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पुस्तक समीक्षा: जीत की अंतर्कथा

कुछ जीत-हार ऐसी होती है, जो इतिहास में दर्ज हो जाती है
अमेठी संग्राम

आम तौर पर चुनावों में जीत-हार चलती रहती है। लेकिन कुछ जीत-हार ऐसी होती है, जो इतिहास में दर्ज हो जाती है। उत्तर प्रदेश की एक लोकसभा सीट अमेठी भी ऐसी सीट साबित हुई जिसे इतिहास में याद किया जाएगा। लोकतंत्र का यही शायद सबसे अच्छा पहलू है, जो किसी को भी ‌सिर आंखों पर बैठा सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने सिर्फ राहुल गांधी को नहीं हराया, बल्कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को हराया था। परंपरागत रूप से गांधी परिवार का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर कमल खिलाने की कहानी बहुत दिलचस्प है। उससे भी दिलचस्प ‘गढ़’ ढहने की कहानी है, क्योंकि गढ़ होना शब्द था, जिस पर लंबे समय से किसी पार्टी ने ध्यान नहीं दिया था। यही वजह थी कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले किसी चुनावी पंडित का ध्यान इस तरफ नहीं गया कि बड़ा उलटफेर होने वाला है।

अमेठी संग्राम में लेखक ने खुद जानकारियां इकट्ठी कीं जिनसे किताब की विश्वसनीयता बढ़ी और कई अंदरूनी दिलचस्प कहानियां सामने आईं। अमेठी की जनता का मन भांपने में चूक गई कांग्रेस पार्टी ने अपनी लापरवाही का बड़ा खामियाजा उठाया। 2014 में अमेठी की हार को स्मृति ईरानी ने अवसर के रूप में लिया और पूरे पांच साल अमेठी से रिश्ता जोड़े रहीं। यही वजह थी कि जब तक कांग्रेस चुनावी मोड में आती, तब तक स्मृति आधी जंग जीत चुकी थीं। अपनी भूमिका में अनंत विजय लिखते हैं कि जब उन्होंने अमेठी के चुनावी इतिहास को खंगाला तो एक बात तो स्पष्ट थी कि अमेठी के पास विकल्प नहीं था, इसलिए वह कांग्रेस का ‘गढ़’ बना रहा। उनका कहना है कि जब वे 2014 के चुनाव से जुड़े लोगों से मिले, तो उन्हें समझ आया कि अमेठी के लोगों में बदललाव की छटपटाहट थी और वहां के लोग चाहते थे कि कोई गंभीर उम्मीदवार आए।

देखने में यह जीत एकबारगी अप्रत्याशित लग सकती है लेकिन सच तो यह है कि स्मृति ने पांच साल मेहनत की और 2019 में मतदाताओं ने उन्हें उस मेहनत का मीठा फल दिया। पुस्तक में एक वाकये का जिक्र है, जिससे समझा जा सकता है कि स्मृति हार के बाद भी अमेठी को लेकर उदासीन नहीं थीं। 2014 में राहुल गांधी से लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद एक कार्यक्रम के दौरान पत्रकार बरखा दत्त ने उनसे पूछा, “वे राहुल गांधी से पराजित हुई हैं, क्या वे दोबारा कभी अमेठी जाएंगी?” स्मृति ने मुस्करा कर कहा, “मैं हाल ही में अमेठी ले लौटी हूं।” यह सबूत था कि उन्होंने अमेठी को सिर्फ एक संसदीय क्षेत्र के रूप में नहीं देखा था। बल्कि वे वाकई चाहती थीं कि अमेठी की जनता को मूलभूत सुविधाएं मिलें, जिससे वे वर्षों से वंचित हैं।

ऐसे कई किस्से हैं, जो बताते हैं कि स्मृति ईरानी ने वहां महिलाओं से न सिर्फ संवाद स्थापित किया बल्कि उनके सुख-दुख भी साझा किए। लोगों से जुड़ीं और अमेठी को अपना दूसरा घर बना लिया। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था, “2014 में लोगों ने सोचा था, वो आएगी, नामांकन दाखिल करेगी, हार जाएगी और वापस चली जाएगी।” लेकिन जिन लोगों ने भी ऐसा सोचा होगा, उन्हें शायद यकीन ही नहीं होगा कि कोई हारा हुआ उम्मीदवार फिर-फिर लौट कर आएगा।

अमेठी संग्राम

अनंत विजय

प्रकाशक | एका (वेस्टलैंड)

पृष्ठः 228 | मूल्यः 350 रुपये

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