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8 अगस्त 2022 · AUG 08 , 2022

पंजाब: अब कट्टरता का ‘मान’

संगरूर लोकसभा उपचुनाव में 23 साल बाद खालिस्तान समर्थक कट्टरपंथी सिमरनजीत सिंह मान की सक्रिय सियासत में वापसी
नया मोड़ः संगरूर उपचुनाव में सिमरनजीत सिंह मान (बीच में) की जीत के सियासी संकेत कई

हाल में संगरूर के संसदीय उपचुनाव में जनादेश ने ऐसी शख्सियत सिमरनजीत सिंह मान को आगे कर दिया, जो दशकों के गर्दो-गुबार में ऐसे दबे पड़े थे कि बहुतों को याद करना और यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा है। हालांकि वे विवादास्पद बोल के भी इतने आदी हैं कि उनसे सुर्खियां ज्यादा देर तक मुंह मोड़े नहीं रह सकतीं। तो, गौर कीजिए उनका ताजा बयान, ‘‘भगत सिंह ने एक युवा अंग्रेज अधिकारी की हत्या कर दी थी, एक अमृतधारी सिख कांस्टेबल चन्नण सिंह की हत्या कर दी थी। नेशनल असेंबली में बम फेंका था। कुछ भी कहिए, वे थे तो टेररिस्ट ही।’’ आगे कहा, ‘‘लोगों को मार देना और पार्लियामेंट में बम फेंकना शराफत की बात है क्या?’’ इस पर, जाहिर है, तमाम सत्तारूढ़ या विपक्षी नेता भड़क उठे, मगर इसमें अब बुजुर्ग हो चले पूर्व आइपीएस अधिकारी के सियासी फलसफे की भी झलक मिलती है, जो उसी मौके पर उनके अगले बयान से भी जाहिर है, ‘‘सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आप खालिस्तान पर बात कर सकते हैं, बैठक कर सकते हैं, खालिस्तान पर बात करने को लेकर कोई रोक-टोक नहीं है।’’

नवनिर्वाचित सांसद तथा शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान ने यह सब 15 जुलाई को संसद में शपथ लेने के लिए दिल्ली के रास्ते करनाल में एक ढाबे पर मीडिया से बातचीत में कहा। अमृतसर में स्वर्ण मंदिर पर 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद आइपीएस से इस्तीफा देकर तब के खालिस्तानियों की पांत में जा मिलने वाले मान संगरूर में जीत को जरनैल सिंह भिंडरांवाले की शिक्षाओं की जीत बताते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘दीप सिद्धू और सिद्धू मूसेवाला की शहादत से पूरी दुनिया में सिख कौम के प्रति सुरक्षा और आदर का भाव और अधिक बढ़ा है। इन घटनाओं के बाद अब भारतीय हुकूमत सिख कौम के साथ मुसलमानों जैसा व्यवहार नहीं कर पाएगी। कश्मीर में जुल्म कर रही भारतीय हुकूमत मुसलमानों की मस्जिदें ढहा रही है। भारतीय फौज कश्मीरियों को मार रही है और उसकी कोई जांच तक नहीं होती। झारखंड और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को माओवादी और नक्सली बताकर मारा जा रहा है। मैं अगले राष्ट्रपति पद के लिए आदिवासी समुदाय से आने वाली एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू से मिलकर मांग करूंगा कि केंद्र सरकार नक्सलियों के साथ बातचीत करके बेकसूर आदिवासियों की हत्याएं रोकने के लिए कोई कठोर कदम उठाए।’’

जाहिर है, संगरूर उपचुनाव पंजाब में बदलती सियासत और लोगों के मूड में आए बदलाव की ओर भी इशारा करता है। 100 दिन में ही पंजाब की आम आदमी पार्टी (आप) की भगवंत मान सरकार की तस्वीर ऐसी पलटी कि बदलाव की बयार में 117 में से 92 विधानसभा सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाली आप तीन महीने बाद उपचुनाव में संगरूर लोकसभा सीट नहीं बचा पाई। संगरूर लोकसभा सीट के लिए 2014 में 77 और 2019 में 72 फीसदी  मतदान करने वाली जनता ने इस उपचुनाव में पिछले 31 साल का सबसे कम 45 फीसदी मतदान करके मुख्यधारा की पार्टियों से अपना मोहभंग भी जाहिर कर दिया है।   

 2014 से इस सीट से लगातार दो बार सांसद रहे भगवंत मान ने 16 मार्च को मुख्यमंत्री बनने के बाद यहां से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन उपचुनाव में मान के करीबी गुरमेल सिंह की हार से राज्य से लोकसभा में आप की हाजिरी शून्य हो गई। इसी के साथ दो दशक बाद कट्टर सिमरनजीत सिंह मान का पंजाब की पंथक सियासत में उदय हुआ। उपचुनाव में तीसरे नंबर पर कांग्रेस के दलवीर गोल्डी, चौथे पर भाजपा के केवल ढिल्लो और पांचवें नंबर पर शिरोमणि अकाली दल की कमलदीप कौर राजोआणा अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए।

संगरूर से 23 वर्ष बाद फिर अपनी चुनावी जीत पर सिमरनजीत सिंह मान ने आउटलुक से कहा, ‘‘बड़े बदलाव के साथ पंजाब की सत्ता पर काबिज हुई आम आदमी पार्टी की सरकार पहले दिन से ही दिल्ली से नियंत्रित है। पंजाब की जनता को भगवंत मान के रूप में डम्मी सीएम कतई मंजूर नहीं इसलिए तमाम सरकारी मशीनरी झोंकने के बावजूद भगवंत अपनी सीट नहीं बचा पाए। पंजाब की जनता नहीं चाहती कि दिल्ली में बैठा आदमी पंजाब की सरकार चलाए, जिसे पंजाब के बारे में कुछ भी पता नहीं।’’

इस उपचुनाव में पंजाबी गायक शुभदीप सिद्धू मूसेवाला का हत्याकांड छाया रहा। तमाम विरोधी दलों ने इसके लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान को जिम्मेदार ठहराया। मूसेवाला की घटाई गई पंजाब पुलिस की सुरक्षा की जानकारी सार्वजनिक होने के अगले ही दिन उनकी हत्या ने संगरूर उपचुनाव में आप के खिलाफ माहौल बना दिया। सिमरनजीत सिंह मान इसे बखूबी अपने पक्ष में भुनाने में सफल रहे। कांग्रेस के टिकट पर मानसा से विधानसभा चुनाव हारे मूसेवाला ने भी खुलकर सिमरनजीत सिंह मान का समर्थन किया था और वे उनके प्रचार के लिए जाने वाले थे। यह भी एक बड़ी वजह रही कि संगरूर सीट पर भारी संख्या में युवा मतदाताओं ने आप का साथ छोड़कर सिमरनजीत सिंह मान के पक्ष में प्रचार किया, जिससे मान ने पहले ही दिन से आप पर बढ़त बना ली थी।

आप द्वारा एक जुलाई से प्रति माह 300 यूनिट मुफ्त बिजली के लिए कई शर्तें लगाया जाना भी संगरूर हार का एक कारण माना जा रहा है। 1000 रुपये महीना भत्ते की चुनावी गारंटी के बारे में आप के नेताओं के असंतोषजनक जवाब से महिला मतदाताओं का रोष भी हार का एक कारण बना। चुनाव प्रचार के दौरान खुली कार में सवार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बगल में लटके मुख्यमंत्री भगवंत मान की वायरल हुई तस्वीर भी शायद लोगों को नहीं जमी। 

 उधर, शिरोमणि अकाली दल (बादल) का पंथक एजेंडे का दांव संगरूर में नहीं चला। बंदी सिखों के मुद्दे पर बेअंत सिंह हत्याकांड के दोषी बलवंत राजोआणा की बहन कमलदीप कौर को संगरूर के लोगों ने पूरी तरह से नकार दिया। तीसरे नंबर पर रही कांग्रेस के लिए चिंताजनक स्थिति है। कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड़ के बाद चार पूर्व कैबिनेट मंत्रियों और दो विधायकों के पार्टी छोड़ने के साथ जेल की सजा काट रहे नवजोत सिंह सिद्धू जैसे दिग्गजों के बगैर कांग्रेस हाशिए पर है।

इस चुनाव का संदेश यह भी है कि मालवा की जनता का आप, कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, भाजपा जैसे तमाम दलों से मोहभंग हो गया है और लोग कट्टर पंथक विचारधारा की ओर मुड़ रहे हैं। अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर सचखंड अकाल तख्त श्री दरबार साहिब पर जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान जरनैल सिंह भिंडरांवाला और उनके साथियों के मारे जाने के बाद 16 जून 1984 में भारतीय पुलिस सेवा की नौकरी छोड़ने वाले सिमरनजीत सिंह मान ने खालिस्तानी मुिहम के झंडे तले पंथक सियासी सफर शुरू किया।

वे देशद्रोह और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की साजिश के आरोपों में 1984 से 1989 तक पांच साल लगातार बिहार की भागलपुर जेल में नजरबंद रहे। उन्होंने जेल से ही 1989 में अपना पहला लोकसभा चुनाव तरनतारन से रिकॉर्ड 4.80 लाख मतों से जीता था और कांग्रेस प्रत्याशी अजीत सिंह मान की जमानत जब्त हो गई थी। सांसद बनने पर मान जेल से रिहा हुए। उनके खिलाफ दर्ज तमाम मामले रद्द हुए लेकिन संसद में कृपाण हाथ में लेकर जाने की जिद के चलते वे संसद भवन की दहलीज पार नहीं कर पाए।

वे 1999 में दूसरी बार संगरूर से सांसद बने। अब 23 साल के बाद उन्हें संगरूर सीट से तीसरी बार जीत मिली है। इससे पहले मान ने लोकसभा समेत विधानसभा के तमाम चुनाव लड़े मगर जनता ने उन्हें लगातार नकारा। फरवरी 2022 का विधानसभा चुनाव अमरगढ़ सीट से लड़ने वाले मान को आम आदमी पार्टी के जसवंत सिंह गज्जनमाजरा ने 6,043 मतों से हराया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में सिमरनजीत सिंह मान हलका खडूर साहिब (तरनतारन) से मात्र 14 हजार वोट हासिल कर अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए।

20 मई 1945 को राजनीतिक परिवार में जन्मे मान के पिता लेफ्टिनेंट कर्नल जोगिंदर सिंह मान 1967 में विधानसभा स्पीकर रहे। सिमरनजीत सिंह मान 1967 में भारतीय पुलिस सेवा में चयनित होकर पंजाब के कई जिलों के पुलिस प्रमुख रहे। बतौर आइपीएस 17 साल तक पंजाब के कई गैंगस्टरों को खदेड़ने का रिकॉर्ड भी उनके नाम है। कट्टरपंथी मान दो बार कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह के साढू भाई हैं मगर आज तक सार्वजनिक रूप से दोनों कभी एक साथ नहीं दिखे। अब देखना है, पंजाब की सियासत कैसा बदलाव आता है।

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