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उम्मीदों पर फिरा पानी

नायडू को जगन से मिली मात, केसीआर को लगा झटका
वाइ.एस. जगन मोहन रेड्डी

आंध्र प्रदेश में जनादेश असाधारण रूप से स्पष्ट है। कम से कम अगले पांच साल तक चंद्रबाबू नायडू और उनके परिवार की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के लिए कोई भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है। पिछले चार दशकों के लंबे इतिहास में 175 सीटों वाली विधानसभा में  टीडीपी की सीटें पहली बार घटकर सबसे कम 23 रह गईं। लोकसभा चुनाव में भी उसके सिर्फ तीन उम्मीदवार ही जीत पाए। राज्य में इस उलटफेर का श्रेय वाइ. एस. जगमोहन रेड्डी को जाता है जो अपनी पार्टी वाइएसआर कांग्रेस को 154 सीटें जिताने में सफल रहे। उनकी पार्टी ने राज्य की 25 लोकसभा सीटों में से 22 सीटों पर जीत दर्ज की। उनकी ‘ऐतिहासिक पदयात्रा’ ने उन्हें लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया। बड़ा सबकः चुनाव पूर्व रियायतें और बड़े वादे पांच साल के कार्यकाल में अच्छा प्रदर्शन करने में नाकामी का विकल्प नहीं बन सकते हैं। नायडू और चंद्रशेखर राव जैसे क्षत्रपों को भी अपार आकांक्षाओं और अहंकार से बचना चाहिए। भ्रष्टाचार की मदद में दोस्ताना रुख नासूर है। मित्रवत मीडिया घराने महत्वाकांक्षी युवाओं को मूर्ख नहीं बना सकते हैं।

2014 में नायडू ने भाजपा के साथ गठबंधन करके टीडीपी को सफलता दिलाई थी जबकि वाइएसआर कांग्रेस की ताकत बढ़ने पर भी वह सत्ता में नहीं आ सकी थी। फिर भी रेड्डी प्रयास करते रहे।

लेकिन नायडू माहौल भांपने में विफल रहे। नायडू ने आंध्र प्रदेश के लिए अलग विशेष दर्जे को मुद्दा बनाया। उन्होंने भाजपा के खिलाफ बिखरे विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास भी किया। उनकी पार्टी के एक नेता ने माना, “निस्‍संदेह हमारी पार्टी के प्रमुख खुद ही हार के लिए जिम्मेदार हैं।” अपनी पार्टी की जीत के बाद रेड्डी ने कहा, “अंततः मतदाताओं की इच्छा सबसे ऊपर होती है।”

तेलंगाना में, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के के. चंद्रशेखर राव ने 2014 में भावनाओं के सहारे जीत हासिल की थी। इस बार वह भी राजनीतिक हवा को समझने में विफल रहे। हालांकि, उन्होंने लोकसभा चुनाव में संभावित मोदी लहर के खतरे को देखते हुए समय से पहले विधानसभा चुनाव कराए और दिसंबर 2018 में 117 सीटों में से 89 सीटें जीत लीं।

इस सफलता से उत्साहित केसीआर ने लोकसभा की 16 सीटों पर जीत की शेखी बघारी थी। वह भी नायडू की तरह विपक्षी संघीय मोर्चे में मुख्य भूमिका निभाने की आकांक्षा पाले थे, लेकिन उनका अहंकार उलटा पड़ गया। खासकर, उनकी पुत्री कविता को भी पराजय मिली। टीआरएस की सीटें घटकर नौ रह गईं। भाजपा चार और कांग्रेस तीन सीटों पर जीत गई।

केसीआर द्वारा मोदी की आलोचना और करीमनगर में उनकी राजनीति टर्निंग प्वाइंट बनी। राजनीतिक रूप से अहम उत्तरी तेलंगाना (आदिलाबाद, निजामाबाद और करीमनगर) के लोगों ने मुंह मोड़ लिया। अपने भतीजे और लोकप्रिय नेता के. हरीश राव को किनारे कर अपने पुत्र के.टी. राव को टीआरएस प्रमुख बनाने से परिवारवाद का संदेश चला गया। इसी से कविता को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के पूर्व नेता डी. श्रीनिवास के पुत्र और भाजपा के डी. अरविंद की जीत में केसीआर की अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की नीति के लिए लोगों का गुस्सा दिखता है।

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