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छत्तीसगढ़: राजनीति में सबके अपने राम

राम की एंट्री से भाजपाइयों को मुद्दा छिनने की आशंका, तो हार्डकोर हिंदुत्व का जवाब सॉफ्ट हिंदुत्व से देने की कांग्रेस की कोशिश
राज्य में राम की विरासत सहेज रही भूपेश बघेल सरकार

भारतीय राजनीति में जब भी ‘राम’ नाम का जिक्र होता है तब भगवा दल भारतीय जनता पार्टी की छवि ही जेहन में आती है। लेकिन छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार इस रूढ़ सियासी स्वरूप को तोड़ने के लिए हरसंभव प्रयास करती दिख रही है। अब तक राम वन गमन पथ परियोजना से लेकर कौशल्या मंदिर चंदखुरी में दीपोत्सव, राम रथ यात्रा, नवधा मानस मंडलियों को प्रोत्साहन और स्कूलों में प्रार्थना के दौरान 'रघुपति राघव राजा राम' भजन गायन जैसे राम को समर्पित कई बड़े फैसले सरकार ने लिए हैं। भाजपा इसे वोट साधने के लिए छल करार दे रही है। विश्लेषक इसे हार्डकोर हिंदुत्व के जवाब में सॉफ्ट हिंदुत्व का एजेंडा कह रहे हैं। लेकिन कांग्रेस इसे यहां की संस्कृति में रचे बसे ‘समावेशी राम’ बता रही है।

कांग्रेस सरकार इस बात पर भी जोर दे रही है कि उनके राम भाजपा के राम से काफी अलग हैं। 7 अक्टूबर को राजधानी रायपुर से लगे चंदखुरी में माता कौशल्या मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद लोकार्पण समारोह में बघेल ने राम पर अपनी सरकार का नजरिया बताया। उन्होंने कहा, “भगवान राम को लेकर सबका नजरिया अलग है। कुछ लोगों के लिए वे वोट पाने का जरिया हैं, लेकिन हमारी तो संस्कृति में राम बसे हुए हैं। हमारे राज्य में राम को भांजा राम, वनवासी राम, गांधी के राम, कबीर के राम, तुलसी के राम और शबरी के राम के रूप में देखा जाता है। हम तो गांधी के अनुयायी हैं जिनके मुंह से आखिरी शब्द राम ही निकला था।” 

भले ही छत्तीसगढ़ सरकार राम से जुड़े अपने विभिन्न फैसलों को सांस्कृतिक सरंक्षण का नाम देकर किसी सियासी इरादे से इनकार करे लेकिन इसके प्रचार-प्रसार में वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। लिहाजा विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए वह अपना संदेश जनता तक पहुंचा रही है। राम वन गमन पथ के अंतर्गत माता कौशल्या मंदिर के जीर्णोद्धार की जानकारी देने वाले होर्डिंग राज्य की सड़कों और प्रमुख जगहों पर आसानी से देखे जा सकती हैं।

दरअसल भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के कुछ महीनों बाद ही प्रदेश में कांग्रेस की ‘रामभक्ति’ दिखने लगी थी। दिसंबर 2018 में कांग्रेस के सत्ता में आते ही उन स्थलों की पहचान कर उन्हें विकसित करने की योजना बनने लगी, जिनके बारे में मान्यता है कि वे राम से जुड़े हुए हैं। साल भर के भीतर ही इस पर काम भी शुरू हो गया और राज्य कैबिनेट ने राम वन गमन पथ को विकसित करने का निर्णय लिया।

राम नाम पर कांग्रेस के काम

मान्यता है, वनवास के दौरान भगवान राम ने छत्तीसगढ़ में लंबा वक्त बिताया था। राम जहां गए थे, ऐसे 75 स्थानों की पहचान कर सरकार ने पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का लक्ष्य रखा है। प्रथम चरण में कोरिया से सुकमा तक लगभग 137 करोड़ रुपये की लागत से नौ जगहों को संवारा जा रहा है। इनमें सीतामढ़ी हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा सप्तऋषि आश्रम (धमतरी), जगदलपुर (बस्तर) और रामाराम (सुकमा) शामिल हैं।

बघेल सरकार ने दिसंबर 2020 में दो वर्ष पूरे होने पर राम के नाम पर रथयात्रा भी निकाली थी। इसकी शुरुआत 14 दिसंबर को हुई। प्रदेश के उत्तरी छोर सीतामढ़ी और दक्षिणी छोर रामाराम से निकली रथयात्रा 17 दिसंबर को माता कौशिल्या मंदिर चंदखुरी में समाप्त हुई। पूरा बघेल मंत्रिमंडल एक बस में सवार होकर कौशल्या मंदिर में पूजा अर्चना के लिए पहुंचा था। 19 जिलों से होकर गुजरी यह यात्रा 1,575 किलोमीटर लंबी थी। हर जगह की मिट्‌टी रथ में इकट्‌ठा की गई। यात्रा जहां-जहां से होकर गुजरी वहां रामायण पाठ हुआ।

रायपुर से 24 किलोमीटर दूर चंदखुरी को माता कौशल्या की जन्मस्थली माना जाता है। यहां जलसेन तालाब के बीच माता कौशल्या का पुराना और दुनिया का इकलौता मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में भगवान राम अपनी मां की गोद में विराजित हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने राम वनगमन पथ योजना के अंतर्गत करीब 15 करोड़ रुपये की लागत से इसका जीर्णोद्धार कराया है। यहां भगवान राम की 51 फीट ऊंची प्रतिमा भी बनाई गई है जिसका लोकार्पण मुख्यमंत्री ने किया।

छत्तीसगढ़ के अधिकतर गांवों-शहरों में नवधा रामायण का आयोजन होना आम है। इस दौरान नौ दिनों तक रामचरित मानस का संगीतमय पाठ किया जाता है। विभिन्न मानस मंडलियां इसमें शिरकत करती हैं। इसे प्रोत्साहन देने के लिए भी भूपेश सरकार ने पहल की है। मानस मंडली प्रोत्साहन योजना 2021 के तहत ग्राम पंचायत, ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर पंजीकृत रामायण मंडलियों की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी और प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। इसी तरह चिन्हारी पोर्टल में पंजीकृत लगभग सात हजार रामायण मंडलियों को विशेष प्रोत्साहन के तहत वाद्य यंत्र खरीदने के लिए पांच-पांच हजार रुपये दिए जाएंगे।

भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह आउटलुक से कहते हैं, “जब चुनाव आता है तभी कांग्रेस नेता टीका लगाते हैं और चुनाव के बाद भूल जाते हैं। राम राज्य वह है जिसमें जनता सुखी रहे, जनता के लिए काम हो। यहां तो तीन साल में दो तीन-चीजें ही प्रसिद्ध हुई हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में कोल माफिया, शराब माफिया और भूमि माफिया का राज है।” वरिष्ठ भाजपा नेता कहते हैं, “कांग्रेस के लोग सिर्फ नारे लगाते हैं और कुछ नहीं करते। राम वन गमन पथ की बात करते तीन साल हो गए, यह केंद्रीय योजना का हिस्सा था लेकिन आज तक इसे लेकर एक रुपये का काम नहीं हुआ है।”

राम नाम की राजनीतिक आवश्यकता को बिलासपुर स्थित गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. अनुपमा सक्सेना रेखांकित करते हुए कहती हैं, “इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि राम भारतीय संस्कृति में रचे बसे हैं। लेकिन आज राम राजनीतिक जरूरत भी बन गए हैं। लेकिन यदि राम की आक्रमक छवि की जगह उनके सौम्य स्वरूप और मूल्यों को आगे बढ़ाया जाए तभी इसे सधा हुआ सियासी फैसला माना जा सकता है।”

वे आगे कहती हैं, “प्रदेश सरकार ने आस्था और भक्ति से इतर संस्कृति को अर्थव्यवस्था से जोड़कर सराहनीय कार्य किया है। इससे रोजगार के मौके भी निकलेंगे। हम कह सकते हैं कि जनमानस में कबीर, तुलसी, शबरी और रामनामियों के राम व्याप्त हैं। राजनीति में लोगों ने भाजपा के राम को देखा, अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के राम आकार ले रहे हैं।”

लेकिन लेखक और वरिष्ठ पत्रकार आलोक प्रकाश पुतुल इसे हिंदुत्व का ही एजेंडा मानते हैं। वे कहते हैं, “कांग्रेस को भ्रम हो गया है कि हिंदुत्व के बगैर उसका काम नहीं चलेगा। लिहाजा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस हिंदुत्व के सारे एजेंडे का अनुसरण कर रही है।” हालांकि पुतुल के अनुसार कांग्रेस को इसको फायदा नहीं मिलेगा। उनका मानना है कि कांग्रेस को समझने की जरूरत है कि रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बड़े मुद्दों को छोड़कर हिंदुत्व की राजनीति करना उसके लिए लाभदायक नहीं है। जिन्हें हिंदुत्व के नाम पर मतदान करना होगा वे सीधे भाजपा को वोट देंगे, उनकी नकल उतारने वाली पार्टी को क्यों आखिर कोई वोट क्यों देगा।

कांग्रेस का कहना है कि वे लोग जो काम कर रहे हैं, उसे भाजपा के साथ प्रतिद्वंद्विता से जोड़कर देखना ठीक नहीं है। कांग्रेस का काम अलग है और भाजपा का बिलकुल अलग। प्रदेश कांग्रेस के संचार प्रमुख सुशील आंनद शुक्ला कहते हैं कि राम वन गमन पथ को विकसित करने का कार्य भाजपा सरकार को बहुत पहले कर लेना था, लेकिन उन्होंने नहीं किया। इसलिए उनकी सरकार ने संस्कृति को सहेजने का फैसला लिया। वे दावा करते हैं, “भाजपा हिंदुओं के ध्रुवीकरण के लिए राम नाम का इस्तेमाल करती है। उसकी रामभक्ति विघटन, विद्वेष और भाई को भाई से लड़ाने वाली है, जबकि हमारी रामभक्ति छत्तीसगढ़ की संस्कृति को सहेजने के लिए है।”

राम की शरण में केजरीवाल

इन दिनों भगवान राम की शरण में जाने वाले नेताओं की संख्या लगातार बढ़ती नजर आ रही है। कभी हनुमान की भक्ति में लीन दिखने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष कर रहे हैं। उनकी ‘राम भक्ति’ दिवाली के आयोजन से लेकर मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना तक में दिख रही है।

केजरीवाल और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने त्यागराज स्टेडियम में एक भव्य पूजा आयोजन के साथ दिवाली मनाई। वहां अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की प्रतिकृति बनाई गई थी। दिवाली से कुछ दिन पहले से ही केजरीवाल ने जोर-शोर से इसका प्रचार शुरू कर दिया था। टीवी पर इसके सीधे प्रसारण के अलावा दिल्ली वासियों से कहा गया था कि वे भी मुख्यमंत्री के साथ अपने घर में पूजा करें।

मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना के तहत केजरीवाल लोगों को अयोध्या भेज रहे

केजरीवाल ने 26 अक्टूबर को अयोध्या यात्रा के तुरंत बाद दिल्ली वासियों के लिए मुफ्त तीर्थयात्रा योजना का भी ऐलान किया। बीते दिनों उन्होंने ‘मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना’ के तहत दिल्ली के सफदरजंग रेलवे स्टेशन से अयोध्या के लिए जानी वाली ट्रेन को खुद हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। उस ट्रेन में करीब एक हजार तीर्थयात्री थे, जिन्हें अयोध्या में राम लला के दर्शन कराए जाएंगे। इससे पहले सितंबर में आम आदमी पार्टी ने आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने प्रचार अभियान की औपचारिक शुरुआत अयोध्या से ही की थी। इस दौरान दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने राम जन्मभूमि और अयोध्या में हनुमान गढ़ी मंदिर में पूजा-अर्चना की थी।

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