार जाफरी जैसे तरक्कीपसंद लोगों की आपत्ति और विरोध सहना पड़ा। कम लोगों को पता है कि फैज ने जागो हुआ सवेरा नाम की फिल्म की कहानी भी लिखी थी। रोमियो-जूलियट और दिलीप कुमार अभिनीत मजदूर में उनकी नज्म का इस्तेमाल हुआ था।

प्रेम और क्रांतिः फैज अहमद फैज

अली मदीह हाशमी

हिंदी अनुवादः अशोक कुमार

प्रकाशक|सेतु प्रकाशन

मूल्य 450 रुपये | पृष्ठः 415

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