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मराठा वोटरों पर जोर-आजमाइश

शरद पवार को घेरकर भाजपा-शिवसेना की सत्ता में दोबारा वापसी की रणनीति मगर राकांपा-कांग्रेस उसे ही हथियार बनाने की कोशिश में
साथ-साथः मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, शि वसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की रैली

भले ही महाराष्ट्र के राजनीतिक दल टिकटों के बंटवारे और गठबंधन को मजबूत करने में ज्यादा समय लगा रहे हैं, लेकिन राज्य की जनता कई संकटों का सामना कर रही है। राज्य का पश्चिमी हिस्सा और आधा विदर्भ बाढ़ का सामना कर रहा है। किसान फसलें बर्बाद होने और गन्ना के भुगतान में हो रही देरी से परेशान हैं। ऐसा ही हाल आम आदमी का है, जो प्याज की बढ़ती कीमतों और अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती का सामना कर रहा है। ऐसे माहौल में सत्तारूढ़ दल का जोर जहां राष्ट्रवाद के मुद्दे को भुनाने पर है, वहीं विपक्ष अपनी एकजुटता बनाए रखने और सरकार पर बदले की राजनीति करने के आरोप लगाकर सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं, “पार्टी चुनावों में केंद्र सरकार के पिछले पांच साल के कार्यों और नई सरकार के अब तक के कार्यों के आधार पर वोट मांगेगी। इसमें कश्मीर से संबंधित फैसले से लेकर सरकार के सभी अहम काम शामिल हैं। इसके अलावा पिछले पांच वर्षों में राज्य सरकार ने जो काम किए हैं, वह हमारी जीत का आधार बनेंगे।”

विपक्ष का कहना है कि सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए विरोधी नेताओं को निशाना बना रही है। उसका कहना है कि इस समय राज्य कृषि संकट, दलित उत्पीड़न, बेरोजगारी, गिरती अर्थव्यवस्था से परेशान है, लेकिन सरकार इन मुद्दों को दबाना चाहती है। उनके आरोप को इसलिए भी बल मिलता है, क्योंकि 21 सितंबर को चुनाव तिथि का ऐलान होने के तीन दिन बाद 24 सितंबर को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के संस्थापक और राज्य के चार बार मुख्यमंत्री रह चुके शरद पवार को प्रवर्तन निदेशालय ने 2,500 करोड़ रुपये के महाराष्ट्र स्टेट कोअॉपरेटिव घोटाले में आरोपी बना दिया। प्रवर्तन निदेशालय की एफआइआर में शरद पवार के साथ उनके भतीजे और पूर्व उप मुख्यमंत्री अजित पवार का भी नाम है। कार्रवाई के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, “चुनावों के ठीक पहले जिस तरह शरद पवार पर आरोप लगाए गए हैं, उससे साफ है कि भाजपा बदले की राजनीति कर रही है।”

दिन बहुरेंगेः राकांपा और कांग्रेस के लिबए पांच साल बाद सत्ता में वापसी की बड़ी चुनौती

इस लड़ाई को शरद पवार ने बड़ी चतुराई से मराठी अस्मिता से जोड़ लिया है। उन्होंने कहा, “मराठा कभी दिल्ली की गद्दी के आगे नहीं झुका है। भले ही पवार ऐसा कर नया मुद्दा आगे लाना चाहते हैं ले‌किन उनके ल‌िए अपनी बिखरती पार्टी को भी संभालना सबसे बड़ी चुनौती है। हालांक‌ि पवार का बयान भाजपा की मुसीबतें बढ़ा सकता है, इसका एहसास होते ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस सामने आ गए। उन्होंने कहा, “कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में कार्रवाई राजनीतिक उद्देश्य से नहीं हो रही है। इस मामले का राज्य सरकार से कोई मतलब नहीं है। उच्च न्यायालय के आदेश पर कार्रवाई की जा रही है।” जबकि राकांपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता नवाब मलिक का कहना है कि विपक्षी नेताओं पर हमला करना भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। वह सरकारी जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करने से भी बाज नहीं आ रही है। लेकिन जनता सब देख रही है। शरद पवार जैसे नेता को वह ऐसे मामले में फंसाने की कोशिश कर रही है, जिससे उनका लेना-देना नहीं है। मुख्यमंत्री फड़नवीस राज्य के असल मुद्दों को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।

महाराष्ट्र में आरएसएस के एक नेता का कहना है कि विपक्ष का इस समय एक ही चेहरा है, और वह है शरद पवार। अगर उनको काबू में कर लिया गया तो भाजपा-शिवसेना गठबंधन को दोबारा सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता। उनका कहना है कि राकांपा के वोट बैंक में सेंध लगाने से भाजपा के लिए मराठा वोटरों को अपने पक्ष में करना आसान होगा।

मराठा वोट भाजपा के लिए कितना अहम है, यह इसी से समझा जा सकता है कि वह लगातार दूसरे दलों के मराठा नेताओं को पार्टी में शामिल कर रही है। इसी कड़ी में सतारा के सांसद और राकांपा के नेता उदयनराजे भोसले भाजपा में शामिल हुए। भाजपा उन्हें शिवाजी की 13वीं पीढ़ी के वंशज के रूप में प्रचारित भी कर रही है। राकांपा नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने पर नवाब मलिक का कहना है कि ऐसे नेताओं को जनता सबक सिखाएगी। भाजपा मराठों को शिक्षा में 12 फीसदी और सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी आरक्षण के फैसले को भी भुनाना चाहती है। पार्टी के नेताओं का मानना है कि अगर भाजपा, राकांपा के वोट बैंक में सेंध लगा लेती है, तो उसके लिए शिवसेना से मोलभाव करना आसान होगा।

असल में भाजपा और शिवसेना का इस समय चुनावों के बाद की रणनीति पर ज्यादा फोकस है। दोनों की कोशिश है कि अगर सरकार बनाने की स्थिति आए तो वह ज्यादा से ज्यादा मोलभाव कर सके। सीटों का बंटवारा कितना कठिन है, यह शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत के बयान से समझा जा सकता है। उनका कहना है कि भाजपा और शिवसेना में सीटों का बंटवारा भारत के बंटवारे से भी ज्यादा मुश्किल है।

इससे साफ है कि दोनों दल किसी भी हालत में चुनाव के बाद अपनी स्थिति कमजोर नहीं होने देना चाहते हैं। लेकिन दोनों दलों को यह हकीकत पता है कि अलग-अलग होकर कांग्रेस-राकांपा गठबंधन से मुकाबला करना आसान नहीं होगा। इसील‌िए लंबे मोल-भाव के बाद भाजपा के 162 और श‌िवसेना के 126 सीटों पर चुनाव लड़ने का फॉर्मूला तैयार हुआ है। समझौते के तहत भाजपा को अपनी सीटों में से सहयोगी दलों रिपब्ल‌िकन पार्टी ऑफ इंड‌िया (आठवले), राष्ट्रीय समाज पक्ष, श‌िव संग्राम और रैयत क्रांत‌ि पार्टी को भी सीटें देनी होंगी। समझौते से लगता है क‌ि श‌िवसेना 50-50 फॉर्मूले को लागू कराने में कामयाब रही है।

सूत्रों के अनुसार शिवसेना दो फॉर्मूले पर काम कर रही है। एक तो वह चाहती है कि दोबारा सत्ता में आने पर ढाई साल भाजपा का मुख्यमंत्री हो और ढाई साल शिवसेना का। अगर इस पर बात नहीं बनती है, तो शिवसेना का उप मुख्यमंत्री हो। वैसे भी ठाकरे परिवार ने चुनाव में सीधे तौर पर नहीं उतरने की अपनी रणनीति बदल दी है। इस बार पार्टी उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे को चुनाव में उतारने जा रही है। ऐसे में अगर गठबंधन की सरकार बनी तो आदित्य ठाकरे को अहम पद मिलेगा। हालांकि मुख्यमंत्री फड़नवीस हर मौके पर यह इशारा करने से नहीं चूकते हैं कि भाजपा-शिवसेना की गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री पद पर उनके अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। क्या मुख्यमंत्री पद पर खींचतान हो सकती है, इस पर प्रकाश जावड़ेकर का कहना है, “किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है। यह दोनों दल खुद देख लेंगे।” भाजपा सहयोगी दलों के अलावा छोटे विपक्षी दलों में भी सेंध लगा रही है। इसी की एक कड़ी स्वाभिमानी शेतकारी संघठना के राज्य अध्यक्ष रविकांत टपकर का हाल ही में भाजपा में शामिल होना है। यह पार्टी अध्यक्ष राजू शेट्टी के लिए बड़ा झटका है। इसी तरह वंचित बहुजन अघाड़ी समाज के वरिष्ठ नेता गोपीचंद पडलकर ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है।

जहां तक कांग्रेस और राकांपा गठबंधन की बात है, तो उसने भाजपा-शिवसेना से काफी पहले सीट बंटवारे का फॉर्मूला तैयार कर लिया है। दोनों दल अब टिकटों का भी ऐलान कर रहे हैं। कांग्रेस ने 51 उम्मीदवारों की पहली सूची  जारी कर दी है। लेकिन इस गठबंधन में छोटे दल कांग्रेस और राकांपा के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं। कांग्रेस-राकांपा ने 125-125 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया और दूसरे क्षेत्रीय दलों को 38 सीटें दी हैं। पेंच यहीं फंसा है। छोटे दल कम से कम 50 सीटें मांग रहे हैं। हालांकि इस मामले पर सोनिया गांधी के साथ हुई कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई के नेताओं की बैठक में यह साफ हो गया है कि अगर नौबत आई तो छोटे दलों से किनारा किया जा सकता है। तब कांग्रेस 150 सीटों पर और राकांपा 138 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस महासचिव और पूर्व सांसद अविनाश पांडे का कहना है, “सीटों के बंटवारे पर कोई भ्रम नहीं है। पार्टी ने 117 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम तय कर लिए हैं। भाजपा-शिवसेना असल मुद्दों से जनता को भटकाना चाहती हैं। राज्य में किसान परेशान हैं, युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रही हैं और उद्योग धंधे बंद हो रहे हैं। ये सब सरकार की विफलता दिखाते हैं। हम जमीनी स्तर पर हकीकत देख रहे हैं। निश्चित तौर पर कांग्रेस-राकांपा गठबंधन की ही सरकार बनेगी।”

साफ है कि महाराष्ट्र के चुनाव में भाजपा-शिवसेना के लिए सत्ता में वापसी आसान नहीं है। 1995 में भी जब दोनों दलों की सरकार बनी थी, तो दोबारा सत्ता में नहीं आ पाई थी। वहीं, कांग्रेस और राकांपा पांच साल बाद सत्ता में वापसी करती हैं तो लोकसभा की हार के बाद बिखरे विपक्ष में नया आत्मविश्वास आ जाएगा। 

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