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भारतीय क्रिकेट के अच्छे दिन

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि क्रिकेट के अच्छे दिनों के पीछे कई लोगों की अथक मेहनत का भी हाथ है
ऐतिहासिक जीतः अंडर-19 टीम ने रिकॉर्ड चार बार वर्ल्डकप जीतकर एक नया कीर्तिमान बनाया, इस जीत में कोच राहुल द्रविड़ की भूमिका अहम रही

भारतीय क्रिकेट के तो अच्छे दिन आ गए। अंडर-19 विश्व कप प्रतियोगिता जीत कर भारतीय लड़कों ने देश का गौरव बढ़ाया है। जीते भी कैसे? दादाओं की भांति प्रतियोगिता में खेल का आगाज किया और दादाओं की भांति ही फाइनल मैच भी जीता। सच्चे, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ विनम्र राहुल द्रविड़ के प्रशिक्षण में जो टीम तैयार हुई, उसने सभी को हैरान कर दिया। पृथ्वी शॉ, शुभमन गिल, मनजोत कालरा, नागरको‌टी और शिवम मावी जैसे खिलाड़ी सुपर सितारों की श्रेणी में आ गए हैं। स्पिनरों में अनुकूल रॉय ने अपना काम बखूबी किया और पूरे टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाजों में उनका नाम अग्रणी है। अच्छा यह भी लगा कि तेज गेंदबाज नागरको‌टी 145 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार नियमित रूप से छू रहे थे। हमारी सीनियर टीम के भी अधिकांश गेंदबाज यह रफ्तार नहीं छू पाते। केवल उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह और कभी-कभी शमी ऐसी रफ्तार हासिल कर पाते हैं। संकेत स्पष्ट हैं कि भारतीय क्रिकेट के ये युवा खिलाड़ी बड़ों की जगह लेने के लिए न केवल तैयार हैं, बल्कि बेताब भी हैं।

अंडर-19 के कोच राहुल द्रविड़ और सीनियर भारतीय क्रिकेट टीम के कोच रवि शास्‍त्री की तुलना करें, तो पाते हैं कि ये दोनों अलग-अलग मिट्टी के बने हैं। राहुल द्रविड़ का नाम एक खिलाड़ी के तौर पर रवि शास्‍त्री से ज्यादा बड़ा है। द्रविड़ विनम्र, मेहनती, जिम्मेदार और लगनशील प्रवृत्ति के हैं, तो रवि शास्‍त्री बड़बोले और सत्ता के नजदीक रहे हैं। कप्तान विराट कोहली से उनकी संगत और लय अच्छी बैठती है और आजकल विराट के बिना तो भारतीय टीम में पत्ता भी नहीं हिलता। राहुल द्रविड़ एक नीति और विधान लेकर मेहनत व ईमानदारी से प्रशिक्षण देते हैं, तो रवि शास्‍त्री अपने अंतर्मन की आवाज को अंतिम सत्य मान कर ही निर्णय लेते हैं और प्रशिक्षण देते हैं। राहुल द्रविड़ कभी-भी प्रसार माध्यमों में अपने को गढ़ने की कोशिश नहीं करते, जबकि रवि शास्‍त्री मुखर, आक्रामक और किसी भी कीमत पर अपनी बात मनवाने के आदी हैं। दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं और जब तक दोनों के अंतर्गत बनी टीम अपना काम अंजाम दे रही है, तब तक हमें शिकायत क्यों हो?

 

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज हारने के बाद तीसरे टेस्ट मैच में जब भारतीय टीम जीत गई, तो रवि शास्‍त्री आलोचकों पर बरसने से बाज नहीं आए। ‘वे आलोचक अब कहां गायब हो गए’, उन्होंने गरजते हुए सवाल किया। अब हम क्या कहें? दुनिया जानती है कि टेस्ट क्रिकेट में शीर्षक्रमों में भारत नंबर एक टीम है और दक्षिण अफ्रीका नंबर दो। फिर भी हम अपने से नीचे वाली टीम से सीरीज हार गए। क्या यह गौरव की बात थी? होना तो यह था कि अगर दक्षिण अफ्रीका हम से संघर्ष करके हारता तो प्रशंसनीय कहलाता। पर यहां तो हार कर भी गर्व महसूस किया जा रहा है और आलोचकों को फटकारा भी जा रहा है। टेस्ट क्रिकेट ही असली क्रिकेट है। उसमें हम सीरीज हार गए हैं। अतः आत्ममंथन करने की जरूरत है। हमारे तेज गेंदबाजों ने अच्छा काम किया। भुवनेश्वर कुमार, जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी व ईशांत शर्मा ने बढ़िया गेंदबाजी की। भारत की पहले दिक्कत यह होती थी कि हम विरोधी टीम के 20 विकेट नहीं गिरा पाते थे। अतः जीत हासिल करने का सवाल ही नहीं उठता था। पर इस बार भारतीय तेज आक्रमण ने तीनों टेस्ट मैचों में 20-20 विकेट उखाड़े, इसीलिए जीत के दरवाजे खुल गए थे। पर बल्लेबाजों ने निराश किया। भारत में डॉन ब्रैडमेन की तरह रन बनाने वाले भारतीय बल्लेबाज मुश्किल व उछाल वाली पिच पर नौसिखिए नजर आए। केवल विराट कोहली ही बेचारे अकेले किला बचाने के लिए लड़ते रहे। उनकी तकनीक ने यह साबित कर दिया है कि वे आज दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज हैं। पर एक बार उनका विकेट गिरा, तो पूरी टीम धराशायी! विदेशी विकेटों पर ऐसी परिस्थितियों का हमें निरंतर सामना करना ही पड़ेगा। इस पर गहरा चिंतन करने व सुधार की आवश्यकता है। पर अपनी ही टीम के प्रदर्शन से आत्ममुग्ध हम, पता नहीं कब जाग कर हकीकत को महसूस करेंगे।

जिस तरह सीनियर भारतीय टीम ने 20-20 विकेट लेकर दुनिया में अपना लोहा मनवाया और भारतीय अवसरों को खोजा, उसी तरह अंडर-19 के गेंदबाजों ने भी हर बार सामने वाली टीम को 50 ओवरों के पहले ही आउट करने का करिश्मा दिखाया। फर्क यह रहा कि अंडर-19 के बल्लेबाजों ने भी अपने गेंदबाजों का बड़ी जिम्मेदारी से साथ दिया। अंडर-19 टीम के लड़ाकों की गुणवत्ता अन्य टीमों के मुकाबले इतनी बेहतर रही कि कोई आस-पास भी नहीं फटकता हुआ दिखाई दिया। सीनियर खिलाड़ियों में रोहित शर्मा की उछाल वाले विकेटों पर कमजोरी जगजाहिर है। पर पुराने प्रदर्शनों का हवाला देकर उन्हें खेलाया जाता रहा। भारतीय बल्लेबाजी के पहिए में उनका प्रदर्शन टूटी हुई गाड़ी की तरह दिखाई दिया। एक दिवसीय क्रिकेट में हम भले ही अब दक्षिण अफ्रीका से जीत जाएं, पर टेस्ट क्रिकेट यानी असली क्रिकेट की पराजय हमें सालती रहेगी।

भारत में अब अगला बड़ा पड़ाव आइपीएल का आएगा। धन की वर्षा और ग्लैमर के आकर्षण में हमारे खिलाड़ियों की तकनीकी कमजोरियों पर से ध्यान हट जाएगा। यहां के सपाट और बल्लेबाजों के अनुकूल विकेट बल्लेबाजों को आड़े बल्ले से स्ट्रोक खेलने के लिए प्रेरित करते रहेंगे। पर फिर भी यह तो सही है कि कई युवा ‌क्रिकेटरों को इससे एक बड़ा रोजगार मिल जाएगा। खेल जब कॅरिअर बना देने की संभावना के साथ जुड़ जाता है, तो खेल में क्रांति तो आ ही जाती है। अब लाखों युवा देश भर में क्रिकेट से इस सपने के साथ जुड़ गए हैं कि एक दिन वे आइपीएल खेल सकें तो मालामाल हो जाएं।

पर इन सब चीजों के अलावा हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि क्रिकेट के अच्छे दिनों के पीछे कई लोगों की अथक मेहनत का भी हाथ है। भारतीय महिला टीम ने विश्व का फाइनल खेला और अब अंडर-19 टीम विश्व विजेता बन गई। सन‍ 2019 में 50-50 ओवरों का विश्व कप क्रिकेट खेला जाने वाला है। सीनियर क्रिकेट की यह चैंपियनशिप मुश्किल परिस्थितियों में इंग्लैंड में खेली जाएगी। भारत को अभी से तैयारी करनी चाहिए। जब आप बहुत ज्यादा खेलते रहते हैं तो आपकी रचनात्मकता कम हो जाती है। यह प्रकृति का अटल सत्य है। अतः ज्यादा पैसे के मोह में गुणात्मकता के हनन का पाप नहीं करना चाहिए। क्या भारतीय ‌क्रिकेट के कर्ताधर्ता इसके लिए तैयार हैं?

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