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आवरण कथा/कांग्रेस: गढ़ में रिश्ते छत्तीस

डेढ़ दशक बाद छत्तीसगढ़ में आई कांग्रेस की कलह दूर करने का उपाय नेतृत्व के पास नहीं
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (दाएं) और वित्त मंत्री टी.एस. सिंहदेव

कयास, कलह और इंतजार, इन दिनों छत्तीसगढ़ कांग्रेस इसी में उलझी लगती है। खास बात यह भी कि नेताओं की महत्वाकांक्षाएं और कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व की विभिन्न धड़ों में सुलह कराने में नाकामी और टालमटोल का रवैया ही बड़ी वजह है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  बनाम वित्त और स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव की लड़ाई के महीनों बीतने के बाद भी नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों पर विराम नहीं लग पाया है। दोनों दिग्गजों के समर्थक भी बंटे दिखने लगे हैं। लेकिन आलाकमान की ओर से समाधान की जादुई पुड़िया अब तक नहीं खोली गई है।

दो महीने में भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बदले जाने की बात कई बार खारिज कर चुके हैं। लेकिन उनके समर्थक विधायकों की बार-बार दिल्ली दौड़ उनकी शंकाओं को बखूबी रेखांकित करती हैं। उधर, सिंहदेव जाहिर कर चुके हैं कि उन्हें केंद्रीय नेतृत्व के फैसले की प्रतीक्षा है। वे पंजाब की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी बदलाव की बाट जोह रहे हैं। पिछले दिनों सिंहदेव ने कहा, ‘‘राज्य नेतृत्व में बदलाव आसान नहीं, लेकिन एक परिवर्तन आवश्यक है। हमें इंतजार करना चाहिए और आलाकमान को स्पष्ट निर्णय लेने देना चाहिए।’’

दरअसल, कांग्रेस शासित पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने के बाद छत्तीसगढ़ की सियासी फिजा में भी कुछ अलग किस्म की हवा बह रही है। आलाकमान की ओर से कोई फैसला लेने की भनक लगते ही दर्जनों विधायक दिल्ली पहुंच जाते हैं। इस महीने की शुरुआत में भी लगभग 35 विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए थे। उन्हें बघेल समर्थक बताया जाता है।

इस महीने की शुरुआत में कांग्रेस ने बघेल को उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया। बघेल को यह जिम्मेदारी मिलते ही दो बातें सियासी गलियारों में तैरने लगीं। पहली यह कि क्या बघेल के लिए यह साफ संकेत है कि वे मुख्यमंत्री बने रहने के बजाय संगठन में बड़ी भूमिका निभाएं। दूसरी इसके ठीक विपरीत कि क्या बघेल को इस जिम्मेदारी से नवाजकर मजबूती प्रदान की गई है? बघेल समर्थक एक विधायक के मुताबिक बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी राज्यों में है। यही वजह है कि आलाकमान को उन पर पूरा विश्वास है।

वक्त बीतने और केंद्रीय नेतृत्व की ओर से कोई फैसला न लेने से लगता है कि एक बार फिर बघेल निर्णय टलवाने में कामयाब हो गए हैं। राज्य के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने भी कहा कि बघेल मुख्यमंत्री बने रहेंगे। दिसंबर 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद साहू भी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में एक थे। साहू ने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि जो मुख्यमंत्री बनते हैं, वे इस पद पर बने रहते हैं। परिस्थितियों के अनुसार, कभी उन्हें दो-चार महीनों में हटा दिया जाता है, कभी वे 15-20 साल तक बने रहते हैं। अभी वे बने रहेंगे।’’

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी में हाल की घटना के विरोध में बघेल ने अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज कराई। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें लखनऊ एयरपोर्ट पर रोका और बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी। बघेल वहीं फर्श पर बैठ गए। बाद में वे राहुल और प्रियंका के साथ पीडि़त परिवारों से मिलने गए और मृतक किसानों के परिवारों को 50-50 लाख रुपये देने का भी ऐलान किया। कहा जा रहा है कि अपनी कुर्सी मजबूत करने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं।

मतलब यह कि बघेल और सिंहदेव दोनों की निगाहें केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय पर टिकी हुई हैं। उल्लेखनीय है कि जून 2021 में मुख्यमंत्री के रूप में बघेल के ढाई साल पूरे होने के बाद छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन की मांग तेज हुई। सिंहदेव खेमे ने दावा किया कि 2018 में आलाकमान ने सरकार का आधा कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्हें पद सौंपने की बात कही थी। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने विवाद सुलझाने के लिए अगस्त में बघेल और सिंहदेव, दोनों को दिल्ली बुलाया था। उसके बाद कई बार दोनों नेताओं की दिल्ली आवाजाही हो चुकी है, लेकिन दिल्ली दरबार से लेटलतीफी के अलावा कुछ भी हासिल होता नजर नहीं आ रहा है।

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