Advertisement

पंजाब : बेअदबी मामले पर कांग्रेस में बगावती सुर

एसआइटी की रिपोर्ट हाइकोर्ट में खारिज होने के बाद पार्टी के नेताओं ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला
कैप्टन की मुश्किलः बाजवा और सिद्धू लगातार अपनी सरकार को निशाना बना रहे

श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के मामले में पंजाब कांग्रेस में बगावत के सुर तेज हो गए हैं। सवा चार साल के कार्यकाल में भले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार कई चुनावी वादे पूरे नहीं कर पाई, पर जिस बेअदबी के मुद्दे ने पार्टी के लिए 2017 में सत्ता की राह आसान की, आज वही कांग्रेसियों के गले की फांस बन गया है। 2015-16 में शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठबंधन सरकार के समय धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के बाद कोटकपूरा पुलिस की फायरिंग में कई बेगुनाह मारे गए थे। दोषियों को सामने लाने के लिए गठित राज्य सरकार की एसआइटी रिपोर्ट को पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट ने 9 अप्रैल को राजनीति से प्रेरित बता कर खारिज कर दिया। इसके बाद से पंजाब कांग्रेस में हलचल मची हुई है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ और सहकारिता एवं जेल मंत्री सुखजिंदर रंधावा ने तो इस्तीफा तक दे दिया, पर डैमेज कंट्रोल करते हुए मुख्यमंत्री ने इसे नामंजूर कर दिया। हाइकोर्ट के निर्देश पर मुख्यमंत्री ने एडीजीपी एलके यादव की अध्यक्षता में नई एसआईटी बनाई है जो छह महीने में रिपोर्ट देगी। लेकिन पार्टी के भीतर बने दबाव के चलते मुख्यमंत्री ने एसआइटी से जल्दी रिपोर्ट देने को कहा है।

कांग्रेस में ही चर्चा है कि जैसे 2017 के विधानसभा चुनाव में अकाली-भाजपा गठबंधन के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूटा था, उसी का सामना कांग्रेस को 2022 के विधानसभा चुनाव में करना पड़ सकता है। मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार प्रशांत किशोर के साथ चुनावी रणनीति पर बैठक में विधायकों ने बेअदबी के मामले को प्रमुखता से उठाया। ऐसे संवेदनशील मामले का तोड़ प्रशांत के पास भी नहीं है, इसलिए मुख्यमंत्री ने दिसंबर 2021 में चुनाव आचार संहिता लगने से पहले आरोपियों को उजागर करने के लिए एसआइटी में अपने खास पुलिस अधिकारी रखे हैं। हाल ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, “बेअदबी के मामलों का जिम्मेदार कोई भी आरोपी बख्शा नहीं जाएगा, भले ही वह पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल हों या उनके बेटे सुखबीर बादल।”

एक समय बेअदबी मामलों के विरोध में अकाली दल के बड़े नेता सुखदेव सिंह ढींडसा और उनके बेटे पूर्व वित्त मंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा, रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा, सेवा सिंह सेखवां जैसे टकसाली अकाली शिअद का बरसों पुराना साथ छोड़ गए थे। अब वैसे ही हालात कांग्रेस में बनते जा रहे हैं। कैप्टन को निशाने पर लेने वालों में विधायक नवजोत सिंह सिद्धू के साथ विधायक परगट सिंह, फतेह बाजवा और राज्यसभा सांसद प्रताप बाजवा भी शामिल हैं। इन्होंने अपनी सरकार के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया है।

दिसंबर 2021 में चुनाव आचार संहिता लगने से पहले आरोपियों को उजागर करने के लिए कैप्टन ने एसआइटी में अपने खास पुलिस अधिकारियों को शामिल किया है

आउटलुक से बातचीत में प्रताप बाजवा ने कहा, “एक सिख के लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब के सम्मान से बड़ी कोई सियासत नहीं, कोई पार्टी नहीं। 2017 में पंजाब में कांग्रेस सरकार को पंजाबियों ने इसलिए चुना था कि यह श्री गुरु ग्रंथ साहिब और अन्य धर्म ग्रंथों की बेअदबी के मामलों के आरोपियों को सामने लाकर उन्हें कड़ी सजा दिलाएगी, पर यहां तो सरकार की रिपोर्ट हाइकोर्ट में ठहर ही नहीं पाई।” वैसे बाजवा, अमरिंदर के खिलाफ पहले भी बोलते रहे हैं।

जुलाई 2015 में फरीदकोट के गांव बुर्ज जवाहर सिंह में गुरु ग्रंथ साहिब का पावन स्वरूप चोरी हुआ तो तत्कालीन अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। कुछ दिनों बाद पावन स्वरूप के अंग फाड़े गए, जिससे सिख समाज में भारी रोष फैल गया। सिख संगत ने आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए दो महीने तक धरना दिया। इसके बावजूद सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया। इसके बाद जब कोटकपूरा और बहिबल कलां में धरना दे रहे लोगों को हटाया जा रहा था तो पुलिस फायरिंग में बहिबल कलां में दो युवकों की मौत हो गई। कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बना अकाली-भाजपा को सत्ता से बेदखल किया। उधर सिख संगठनों के धरने जारी रहे। उन्हें उठाने के लिए 2018 में कैप्टन सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा ने कहा था कि अगर हमने इस मामले को उजागर कर पीड़ितों को न्याय नहीं दिलाया तो कांग्रेस की हालात शिअद से भी ज्यादा बुरी होगी। कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने यह बड़ी चुनौती है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement