भारत का ‘सिलिकॉन वैली’ कहा जाने वाला शहर बेंगलूरू गगनचुंबी इमारतों, सड़कों पर दौड़ती लक्जरी कारों और तकनीकी नवाचारों के लिए मशहूर है। पुणे, गुरुग्राम और हैदराबाद जैसे शहर भी इस तकनीकी क्रांति की चमक में पीछे नहीं हैं। इन शहरों ने भारत के आइटी उद्योग की तरक्की को न सिर्फ देखा, बल्कि उसे आकार भी दिया। टीसीएस, इंन्फोसिस और विप्रो जैसी कंपनियों ने लाखों युवाओं को नौकरियां दीं, छोटे-बड़े शहरों से आए इंजीनियरों के सपनों को पंख दिए और भारत को वैश्विक तकनीकी नक्शे पर स्थापित किया। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के अनुसार, भारत का आइटी सेक्टर 283 अरब डॉलर का है, जो देश की जीडीपी में 7 प्रतिशत और निर्यात में आधे से अधिक का योगदान देता है।
लेकिन जुलाई 2025 में एक खबर ने इस चमकती दुनिया को हिलाकर रख दिया। देश की सबसे बड़ी आइटी कंपनी, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने 12,261 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की। यह कंपनी के करीब 6,13,069 कर्मचारियों का 2 प्रतिशत है। यह भारतीय आइटी इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी छंटनी है। इस खबर ने न सिर्फ कर्मचारियों में दहशत पैदा की, बल्कि इंन्फोसिस, विप्रो और एचसीएल टेक जैसी अन्य कंपनियों में भी आशंकाओं का दौर शुरू कर दिया।
ट्रम्प का धावा
फिलहाल तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियां भारतीय आइटी सेक्टर पर दबाव बढ़ा रही हैं। अमेरिका भारत के आइटी निर्यात का सबसे बड़ा बाजार है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि टैरिफ का असर इस सेक्टर तक पहुंचने लगा है। ट्रम्प ने अमेरिकी कंपनियों को भारतीय विशेषज्ञों की सेवा लेने और अपने यहां ही सारा काम करने का आह्वान किया है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, भारत को हर साल 135 अरब डॉलर की रेमिटेंस (विदेश से देश में भेजा गया पैसा) मिलता है, जिसमें आइटी सेक्टर की बड़ी भूमिका है। यह ट्रम्प की आंख में चुभता है। वजह यह भी है कि एआइ के कारण कई काम, जो पहले भारतीय इंजीनियरों को मिलते थे, अब अमेरिका में ही पूरे हो रहे हैं, जिससे कॉन्ट्रैक्टर्स की आय घटी है। हालांकि ट्रम्प टैरिफ से आइटी सेक्टर अभी अछूता है। ट्रम्प ने ट्रेड डेफिसिट और रूस से तेल आयात के नाम पर भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है।
टीसीएस के वित्तीय नतीजे भी इस संकट की तस्वीर पेश करते हैं। अप्रैल-जून 2025 में कंपनी की आय 1.3 प्रतिशत बढ़कर 63,437 करोड़ रुपये रही, जबकि ऑर्डर बुकिंग 1.2 अरब डॉलर से घटकर 0.94 अरब डॉलर हो गई। जॉबस्पीक इंडेक्स की मानें, तो मार्च 2025 में नौकरी मिलने की दरों में 8 प्रतिशत की गिरावट आई। सालाना भी यह दर 8 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में शीर्ष 6 आइटी कंपनियों ने केवल 3,847 नई नौकरियां जोड़ीं, जो पिछले तिमाही की 13,935 से 72 प्रतिशत कम है।
भारतीय ही नहीं, बल्कि वैश्विक आइटी कंपनियों में भी बदलाव दिख रहा है। 2025 में माइक्रोसॉफ्ट ने 15,000 और आइबीएम ने 8,000 कर्मचारियों को नौकरी से निकाला। ब्लूमबर्ग के मुताबिक, माइक्रोसॉफ्ट का 30 प्रतिशत कोड एआइ जेनरेट करता है। छंटनी के आंकड़ें रखने वाली वाली कंपनी, ले-ऑफ डॉट एफवाइआइ की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से जुलाई 2025 तक 169 टेक कंपनियों ने 80,150 कर्मचारियों को निकाला, जिसमें टीसीएस की छंटनी शामिल नहीं है।
एआइ और ऑटोमेशन नया दुश्मन?
28 जुलाई 2025 को टीसीएस के सीईओ के. कृतिवासन ने छंटनी की घोषणा करते हुए इसे “कौशल में कमी” और “सीमित तैनाती अवसरों” से जोड़ा। उन्होंने एआइ की भूमिका को सिरे से खारिज किया और कहा कि कंपनी “भविष्य के लिए तैयार” हो रही है। लेकिन विशेषज्ञों की राय इससे अलग है। चर्चाएं हैं कि इस छंटनी में एआइ का हाथ है, भले कंपनी इसे औपचारिक रूप से स्वीकार्य न करे। वैश्विक परामर्श फर्म, बैन एंड कंपनी की मार्च 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, 2027 तक भारत में 23 लाख से अधिक एआई-संबंधी नौकरियां होंगी, लेकिन केवल 12 लाख कुशल पेशेवर उपलब्ध होंगे। यानी 11 लाख के पास कोई नौकरी नहीं होगी। यह आंकड़ा दर्शाता है कि एआई न सिर्फ नई नौकरियां पैदा कर रहा है, बल्कि पुराने कौशल वालों को हाशिए पर धकेल रहा है।
एआइ और ऑटोमेशन अब सॉफ्टवेयर टेस्टिंग, डेटा एनालिसिस और मैनेजरियल कार्यों जैसे दोहराए जाने वाले कामों को तेजी से अपने कब्जे में ले रहे हैं। एआई एक्सपर्ट पूनम मसंद कहती हैं कि टीसीएस की टेस्टिंग टीमों में 36-40 प्रतिशत कर्मचारी ऐसे काम करते हैं, जो अब मशीनें संभाल रही हैं। इससे कंपनी का मुनाफा 10 प्रतिशत तक बढ़ सकता है, क्योंकि मशीनें न सिर्फ तेज हैं, बल्कि इसकी लागत भी कम आती है।
विप्रो ने हाल ही में एक वैश्विक टेक फर्म के साथ मिलकर ‘एजेंटिक एआई सिस्टम’ विकसित किया, जो इंजीनियरिंग कार्यों को दोगुनी रफ्तार से पूरा करता है। नैसकॉम की रिपोर्ट बताती है कि 15 लाख से अधिक पेशेवरों को एआइ और जेन-एआइ में प्रशिक्षित किया गया है, लेकिन पुराने कौशल वाले कर्मचारी इस दौड़ में पीछे छूट रहे हैं।
सिर्फ छंटनी नहीं, बल्कि टीसीएस ने हाल ही में एक और ऐसा नीति परिवर्तन किया है जो आइटी सेक्टर और कर्मचारियों पर मंडराते संकट के बादल को उजागर करता है। टीसीएस ने अपनी नई बेंच नीति में बदलाव किया। यानी कर्मचारी के पास 35 दिनों के भीतर कोई प्रोजेक्ट नहीं आता है, तो उसकी नौकरी जा सकती है। इसके अलावा, जिन नए कर्मचारियों को नौकरी पर रख लिया गया है, उनकी जॉइनिंग में भी देरी हो रही है। इसे लेकर कर्मचारी यूनियन एनआइटीआइएस ने विरोध किया है। कर्मचारियों ने केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया को पत्र लिखकर शिकायत भी दर्ज कराई है।
उम्मीद की किरण और चुनौतियां
गुरुग्राम में एक एआई-पावर्ड हेल्थ-लाइफस्टाइल स्टार्टअप, टाइची के फाउंडर प्रद्युम्न ठाकुर आउटलुक से कहते हैं, “भारत का आइटी सेक्टर छोटे शहरों के युवाओं के लिए सपनों का पुल रहा है। लेकिन अब दुनिया बदल रही है। पहले जो बदलाव दशकों में आते थे, वे अब चंद महीनों में हो रहे हैं। अगर भारत को वैश्विक दौड़ में आगे रहना है, तो हमें अपने युवाओं को तेजी से नए कौशल सिखाने होंगे।” मर्सर मेटल इंडिया ग्रेजुएट स्किल इंडेक्स 2025 के अनुसार, केवल 42.6 प्रतिशत ग्रेजुएट नौकरी के लिए उपयुक्त हैं और 46.1 प्रतिशत ही एआई और मशीन लर्निंग रोल्स के लिए तैयार हैं। हीरो वायर्ड-गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि 77 प्रतिशत भारतीय पेशेवर के पास आधुनिक तकनीकों में कौशल की कमी है।
इस चुनौती से निपटने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। टीसीएस ने करीब पांच लाख कर्मचारियों को बेसिक एआइ स्किल्स और एक लाख को एडवांस्ड एआई में प्रशिक्षित किया है। इंफोसिस ने भी हाल के वर्षों में कई कर्मचारियों को उभरती तकनीकों को सीखने का प्रशिक्षण दिया। आइआइटी के पाठ्यक्रम में भी इन विषयों को जोड़ा जा रहा है। लेकिन पुराने सिस्टम से वाकिफ वरिष्ठ कर्मचारियों के लिए यह बदलाव आसान नहीं है।
आइटी सेक्टर मंदी का शिकार होता है, तो इसका असर दूर तलक जाएगा। प्रद्युम्न के मुताबिक, ‘‘गुरुग्राम और बेंगलूरू जैसे शहरों में रियल एस्टेट, शिक्षा, स्वास्थ्य और रिटेल जैसे क्षेत्रों की प्रगति आइटी उद्योग से जुड़ी है। छंटनी का असर इन शहरों की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है।’’ निसंदेह, भारत की ‘सिलिकॉन वैली’ अब नए मोड़ पर है। यह संकट का समय है, लेकिन अवसर भी ला सकता है। जरूरत है बदलाव को अपनाने की, ताकि भारत न सिर्फ अपनी तकनीकी चमक बरकरार रखे, बल्कि भविष्य की डिजिटल दुनिया में भी नेतृत्व करे।