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झारखंड: एकजुट रहे कुनबा

पार्टी प्रभारी आरपीएन सिंह के लिए असंतोष मिटाकर सबको साथ लेकर चलने की चुनौती
रांची में अन्य कांग्रेसी नेताओं के साथ राज्य कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव

प्रदेश कांग्रेस के किले में सेंधमारी और असंतोष की हवाओं के बीच पार्टी को एकजुट और मजबूत बनाने के लिए प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह संयम दिखा रहे हैं और फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। हेमंत सरकार एक साल पूरे कर चुकी है, लेकिन सरकार में शामिल होने के बावजूद कांग्रेस नेताओं में असंतोष है और उन्हें सत्ता सुख का  एहसास नहीं हो रहा है। इसलिए उन्हें खुश करने के लिए बोर्ड, निगम और बीस सूत्री तथा निगरानी समिति की रेवड़ियां तैयार हैं। खरमास खत्म होने के बाद इस पर मंथन शुरू हो सकता है। प्रदेश कांग्रेस प्रभारी की कोशिश है कि उन पर कोई ऊंगली भी न उठे और ज्यादा से ज्यादा लोगों को संतुष्ट किया जा सके।

रांची प्रवास के दौरान आरपीएन सिंह ने मंत्रियों, प्रदेश पदाधिकारियों और जिलों के नेताओं से अलग-अलग बात की। उनका कहना है कि नेता आपसी मतभेद भूल कर केंद्र की विफलताओं को जनता के बीच ले जाएं। इसी माह बीस सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वनयन समिति का निर्णय हो जाएगा। उसके बाद बोर्ड, निगमों के संबंध में निर्णय लिया जाएगा।

लेकिन कांग्रेस सूत्रों के अनुसार बीस सूत्री और निगरानी समितियों के गठन में वक्त लगेगा। इसके लिए अध्यक्ष रामेश्वर उरांव, विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष केशव महतो, कमलेश और राजेश ठाकुर की चार सदस्यी कमेटी बनाई गई है। दरअसल यह सीट शेयरिंग जैसा है और इसके लिए फार्मूला तय करना होगा। मोटे तौर पर झामुमो और कांग्रेस के बीच 60:40 अनुपात का हिसाब होगा। यह तय किया जाना है कि किस जिला, अनुमंडल और प्रखंड में किस पार्टी के लोग रहेंगे। जहां कांग्रेस के विधायक हैं वहां उसी पार्टी के लोग बीस सूत्री और निगरानी समितियों में रहेंगे या उनसे अलग। सरकार में शामिल राजद के एक विधायक को भी एडजस्ट करना होगा। चार सदस्यीय समिति में शामिल कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं कि कोशिश है कि इस माह के अंत तक फार्मूला तय कर लिया जाए।

असली जद्दोजहद मलाईदार बोर्ड निगमों को लेकर है। जो विधायक, मंत्री नहीं बन सके उनकी नजर खनिज विकास निगम, खादी बोर्ड, राज्य आवास बोर्ड, रियाडा, जियाडा, अल्पसंख्यक आयोग पर है। ऐसी चर्चाएं भी चलती रहती हैं कि कांग्रेस के कुछ विधायक अभी भी भाजपा के संपर्क में हैं।

अलग झारखंड बनने के बाद से पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन किया है। इसलिए आरपीएन सिंह को दोबारा झारखंड की जिम्मेदारी मिली। अब उनकी चुनौती पार्टी में असंतोष को मिटाकर संतुलन साधने की है, ताकि पार्टी आलाकमान का भरोसा कायम रहे। क्योंकि कांग्रेस में लगातार विरोध के स्वर उठते रहते हैं। चाहे वह सरकार में हो या पार्टी के अंदर। कांग्रेस के मंत्रियों से लेकर विधायकों तक की शिकायत थी कि उनकी सुनी नहीं जा रही है। इसके बाद तबादलों के मामलों में थोड़े अधिकार मिले, तो उनके स्वर कुछ मद्धिम पड़े। लेकिन पार्टी के भीतर प्रदेश अध्यक्ष को लेकर मोर्चा खुला रहता है। एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को लेकर आवाज उठती रहती है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव राज्य में वित्त जैसा महत्वपूर्ण महकमा संभाल रहे हैं। लेकिन नए अध्यक्ष को लेकर अलग-अलग खेमा सक्रिय है।

प्रदीप यादव के झाविमो से कांग्रेस में आने पर मोर्चा खोलने वाले कांग्रेस के फायर ब्रांड नेता, प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष इरफान अंसारी भी आवाज उठाते रहते हैं। वह अपनी ही पार्टी के कोटे के कृषि मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री की कार्यशैली पर सवाल उठा चुके हैं। वह कहते हैं कि यदि राज्य में 26 फीसदी जनजाति है तो 18 फीसदी अल्पसंख्यक भी हैं। इसके बाद इसी माह इरफान अंसारी को हज कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। इरफान के साथ उनके पिता फुरकान अंसारी भी आक्रामक रहते हैं। फुरकान अंसारी राज्यसभा जाना चाहते थे मगर प्रदेश प्रभारी की हरी झंडी नहीं मिलने के कारण उनका पत्ता कट गया। फुरकान चार दशक से कांग्रेस में हैं और कई टर्म विधायक और सांसद रहे हैं। पिछले दिनों बोकारो में उन्होंने राहुल गांधी के बारे में कह दिया कि वे क्या बोलते हैं, लोगों की समझ में नहीं आता। इसके बाद उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। लेकिन उस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। फुरकान ने हाल ही में कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल से मिलकर प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष बदलने की मांग की थी। उनका कहना था कि प्रदेश प्रभारी ने राज्य को ऐशगाह बना रखा है और वे मंत्रियों से वसूली करते हैं। उनके आरोपों पर प्रदेश प्रभारी का कहना है कि वे उम्रदराज हो गए हैं।

दरअसल प्रदेश में अल्पसंख्यकों की बड़ी आबादी है, लेकिन सदन में प्रतिनिधित्व बहुत कम है। ऐसे में कांग्रेस कोई कड़ा एक्शन लेकर अल्पसंख्यकों को नाराज नहीं करना चाहती। अल्पसंख्यंकों को लपकने के लिए झामुमो भी तैयार बैठा है। इन विसंगतियों के बीच बीस सूत्री, निगरानी समिति और बोर्ड निगमों में नियुक्ति का मतलब कठिन संतुलन साधना है।

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