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पुस्तक समीक्षा/ इंसाफ और कानून का द्वंद्व

कानून और इंसाफ की मुठभेड़ की मिसाल आज के दौर से बेहतर शायद ही कोई हो
book review

कानून और इंसाफ की मुठभेड़ की मिसाल आज के दौर से बेहतर शायद ही कोई हो। कठोर कानूनों की दुहाई ऐसे दी जाने लगी है, मानो मानवीय होना कोई कमजोरी हो। कानून और इंसाफ के बहुत कुछ इसी विरोधाभास के केंद्र में चोट करती है विवेक आसरी की किताब इंसाफ एक सीधी रेखा है।

यह ऐसे जघन्य अपराध की कथा है, जो पाठक को असहज स्थिति में डालती है और जिसे आम समर्थन मिलना असंभव जैसा है। क्या व्यक्ति के आत्म-सम्मान को रिश्तों की कसौटी पर कसा जाना चाहिए? क्या चुनाव सीमित परिधि के भीतर होता है? क्या चुनने की आजादी का दायरा जीवन तक होता है, मृत्यु से उसका कोई संबंध नहीं? क्या रिश्ते केवल पूजनीय होते हैं, मानवीय चेतना से उनका कोई लेना-देना नहीं? क्या मानवाधिकार की परिभाषा घोर अपराधों पर लागू नहीं होती?

विवेक अपने किरदारों और कहानियों के जरिए विषय की हर परत टटोलते हैं। मुख्य मुजरिम एक मां है, जिसने मौन धारण कर लिया है। यहां एक कहानी दो विधाओं, लघु कथा और नाटक, में खुलती है। नाटक का मंच निर्देशन शिल्प बेहतरीन है और चरित्र चित्रण यथार्थ के स्तम्भों पर खड़ा है। एक खूबसूरत और यथोचित कविता से पाठक को एक संवेदनशील कवि की झलक भी मिलती है।

इंसाफ एक सीधी रेखा है का विषय मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा है और इसीलिए कथा का वृतांत भावनात्मक है। पुस्तक रोचक है और नए विषय को उठाने का साहस दिखाती है।

इंसाफ एक सीधी रेखा है

विवेक आसरी

प्रकाशक | मात्रा प्रकाशन

मूल्य: 90 रुपये  | पृष्ठः 88

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