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बिहार : दो पाटन के बीच भाजपा

दो झगड़ालू सहयोगियों जद-यू और लोजपा के बीच तालमेल बैठाना भाजपा के लिए बना सिरदर्द
दुविधाः दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी के साथ नीतीश कुमार

भारतीय जनता पार्टी के समक्ष एक बड़ी दुविधा है। जबसे एनडीए ने पिछले साल बिहार चुनाव जीता है, उसके दो सहयोगी दलों जनता दल-यूनाइटेड और लोक जनशक्ति पार्टी के बीच घमासान मचा हुआ है। राज्य में भाजपा के साथ सरकार चला रही जद-यू अब तक इस

 बात से उबर नहीं पाई है कि लोजपा के अपने दम पर चुनाव लड़ने के फैसले से उसके 25 से 30 उम्मीदवारों की हार तय हो गई। पार्टी का अब कहना है कि लोजपा उसी दिन एनडीए का हिस्सा नहीं रही, जब उसने एनडीए गठबंधन के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे।

हालांकि, भाजपा की ओर से अभी तक यह नहीं कहा गया है कि चिराग पासवान की पार्टी गठबंधन हिस्सा नहीं है। चुनावों के दौरान यह चर्चा आम थी कि चिराग ने बिहार में नीतीश को कमजोर करने के लिए भाजपा के साथ परदे के पीछे एक समझौता किया था। हालांकि भाजपा ने इस आरोप का खंडन किया था।

उधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि भाजपा को यह तय करना है कि एनडीए में लोजपा की क्या भूमिका होगी। उन्होंने हाल में दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद पटना वापसी पर कहा, “हम ऐसे मुद्दों पर विशेष ध्यान नहीं देते हैं। विधानसभा चुनाव में लोजपा ने क्या किया, यह हर कोई जानता है।”

नीतीश ने भले ही भाजपा के पाले में गेंद डाल दी हो, लेकिन उनकी पार्टी लोजपा की एनडीए में मौजूदगी पर नाराजगी जाहिर कर चुकी है। बजट सत्र की पूर्व संध्या पर एनडीए की बैठक से पहले जद-यू ने लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान को निमंत्रण देने पर कड़ी आपत्ति जाहिर की, जिसके बाद कथित रूप से भाजपा को निमंत्रण वापस लेने पर मजबूर होने पड़ा। हालांकि लोजपा ने कहा कि चिराग खराब स्वस्थ्य के कारण उस वर्चुअल मीटिंग में शामिल नहीं हो सके। लेकिन, जद-यू के प्रमुख महासचिव के.सी. त्यागी ने उस पार्टी को निमंत्रण भेजने पर सवाल उठाया, जो बिहार में एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ी थी।

लोजपा का कहना है कि वह एनडीए का हिस्सा बनी हुई है और उसका अतीत में भी जद-यू के साथ कोई गठबंधन नहीं रहा है। पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष राजू तिवारी का कहना है कि नीतीश के अधिक सीटों से चुनाव लड़ने की जिद के कारण बिहार में एनडीए का प्रदर्शन बुरा हुआ। वे कहते हैं, “नीतीश राज्य में बड़े भाई के रूप में शासन करना चाहते थे।” 

तिवारी का आरोप है कि नीतीश जद-यू के लिए 122 सीटें चाहते थे और लोजपा को 15 से अधिक सीटें देने को तैयार नहीं थे। वे कहते हैं, “हमें नीतीश के लालच और अहंकार के कारण अकेले ही चुनाव लड़ना पड़ा।” उन्होंने दावा किया कि लोजपा एनडीए से बाहर हो जाती, तो भाजपा की जीती हुई सीटों की संख्या कम हो जाती, जो उनकी पार्टी नहीं चाहती थी।

इस बीच, भाजपा को उम्मीद है कि उसके दोनों सहयोगी दलों के बीच तनाव समय के साथ कम हो जाएगा, लेकिन फिलहाल इसके कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। दोनों की लड़ाई तल्ख होती जा रही है। बिगड़ती कानून-व्यवस्था को लेकर नीतीश सरकार पर निशाना साधने के अलावा, चिराग ने मुख्यमंत्री पर अपने जमुई (आरक्षित) संसदीय क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज के निर्माण में अड़चनें पैदा करने का आरोप लगाया है।

चिराग कहते हैं कि मुख्यमंत्री ने राजनीतिक दुर्भावना के चलते जमुई मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के निर्माण के लिए जारी दो बार निविदाओं को रद्द करवाया है। उन्होंने नीतीश को पत्र लिखा, “केंद्र ने मेरे प्रयासों से जमुई जिले के खैरा ब्लॉक के अंतर्गत बेला में एक मेडिकल कॉलेज और अस्पताल को मंजूरी दे दी थी, लेकिन बिहार मेडिकल सर्विसेज ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने दो बार इसकी निविदा रद्द कर दी।” लोजपा अध्यक्ष का दावा है कि अन्य नए मेडिकल कॉलेजों का निर्माण शुरू हो चुका है, जो जमुई से साथ स्वीकृत हुए थे। “मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद जमुई के लिए निविदाएं क्यों रद्द की जा रही हैं?”

जद-यू चिराग को महत्व देने से इनकार करती है, लेकिन जाहिर तौर पर लोजपा के विधायकों और सांसदों के लिए उसके दरवाजे खुले दिखते हैं। नवादा के लोजपा सांसद चंदन सिंह और पार्टी के एकमात्र विधायक राज कुमार सिंह ने पिछले कुछ दिनों में मुख्यमंत्री के साथ बैठकें की हैं। दोनों नेताओं ने कहा है कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं पर चर्चा के लिए नीतीश से मिले थे। लेकिन कयास लगाये जा रहे हैं कि जद-यू बदले के भावना से लोजपा में फूट डालने की साजिश रच रही है।

इस महीने की शुरुआत में, बसपा के एक विधायक जद-यू में शामिल हो गए, जबकि एक निर्दलीय विधायक ने नीतीश को समर्थन देने की घोषणा की। नीतीश मंत्रिपरिषद के हालिया विस्तार में दोनों को मंत्री भी बनाया गया है। अभी भी नीतीश सरकार में पांच रिक्तियां बाकी हैं।

बहरहाल, लगता है कि भाजपा ने तटस्थ रहने का रास्ता चुना है। उसे इंतजार है कि उसके दोनों सहयोगी दलों के बीच अदावत कब खत्म होगी। यह बात और है कि जदयू और लोजपा में फिलहाल कोई जल्दी सुलह के मूड में नहीं दिख रहा।

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