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80 पार के युवा /अमिताभ-धर्मेंद्रः जय-वीरू का जज्बा

उम्र बस एक आंकड़ा भर, अस्सी साल के अमिताभ और सत्तासी साल की दहलीज पर खड़े धर्मेंद्र ने अपनी सक्रियता से यह बखूबी साबित किया
धर्मेंद्र, अमिताभ हैं सदाबहार

इस वर्ष जुलाई में अमिताभ बच्चन के साथ शूटिंग करते वक्त पांच-छह वर्षीय एक सह-कलाकार ने अचानक उनसे उनकी उम्र पूछी। उनके यह कहने पर कि वे अस्सी वर्ष के हैं, बच्चे ने हैरानी जताते हुए पूछा कि वे अभी भी काम क्यों कर रहे हैं? “गो होम एंड चिल!” उसने महानायक को काम करने के बजाय घर पर रहकर आराम करने की सलाह दी, ठीक वैसे ही जैसा उसके दादा-दादी उम्र के उस पड़ाव पर कर रहे हैं। अमिताभ उस प्रश्न को सुनकर कुछ सोचने को जरूर मजबूर हो गए, लेकिन ऐसा ख्याल शायद ही उनके जेहन में कभी आया हो कि फिल्म स्टूडियो की आपाधापी से दूर अब उनके लिए वाकई ‘चिल’ करने का समय आ गया है। इस वक्त तो वे अपने करियर के व्यस्ततम दौर में हैं।

इस 11 अक्टूबर को अमिताभ के अपनी जिंदगी के अस्सी वर्ष पूरे कर लिए हैं, लेकिन 1969 में सात हिन्दुतानी से अपनी फिल्मी जिंदगी का आगाज करने के 53 साल बाद भी अगर पिछले दशक में अक्षय कुमार के बाद किसी बड़े अभिनेता की सबसे अधिक फिल्में प्रदर्शित हुईं हैं तो वे बिग बी ही हैं। उनके जन्मदिन वाले सप्ताह उनकी नवीनतम फिल्म गुडबाय प्रदर्शित हुई है जिसमें उन्होंने युवा अभिनेत्री रश्मिका मन्दाना के साथ केंद्रीय भूमिका निभाई है। 10 अक्टूबर से डिज्नी-हॉटस्टार पर शुरू हुई सिरीज द जर्नी ऑफ इंडिया में वे सूत्रधार बने हैं। कुछ हफ्ते पहले ही वे बहुचर्चित फिल्म ब्रह्मास्त्र (2022) में दिखे थे। आने वाले दिनों में उनकी कई अन्य फिल्में प्रदर्शित होंगी। फिल्मों के अलावा वे अन्य कई क्षेत्रों में व्यस्त हैं। उनके द्वारा संचालित लोकप्रिय गेम शो कौन बनेगा करोड़पति के 1,000 से अधिक एपिसोड प्रसारित हो चुके हैं और इसके नए सीजन का प्रदर्शन बदस्तूर जारी है। फिल्मों और टेलीविजन के अतिरिक्त, बच्चन साहब, जैसा उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में संबोधित किया जाता है, दर्जनों विज्ञापन और कैंपेन में व्यस्त देखे जाते हैं। यहां तक कि अमेजन की अलेक्सा के हिंदी संस्करण में भी उनकी जादुई आवाज सुनी जा सकती है। उम्र के नौवें दशक में भी अमिताभ उतने ही ऊर्जावान दिखते हैं जितना वे सत्तर के दशक में मनमोहन देसाई-प्रकाश मेहरा के मल्टी-स्टारर युग में दिखते थे। अभिनय के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण को देखकर कई लोग हतप्रभ हैं। मशहूर स्क्रिप्ट लेखक सलीम खान, जिन्होंने जावेद अख्तर के साथ अमिताभ की कई सुपरहिट फिल्में विगत में लिखी हैं, का मानना है कि अमिताभ ने अपनी जिंदगी और करियर में हर मुकाम हासिल कर लिया है और उन्हें अब ब्रेक ले लेना चाहिए, लेकिन ब्रेक लेना तो दूर वे अपने काम की रफ्तार धीमी करने के मूड में भी नहीं दिखते। उनके लिए उनकी ही फिल्म इंद्रजीत (1991) का गीत ‘जब तक जां में है जां, तब तक रहे जवान’ उनके जीवन का मूलमंत्र बन गया लगता है। आज भी अमिताभ को केंद्र में रखकर फिल्मों की कहानियां लिखी जा रही हैं। पीकू (2015) और पिंक (2016) से लेकर बदला  (2019)और गुडबाय (2022) जैसी फिल्में उनके किरदार के इर्द-गिर्द घूमती हैं।

स्वयं अमिताभ का मानना है कि वे खुशकिस्मत हैं कि उन्हें अभी भी इस उम्र में काम मिल रहा है। अपने पचहत्तरवें जन्मदिन के कुछ दिनों पूर्व आउटलुक को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि यह समय तय करता है कि एक खिलाड़ी और एक अभिनेता को कब अपना प्रदर्शन रोक देना चाहिए। उन्होंने कहा, “खिलाड़ी के रूप में यदि आपका शरीर कोई विशेष खेल खेलने में असमर्थ है, तो आपको रुकना होगा क्योंकि कोई छोटा और शारीरिक रूप से अधिक सक्षम आपकी जगह लेगा। फिल्में भी इसी पैटर्न का अनुसरण करती हैं। जब आपका शरीर दर्शकों के नजरिए के मुताबिक आपका साथ नहीं देता, तो आपको रुकना होगा। एक और युवा, बेहतर दिखने वाला और अधिक सक्षम अभिनेता आपकी जगह लेगा।”

बॉलीवुड के इतिहास में अगर देव आनंद के अपवाद को छोड़ दें तो हिंदी सिनेमा का कोई भी चोटी का नायक अस्सी वर्ष के बाद भी अपने पेशे के प्रति जुनूनी हद तक अमिताभ की तरह समर्पित नहीं रहा। देव आनंद ने अपने करियर के अंतिम तीन दशक में कोई भी हिट फिल्म नहीं बनाई लेकिन अपने काम के प्रति उनके पैशन का कोई सानी न था। वर्ष 2011 में 88 वर्ष की आयु में लंदन के एक होटल में उनकी मृत्यु से पूर्व वे क्रोएशिया में एक लव स्टोरी फिल्माने की योजना बना रहे थे। उनके बाद अमिताभ ही हैं जिन्होंने उम्र को महज एक आंकड़ा साबित कर ‘कर्म ही पूजा है’ की उक्ति चरितार्थ की है। उनके अधिकतर समकालीन नायक या तो दिवंगत हो चुके हैं या सिनेमा से दूरी बना ली है, लेकिन उनका जोश अभी भी ‘हाई’ है।

अस्सी वर्ष की उम्र पार कर लेने के बाद अगर उनका कोई समकक्ष कलाकार परदे पर और परदे के बाहर सक्रिय है तो वे हैं उनके शोले (1975) के साथी कलाकार धर्मेन्द्र। करण जौहर की बहुप्रतीक्षित फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी की शूटिंग उन्होंने हाल में ही पूरी की है। इसके अलावा वे अनिल शर्मा की हिट फिल्म अपने (2007) के सीक्वल में भी दिखेंगे। धर्मेन्द्र दिसंबर में 87 वर्ष के हो जाएंगे। धर्मेन्द्र, अमिताभ की तरह दर्जनों प्रोजेक्ट पर काम नहीं कर रहे लेकिन फिल्मों से इतर अपनी जिंदादिली और ऊर्जावान जीवन से बहुतों को प्रेरित कर रहे हैं। उनका अधिकतर समय लोनावला के फार्म हाउस पर गुजरता है, जहां वे फल और सब्जियां उगाते हैं।

बॉलीवुड में जय-वीरू की जोड़ी ने बाकी कलाकारों के लिए लंबी लकीर खींची

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इसके बावजूद, धर्मेन्द्र फिल्म इंडस्ट्री से दूर नहीं हैं। फिल्मों में काम करने के साथ वे कई रियलिटी शो में शामिल होते हैं। वे अभिनेताओं की विलुप्त हो रही उस प्रजाति से हैं, जो फिल्म उद्योग में पैसा कमाने और एक समानांतर साम्राज्य बनाने की होड़ में शामिल नहीं दिखे। उम्र के इस पड़ाव पर सेवानिवृत्त होकर आरामदेह जीवन व्यतीत करने के बजाय कुछ न कुछ करते रहने का जज्बा उन्हें अन्य समकालीन कलाकारों की तुलना में अमिताभ के करीब लाता है। आउटलुक के साथ साक्षात्कार में कुछ दिनों पूर्व धर्मेन्द्र ने कहा कि अपनी जगह बनाने के लिए उन्होंने ईमानदार संघर्ष किया, “सेट पर और बाहर भी मेरे संबंध बने रहे। इमोशनल हूं स्वभाव से तो किरदारों में भी संवेदनाओं के साथ जुड़ा। अच्छी-बुरी सभी परिस्थितियों में सबके साथ चला, रहा और सबको साथ रखा। अच्छा कहलाने के बजाय अच्छा बनने में यकीन किया।”

एक वक्त ऐसा भी था जब अमिताभ और धर्मेन्द्र दोनों के सितारे गर्दिश में थे। नब्बे के दशक में खुदा गवाह (1992) के बाद अमिताभ स्वेच्छा से फिल्मों से दूर होकर न्यूयॉर्क चले गए। पांच वर्ष बाद जब वे मृत्युदाता (1997) के साथ परदे पर लौटे तो उनका जादू फीका पड़ चुका था। गोविंदा, आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे सितारों का सिक्का जम चुका था। नब्बे का दशक खत्म होते-होते एक वक्त ऐसा भी आया जब उनके पास काम नहीं था। उनकी प्रोडक्शन कंपनी एबीसीएल पिट चुकी थी और वे आकंठ कर्ज में डूब चुके थे। ऐसा लगा उनका करियर समाप्त हो चुका है। एक दिन सुबह वे निर्माता यश चोपड़ा से काम मांगने उनके घर चले गए। यश ने उन्हें अपने बेटे आदित्य चोपड़ा की फिल्म, मोहब्बतें (2000) में एक चरित्र भूमिका के लिए साइन किया। उसके बाद उनके लिए टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति करियर की संजीविनी साबित हुआ। इसकी अप्रत्याशित सफलता के बाद उन्होंने मुड़ कर नहीं देखा।

धर्मेन्द्र का करियर भी अस्सी के दशक में लगभग समाप्त हो चुका था। नब्बे के दशक में उन्होंने तथाकथित बी और सी ग्रेड फिल्मों में काम किया। उन्हें कई टेलीमार्केटिंग विज्ञापनों में काम करना पड़ा, जो उनके पुराने प्रशंसकों को नागवार गुजरता था। नई सदी में धर्मेन्द्र ने जॉनी गद्दार (2007) और लाइफ इन अ मेट्रो (2005) में अपने अभिनय का जौहर दिखाया और अपनी निर्माण कंपनी के जरिये अपने (2007) और यमला पगला दीवाना (2011) जैसी हिट फिल्मों में काम से वापसी कर खुद को फिल्म इंडस्ट्री में प्रासंगिक बनाए रखा।

बॉलीवुड में “जय-वीरू” की इस जोड़ी ने निस्संदेह बाकी कलाकारों के लिए लंबी लकीर खींची है। उस इंडस्ट्री में जहां उम्रदराज अभिनेताओं के लिए अच्छी भूमिकाओं का अभाव रहा है, अमिताभ और धर्मेन्द्र ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि उम्र महज एक मानसिक स्थिति है जिसका हौसलों की उड़ान से कुछ लेना-देना नहीं है।

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