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मार्केटिंग का कुंभ

कुंभ का गहरा सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक और मार्केटिंग महत्व है
कुंभ को लेकर मार्केटिंग

स्मार्ट विश्वविद्यालय द्वारा कुंभ विषय पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त निबंध इस प्रकार है :

कुंभ का गहरा सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक और मार्केटिंग महत्व है। कुंभ है, तो पब्लिक है, पब्लिक है तो मजमा है। वो वाला वॉशिंग पाउडर यह बताने की कोशिश कर रहा है कि उसका तो निर्माण ही कुंभ में सफाई कार्यों हेतु हुआ है। उस वॉशिंग पाउडर की कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर का बस चले, तो यह बता दे कि उसकी कंपनी का वॉशिंग पाउडर उतना पुराना है, जितना पुराना कुंभ है। बल्कि, वॉशिंग पाउडर कुंभ के मुकाबले कुछ ज्यादा ही पुराना है। प्राचीन काल में कुंभ में यानी घड़े में उस कंपनी का वाशिंग पाउडर डाला जाता था, फिर उसमें कपड़े धोए जाते थे। इस आशय के इश्तिहार भी कुंभ में दिखाई दे सकते हैं। टूथपेस्ट बनाने वाले यह बताने पर आमादा हैं कि प्राचीन काल में तमाम राजा-रानी उनके टूथपेस्ट से दांत साफ करके ही कुंभ स्नान किया करते थे। ऐतिहासिक यात्री मेगस्थनीज, मार्को पोलो ने भी उनके टूथपेस्ट के बारे में अपने संस्मरणों में लिखा है। वो यहीं-कहीं किसी न किसी वाट्सऐप ग्रुप के संदेशों में मिल जाएंगे। इस टीप के साथ कि बिका हुआ मीडिया नहीं बताएगा कि यह वाला टूथपेस्ट मेगस्थनीज इस्तेमाल करता था।

इस्तेमाल तो भइया सब कर रहे हैं कुंभ का, अपनी-अपनी स्टाइल से। कोई टूथपेस्ट बेचकर जा रहा है, कोई इमेज बेचकर जा रहा है। संत जमा हैं, नेता जमा हैं, मार्केटिंग वाले जमा हैं। टीवी चैनल जमा हैं, एक टीवी चैनल ने सर्कस बाबा दिखाए। ये बाबा इतनी स्पीड से इधर से उधर, उधर से इधर होते हैं कि या सर्कस के किसी जिमनास्ट की याद आती है या शिवसेना के नेता की। दोपहर को भाजपा के साथ गठबंधन सीटों की बात, शाम को तेलुगुदेशम के धरने पर, अगली सुबह राहुल गांधी की तारीफ, दोपहर को “भाजपा के साथ गठबंधन कायम है” वाला बयान। शिवसेना वाले जिमनास्ट बाबा से सीख कर आए हैं या जिमनास्ट बाबा शिवसेना से यह पता लगाना मुश्किल है।

तरह-तरह के बाबा हैं, एक हैं धूं-धूं बाबा। ये हमेशा मुंह से धूं-धूं, हट-हट, फट-फट की आवाज निकालते हैं। एक टीवी चैनल पर इन बाबा का बड़ा माहात्म्य गाया जा रहा था। गौर से देखें, तो हिंदी समाचार चैनलों पर भी लगभग इसी तरह के स्वर उठते रहते हैं, हट-हट, फूट-फूट... टीवी पर चल रही राजनीतिक बहसों को देख लें या खुद एंकर को देख लें। सभी एंकर परमानेंट फुंकार बाबा की सी धज में रहते हैं।

कुंभ में नेता आ रहे हैं, नहा रहे हैं और नहाने की फोटू खिंचा रहे हैं। नहाना निजी कर्म है। नहाइए और निकल जाइए। पर न-न नहाना निजी कर्म है पर वोट लेना तो सार्वजनिक कर्म है न। कुंभ में नहाकर फोटू डालनी पड़ती है, ताकि सब समझ लें कि हम भी धर्मप्राण हैं। धर्म के लिए प्राण लेनेवाले भी अपने कुंभ स्नान की धर्मप्राण टाइप फोटू धकेल रहे हैं। वोट सबसे बड़ा धर्म है इसके लिए प्राण लेने पड़ें या नहाते हुए दिखना पड़े, सब करेंगे। नहाना जरूरी नहीं है, नहाने की मार्केटिंग जरूरी है। वोट खैंचने के लिए नहाने की मार्केटिंग कीजिए, नोट खैंचने के लिए वॉशिंग पाउडर को कुंभ से जुड़ा हुआ बताइए। मार्केटिंग में सब करना पड़ता है।

टूथपेस्ट, वॉशिंग पाउडर, साबुन, इमेज सब बेचकर जाएंगे। कुंभ है जी कुंभ। पब्लिक सब खरीद लेती है। खरीदे ही जा रही है। मैं दुखी होता हूं कि उस चैनल पर उस डायन को जाने क्या-क्या करते हुए दिखाया जाता है। चैनल वाले से मैंने कहा, भई क्या डायन-चुड़ैल दिखाते हो, कुछ अच्छा दिखाओ। चैनल वाला बोला, पब्लिक को वह डायन बहुत पसंद है, उस शो की टीआरपी आसमान छू रही है। आप कौन हैं, पब्लिक के डायन प्रेम में रोड़ा डालने वाले।

मैं कौन जी? बतौर नेता पब्लिक ऐसे-ऐसे भ्रष्टों, ऐसे-ऐसे झूठों को अपना नेता चुन लेती है तो मैं परेशान होने वाला कौन। धर्म में जिनकी कोई आस्था नहीं वो कुंभ में घंटों स्नान के फोटू डाल रहे हैं। पब्लिक पसंद कर रही है, मैं कौन। डायन, भूत, चुड़ैल और नेताओं को पब्लिक अपने हिसाब से चुनने को स्वतंत्र है, मैं कौन या कोई भी कौन। आइए चैन से कुंभ का टीवी कवरेज देखें। एक टीवी चैनल पर बताया जा रहा है कि वह वाले बाबा पचास दिनों से सिर नीचे, पैर ऊपर करके पड़े हुए हैं। मेरे मन में सवाल उठता है कि यह तो सर्कसगीरी है, इसमें अध्यात्म कहां से आ गया। पर, पब्लिक लहालोट है, महान बाबा हैं। मैं कौन जी, कि किसी की महानता पर शक करूं। आइए श्रद्धा से उल्टेश्री बाबा की वंदना करें और उस वाले टूथपेस्ट को खरीदें जो कुंभ के नाम पर धुआंधार बेचा जा रहा है।

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