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अस्सी के अमिताभ/जन्मदिन विशेष: नाबाद महानायक के मददगार

सहस्त्राब्दी के आरम्भ में बीबीसी द्वारा ‘स्टार ऑफ द मिलेनियम’ की उपाधि से नवाजे जाने वाले अमिताभ भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे बहुमुखी अभिनेताओं में एक रहे हैं
अमिताभ बच्चन

जब साठा (60) तब पाठा

जब अस्सी तब लस्सी।

मुहावरे को समझना भी एक समझ है।”

जब 11 अक्टूबर को जीवन के अस्सी वर्ष में प्रवेश करते हुए सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने सोशल मीडिया में उपरोक्त पंक्तियां पोस्ट कीं तो उनके लाखों प्रशंसकों को सहसा अहसास हुआ कि वह उम्र के उस पड़ाव पर आ गए हैं, जहां किसी भी पेशे में अधिकतर लोग रिटायर्ड जीवन व्यतीत करते हैं। बॉलीवुड में भी उनके अधिकतर समकालीन अभिनेता व अन्य सहकर्मी ग्लैमर की दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। लेकिन, अमिताभ अब भी इंडस्ट्री के व्यस्ततम कलाकारों में एक हैं। उनकी मांग न सिर्फ हिंदी फिल्म उद्योग में, बल्कि दक्षिण भारतीय सिनेमा में भी बरकरार है। हाल ही उनकी फिल्म चेहरे का प्रदर्शन हुआ और आने वाले दिनों में उनकी झुंड, ब्रह्मास्त्र और मे डे जैसी बड़ी फिल्में आने वाली हैं। उनके द्वारा संचालित क्विज शो, कौन बनेगा करोड़पति की लोकप्रियता में भी कोई कमी नहीं आई है। 

सहस्त्राब्दी के आरम्भ में बीबीसी द्वारा ‘स्टार ऑफ द मिलेनियम’ की उपाधि से नवाजे जाने वाले अमिताभ भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे बहुमुखी अभिनेताओं में एक रहे हैं। 1969 में सात हिंदुस्तानी से करियर की शुरुआत करने के बाद से ही उनकी अभिनय क्षमता के सभी कायल रहे हैं। इसके बावजूद, उनके लिए हिंदी फिल्म उद्योग में जगह बनाना आसान न था। जंजीर (1973) की अप्रत्याशित सफलता से उनकी किस्मत बदल गई लेकिन इससे पूर्व उनकी लगभग एक दर्जन फिल्में फ्लॉप हो गई थीं।

करियर में अमिताभ को फिल्मोद्योग के कई लोगों का समर्थन भी मिला, जिन्होंने समय-समय पर व्यक्तिगत या पेशेवर रूप में उनकी सहायता की। आखिर 52 साल के करियर में वे लोग कौन थे जो अमिताभ बच्चन को किसी न किसी रूप में उन्हें अपना मुकाम बना कर शिखर तक पहुंचाने में मददगार साबित हुए? एक नजर उन पर डालते हैं।  

सुनील दत्त-नरगिस

सुनील दत्त-नर्गिस

हर नया अभिनेता किसी प्रधानमंत्री की सिफारिश पर फिल्म उद्योग में नहीं आता है। लेकिन अमिताभ की मां तेजी बच्चन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मित्र थीं। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने अभिनेत्री नरगिस से अमिताभ को फिल्मोद्योग में पैर जमाने में मदद करने के लिए कहा। मदर इंडिया (1957) फेम अभिनेत्री ने कुछ प्रमुख फिल्म निर्माताओं के साथ उनके कुछ ऑडिशन करवाए, जबकि उनके पति सुनील दत्त ने उन्हें अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म रेशमा और शेरा (1971) में मौका दिया। हालांकि बिग बी ने फिल्म में छोटी भूमिका निभाई, लेकिन दत्त परिवार के माध्यम से उन्हें शुरूआती दिनों में इंडस्ट्री को करीब से जानने-समझने का मौका मिला।

ख्वाजा अहमद अब्बास

मशहूर लेखक-फिल्म निर्माता सात हिंदुस्तानी के लिए मुस्लिम युवा की भूमिका निभाने के लिए किसी नए अभिनेता की तलाश कर रहे थे। तब उनकी मुलाकात अमिताभ से हुई, जो कलकत्ता में अपनी 1,600 रुपये महीने की नौकरी छोड़ बंबई (अब मुंबई) में फिल्मों में करियर बनाने आ गए थे। हालांकि, अब्बास ने उन्हें 5,000 रुपये पारिश्रमिक पर काम देने से पहले उनके पिता, प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन से उनकी सहमति मांगी। अमिताभ ने अब्बास को बताया कि उनसे पूर्व कई फिल्म निर्माताओं ने उन्हें 'बहुत लंबा' कहकर रिजेक्ट कर दिया था। अब्बास एक दुबले-पतले युवक की तलाश में थे, जो परदे पर उनके कवि मित्र असरारुल हक 'मजाज़' की तरह दिख सके।

महमूद

महमूद

दो दशकों तक फिल्म उद्योग पर राज करने वाले सुपरस्टार कॉमेडियन ने बिग बी को बॉम्बे टु गोवा (1972) में मुख्य भूमिका की पेशकश की। उनके छोटे भाई अनवर अली ने उनसे उनका परिचय कराया था। सात हिंदुस्तानी में साथ काम करने के दौरान अनवर-अमिताभ दोस्त बन गए थे। बॉम्बे टु गोवा अमिताभ के लिए भाग्यशाली साबित हुआ। शत्रुघ्न सिन्हा के साथ फाइट सीक्वेंस में उन्हें देखने के बाद सलीम-जावेद उनसे प्रभावित हुए और प्रकाश मेहरा को उन्हें जंजीर के लिए साइन करने गहरी चाल (1973) के सेट पर ले गए। उससे पूर्व जंजीर को दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कुमार और धर्मेंद्र ने मना कर दिया था।

ऋषिकेश मुखर्जी

हृषिकेश मुखर्जी ने राजेश खन्ना-अभिनीत आनंद (1971) में बच्चन को एक डॉक्टर (बाबू मोशाय) के रूप में साइन किया। हालांकि उस फिल्म से खन्ना को प्रसिद्धि मिली किन्तु अमिताभ की प्रतिभा भी फिल्मोद्योग में अनदेखी नहीं गई। आनंद और नमक हराम (1974) में खन्ना के शानदार प्रदर्शन के बावजूद, ऋषि दा ने अमिताभ के साथ काम करने का फैसला किया और उनके साथ अभिमान (1973) से बेमिसाल (1982) तक कई फिल्में बनाईं जिनमें अमिताभ ने बेहतरीन अभिनय किया।

सलीम-जावेद

सुपरस्टार राजेश खन्ना ने संघर्षरत लेखक-जोड़ी सलीम-जावेद से एक तमिल हिट फिल्म के हिंदी रीमेक, हाथी मेरे साथी (1972) की पटकथा को नए सिरे से लिखने के लिए कहा, जो बड़ी हिट हुई। हालांकि, जब उन्होंने बॉम्बे टु गोवा में अमिताभ बच्चन नाम के नए अभिनेता को देखा, तो उनसे काफी प्रभावित हुए, खासकर फिल्म के एक फाइट सीन से जिसमें वे च्युइंगम चबाते हुए जमीन पर गिर कर फिर उठते हैं। अपने 'एंग्री यंग मैन' को ढूंढ़ने के बाद उन्हें जंजीर के लिए प्रकाश मेहरा को मनाने में देर नहीं लगी।

प्रकाश मेहरा

प्रकाश मेहरा

दिलीप कुमार को जंजीर के स्क्रिप्ट में पुलिस इंस्पेक्टर का चरित्र प्रभावी नहीं लगा और देव आनंद किसी ऐसी फिल्म में काम नहीं करना चाहते थे जिसमें उनपर कोई गाना न फिल्माया जाए। राज कुमार चाहते थे कि मेहरा बंबई के बजाय मद्रास (अब चेन्नई) में शूटिंग करें क्योंकि वे वहां किसी और फिल्म के लिए डेट्स दे चुके थे। धर्मेंद्र, जिन्होंने सलीम-जावेद से 16 हजार रुपये में जंजीर की स्क्रिप्ट खरीदी थी, ने बहन के कहने पर फिल्म छोड़ दी, क्योंकि उनकी मेहरा के साथ अनबन थी। जब सलीम-जावेद ने मेहरा को बच्चन को साइन करने के लिए कहा और प्राण ने समर्थन किया, तो मेहरा मान गए। बाद में दोनों ने उन्होंने कई ब्लॉकबस्टर में साथ काम किया।

मनमोहन देसाई

‘मिडास टच’ वाले फिल्म निर्माता मनमोहन देसाई बच्चन से पहली बार मिले थे, तो कतई प्रभावित नहीं हुए। बल्कि उन्हें "कब्ज से ग्रसित दिखने वाला" अभिनेता तक कह डाला। लेकिन, अपने करियर के उत्तरार्ध में उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ। जब धर्मेंद्र उनके साथ चाचा-भतीजा (1977) में काम कर रहे थे, तो उन्होंने उनके बैनर की फिल्म अमर अकबर एंथनी (1977) में काम करने से इनकार कर दिया। देसाई ने इसे दिल पर ले लिया और तुरंत बच्चन को साइन कर लिया। दोनों ने परवरिश (1977) से मर्द (1985) तक कई बड़ी हिट फिल्मों में साथ काम किया लेकिन, गंगा जमुना सरस्वती (1988) और तूफान (1989) की विफलता के बाद उनका सुनहरा दौर समाप्त हो गया।

जया भादुड़ी

जया भादुड़ी

धर्मेंद्र और मुमताज जंजीर में साथ काम करने वाले थे, लेकिन दोनों पीछे हट गए। अमिताभ की फ्लॉप फिल्मों के ट्रैक रिकॉर्ड के कारण कोई बड़ी अभिनेत्री उनके साथ काम करने को तैयार नहीं थी। लेकिन उनकी प्रेमिका जया भादुड़ी, जिन्होंने प्रकाश मेहरा की समाधि (1972) में काम किया था, अमिताभ के साथ काम करने को राजी हुईं। हालांकि बावर्ची (1972) के सह-अभिनेता राजेश खन्ना ने उन्हें इस “मनहूस” अभिनेता से दूर रहने की सलाह दी थी। जंजीर की सफलता के बाद उन्होंने अमिताभ से शादी कर ली और अभिमान (1973), मिली (1975), सिलसिला (1981) और कभी खुशी कभी गम (2001) में साथ काम किया।

यश चोपड़ा

यश चोपड़ा ने भले ही अमिताभ के साथ दीवार (1975), कभी-कभी (1976), त्रिशूल (1977), काला पत्थर (1979) और सिलसिला बनाई हो, लेकिन बाद के वर्षों में उन्हें उनके करियर को नया जीवन देने का श्रेय भी दिया जाता है। उनके बैनर तले बनी मोहब्बतें (2000) से अमिताभ ने दूसरी पारी शुरू की। नब्बे के दशक के अंत में जब अमिताभ वित्तीय संकट का सामना कर रहे थे, तो एक सुबह वे चोपड़ा के घर गए और उनसे काम मांगा। फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

सिद्धार्थ बसु

सिद्धार्थ बसु

भारत के सबसे प्रसिद्ध क्विजमास्टर सिद्धार्थ बसु ने स्टार टीवी के समीर नायर के सुझाव पर लोकप्रिय अंतरराष्ट्रीय टीवी गेम शो ‘हू वॉन्ट्स टु बी ए मिलियनेयर’ के हिंदी संस्करण कौन बनेगा करोड़पति (2000-21) के मेजबान के रूप में बिग बी को चुना। तब तक किसी बड़े स्टार ने ऐसा टीवी शो नहीं किया था। बच्चन भी शुरू में हिचकिचा रहे थे, लेकिन जब उन्होंने इसके मूल स्वरूप को देखा और उनसे वादा किया गया कि इसका प्रारूप वही रहेगा, तो वे राजी हो गए। यह ऐसा निर्णय था जिसने भारतीय टेलीविजन का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया।

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