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पुस्तक समीक्षा: महान सेनापति का अक्स

नई-नई मिलेनियल पीढ़ी भले याद न कर पाए, मगर फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की छवि करोड़ों भारतीयों के दिलों में चस्पां है।
पुस्तक समीक्षा: महान सेनापति का अक्स

नई-नई मिलेनियल पीढ़ी भले याद न कर पाए, मगर फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की छवि करोड़ों भारतीयों के दिलों में चस्पां है। फील्ड मार्शल की पदवी से विभूषित वे भारतीय सेना के इकलौते सेनापति रहे हैं। उन्होंने 1971 के युद्घ में भारतीय सेना की अगुआई की थी। उनके काम और उनकी शख्सियत के विविध पहलुओं का नियोगी बुक्स से प्रकाशित ब्रिगेडियर बेहराम एम. पंथकी (सेवानिवृत्त) और ज़िनोब्या पंथकी की किताब ‘फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉः अपने समय का चमकता सितारा’ में खूबसूरती और विस्तार से जिक्र है। इसमें उनके जीवन की विरली तस्वीरें मानो उनकी शख्सियत के अनछुए पहलुओं को और रोशन कर देती हैं। अक्षय कुमार सिंह का अनुवाद भी इसे पठनीय और एकदम हिंदी का मूल ग्रंथ बनाता है।

सैम मानेकशॉ अपनी रणनीतियों के लिए चर्चित तो रहे हैं, अपनी स्वतंत्र बुद्घि, लोकतंत्रधर्मी और विनम्र तथा स्नेहिल व्यवहार के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने 1971 के युद्घ में भारतीय फौज के ढाका घेर लेने के बाद पाकिस्तानी फौज का मनोबल तोड़ने के लिए आसमान से पर्चे बरसाने की रणनीति अपनाई, जिन पर उर्दू, बांग्ला, पश्तो, पंजाबी, सिंधी में लिखा था कि अब समर्पण करना ही बेहतर है। उनकी यह रणनीति काम आई और जनरल नियाजी ने समर्पण कर दिया। इन पर्चों में उन्हें पूरा सम्मान देने का भरोसा भी दिया गया था। उन्हें मानवीय गरिमा और फौजियों के साथ एक समान व्यवहार करने का विशेष ख्याल रहता था।

लेकिन वे अपने विचारों में दृढ़ भी थे। इंदिरा गांधी चाहती थीं कि वे पाकिस्तानी फौज के समर्पण के वक्त मौजूद रहें मगर उन्होंने अस्वीकार कर दिया और यह गौरव पूर्वी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा को लेने दिया। इसी तरह इमरजेंसी के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी से अपनी नाखुशी जाहिर कर दी थी। लेकिन गांधी परिवार से उनके रिश्ते बने रहे। स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के घटनाक्रम के बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सिख नेताओं से बातचीत के लिए मानेकशॉ को ही भेजा, जो वहां खासे लोकप्रिय थे। उसके बाद पंजाब समझौता हुआ।

मानेकशॉ अपने सिपाहियों और मातहतों का विशेष ख्याल रखते थे। किताब में ऐसे अनेक किस्से हैं, जिनसे उनके मानवीय पहलू पर प्रकाश पड़ता है। यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए, जिससे पता चलता है कि एक महान शख्सियत कैसे शक्ल लेती है और देश तथा इतिहास में कैसे अपनी छाप छोड़ जाती है।

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉः अपने समय का चमकता सितारा

ब्रिगेडियर बेहराम एम. पंथकी (सेवानिवृत्त) और ज़िनोब्या पंथकी

नियोगी बुक्स

मूल्यः 895 रु. | पृष्ठः 206

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