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बगावत से कमजोर

सुखबीर बादल के तीसरी बार अध्यक्ष बनने से वरिष्ठ नेता नाराज
पंजाब-अकाली दल, तीसरी बार सेहराः अध्यक्ष की पगड़ी पहनते सुखबीर

शिरोमणि अकाली दल में एक बार फिर बगावत के सुर तेज हो गए हैं। सुखबीर सिंह बादल 14 दिसंबर 2019 को लगातार तीसरी बार शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष बनाए गए, तो इसके विरोध में पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा और उनके पुत्र पूर्व वित्त मंत्री परमिंदर सिंह ढींढसा ने पार्टी की गतिविधियों से दूरी बना ली। सुखबीर बादल को अध्यक्ष बनाने के लिए दरबार साहिब, अमृतसर में बैठक हुई थी, लेकिन ढींढसा नहीं आए। 18 दिसंबर को अपने गृह क्षेत्र संगरूर में कार्यकर्ताओं की रैली में उन्होंने शिअद से दूरी बनाने के संकेत दिए। पिछले साल भी 16 दिसंबर को पूर्व सांसद रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, रतन सिंह अजनाला और पूर्व मंत्री सेवा सिंह सेखवां ने शिअद से अलग होकर टकसाली अकाली दल का गठन कर लिया था। ढींढसा टकसाली अकाली दल के साथ हाथ मिलाते हैं या अपनी पार्टी खड़ी करते हैं, यह अभी साफ नहीं है।

अक्टूबर में राज्यसभा में शिअद संसदीय दल के नेता पद से सुखदेव सिंह ढींढसा के इस्तीफा देने के बाद साफ हो गया था कि पार्टी में उनकी दाल नहीं गल रही। आउटलुक से बातचीत में सुखदेव सिंह ढींढसा ने कहा, “बादल परिवार की जागीर बने शिअद की साख गिरने के जिम्मेदार सुखबीर बादल हैं, उन्हें फिर से अध्यक्ष बना दिया गया है। मास्टर तारा सिंह, संत लोंगोवाल जैसी हस्तियां अकाली दल में रही हैं, लेकिन अब सुखबीर बादल ने इसे निजी जायदाद बना लिया है। 70-70 उपाध्यक्ष, 25-30 महासचिव केवल नाम के पदाधिकारी हैं। पार्टी में लोकतंत्र नहीं रहा।” उन्होंने कहा कि 1920 में शिरोमणि अकाली दल की स्थापना सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि गुरुद्वारों को आजाद कराने के लिए हुई थी। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) बादल परिवार के सियासी संरक्षण से मुक्त होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि पार्टी से नाराज होकर घर बैठे सैंकड़ों नेताओं से संपर्क किया जा रहा है। हालांकि शिअद प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि इससे पार्टी की मजबूती पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

17 मार्च 2017 को पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार बनने से पहले लगातार दस साल (2007-2017) तक शिअद की सरकार थी। दूसरे कार्यकाल के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पार्टी अध्यक्ष की कमान बेटे सुखबीर को सौंप दी थी। बतौर उप-मुख्यमंत्री, सरकार की कमान भी सुखबीर के हाथों में ही थी। राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रकाश सिंह बादल के हाशिए पर चले जाने से शिअद के वरिष्ठ नेता सुखबीर के नेतृत्व में घुटन महसूस करने लगे हैं। सुखबीर के अध्यक्ष बनने के बाद टकसाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा और सुखदेव सिंह ढींढसा की हैसियत पार्टी में नहीं रह गई। बादल के समकालीन रहे शिअद के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि पुत्रमोह में प्रकाश सिंह बादल ने 99 वर्ष पुराने शिअद और इसके वरिष्ठ नेताओं को दांव पर लगा दिया। सुखबीर अपने पिता का उपयोग एक ढाल के रूप में करते रहे हैं। धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी मामले पर जस्टिस रणजीत सिंह की रिपोर्ट के बाद जब सुखबीर बादल को अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की कड़ी आलोचना से गुजरना पड़ा, तो इसका सामना करने के लिए उन्होंने अपने पिता को आगे कर दिया था।

भाजपा के लिए भी झटका

2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में जीत की रणनीति बुन रही भाजपा के लिए यह बड़ा झटका है कि शिअद बिखरती जा रही है। एक के बाद एक वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ रहे हैं और सुखबीर बादल के खिलाफ बगावत के सुर थम नहीं रहे हैं। 2018 में जब बगावत बढ़ी थी, तो सुखबीर ने अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की थी। लेकिन अब तीसरी बार फिर शिअद की कमान सुखबीर के हाथों में सौंपे जाने से पार्टी के लोकतांत्रिक ढांचे पर इसके नेता ही सवाल खड़े कर रहे हैं। जानकार मानते हैं कि कमजोर होते अकाली दल से किनारा कर भाजपा 2022 का विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने का विचार कर सकती है।

 

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 एसजीपीसी बादल परिवार की जकड़न से मुक्त हो। सैकड़ों नाराज नेताओं से संपर्क हो रहा है

सुखदेव सिंह ढींढसा, राज्यसभा सदस्य

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