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पुस्तक समीक्षा: मगध की पुनर्खोज

सांस्कृतिक अभिव्यक्तियां निरंतर सिमटती जा रही हैं
मगध पत्रिका का आवरण

श्रीकांत वर्मा ‘मगध के लोग’ कविता के उत्तरार्ध में लिखते हैं: कल की बात है/ मगधवासियों ने / अशोक को देखा था /कलिंग को जाते / कलिंग से आते/ चंद्रगुप्त को तक्षशिला की ओर घोड़ा दौड़ाते / आंसू बहाते / बिंबिसार को / अजातशत्रु को / भुजा थपथपाते/ मगध के लोगों ने / देखा था / और वे / भूल नहीं पाए हैं / कि उन्होंने उन्हें / देखा था/ जो अब / ढूंढने पर भी / दिखाई नहीं पड़ते।

प्रेमकुमार मणि की छवि कहानीकार के साथ-साथ समाज चिंतक की भी है, उनके चिंतन में शास्त्रीयता की जगह गतिशीलता का आग्रह है। अपने संपादकीय में वे कहते भी हैं कि सांस्कृतिक अभिव्यक्तियां निरंतर सिमटती जा रही हैं। साहित्य का व्योम सिमटता जा रहा है और आज का समाज मोटे तौर पर साहित्य-रहित होता जा रहा है। साहित्य को विचार और राजनीति के कोष्ठक में समेटने की संभव कोशिशें हुईं।

आलोक धन्वा और अनामिका से बातचीत है। आलोक धन्वा की कविताएं की पंक्तियां संपादक की चिंताओं को जाहिर करती हैं, ‘हम से भूल कहां हुई/जो हम इस तरह हारे/इतनी ईमानदारी/इतने शौर्य/और इतनी गरिमा के बावजूद।’ उदयन वाजपेयी खुद से बाहर निकल मनुष्य के आत्म की खोज में हैं जहां समाज शामिल है। उनकी कविता पंक्तियां, ‘मेरी स्मृति में रहते हैं/ वे शहर वे स्थान / जहां मैं जाना चाहता था/ मेरी स्मृति में रहते हैं वे व्यक्ति/ जिनसे मैं मिलना चाहता था।’ लीलाधर मंडलोई, गोविंद माथुर और संजय कुंदन के साथ कुल नौ कवियों की कविताएं हैं।

गुलाबी शहर के सफेद-स्याह पक्ष पर अपनी भाषा के कारण चर्चित लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ के विचार हैं, ‘मुझे याद है वह जयपुर जब घर अलग होते थे और बाजार अलग। उन दिनों बाजार घरों तक नहीं पहुंचे थे।’ सच यही है का आज हर शहर बाजार में समा गया है। मन्नू भंडारी को सुधा अरोड़ा ने याद किया है। उनकी स्मृति को समर्पित ‘गोपाल को किसने मारा’ कहानी को पुन:प्रस्तुत किया गया है। विनय कुमार और प्रकृति करगेती की कहानी पाठकों को नए परिदृश्य की ओर ले जाती है।

साहित्यिक-सांस्कृतिक समझ को विस्तार देती ‘मगध’ उच्चस्तरीय विमर्श का भी माध्यम बने, यह उम्मीद प्रेमकुमार मणि जैसे संपादकों से पाठक को है। श्रीकांत वर्मा की वे पंक्तियां जो पत्रिका के शुरुआती पन्ने पर है, ‘बंधुओ/यह वह मगध नहीं / तुमने जिसे पढ़ा है/किताबों में/ यह वह मगध है/जिसे तुम/मेरी तरह गंवा चुके हो। प्रेमकुमार मणि और कुमार मुकुल उसी मगध की पुनर्खोज में हैं।

मगध

प्रवेशांक जनवरी 2022

वर्ष 1, अंक 1

संपादकः प्रेम कुमार मणि

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