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बॉलीवुड में जमा पटकथा लेखकों का सिक्का

बॉलीवुड के जमे-जमाए फॉर्मूले जमीन चूमने लगे और फिल्में मुंह के बल गिरने लगीं तो स्क्रिप्ट राइटरों का जलवा बढ़ा
खान एकेडमीः अभिनेता-प्रोड्यूसर आमिर खान देतें हैं स्क्रिप्ट पर जोर

हिंदी सिनेमा इन दिनों कुछ अजीबोगरीब तलाश में जुटा है। यह तलाश है ऐसी धांसू ‘स्क्रिप्ट’ की, जो नए जमाने के दर्शकों को अपनी ओर खींच सके। इन दिनों दर्शकों का एक ऐसा वर्ग तेजी से उभरा है जो मनोरंजन के नाम पर किसी स्टार के भड़कीले और चमक-दमक वाले रोल को पचा नहीं पाता, उसे चाहिए अच्छा कंटेंट। स्थिति यह हो गई है कि भव्य और कल्पनाओं पर आधारित फिल्में बॉक्स ऑफिस पर भीड़ नहीं जुटा पा रही हैं जबकि इसी समय सार्थक सिनेमा लाभ कमाने के साथ दर्शकों की तालियां भी बटोर रहा है। इससे ऐसा लग रहा है कि हिंदी फिल्म उद्योग धीरे-धीरे अपने पटकथा लेखकों को वह महत्व देने लगा है जिसके वे लंबे समय से हकदार थे।

कंटेंट की बेतरह तलाश से बॉलीवुड में लेखकों की मांग बेतहाशा बढ़ गई है। हर फिल्मनिर्माता हाथ पसारे खड़ा है कि कोई तो तरोताजा  विषय लेकर आए, जो वर्षों से फिल्मोद्योग के भरोसे के फॉमूले की गंध से भी दूर रहे। पिछले साल न्यूटन, बरेली की बरफी, शुभ मंगल सावधान और लिपस्टिक अंडर माइ बुर्का जैसे ताजा कथानकों और छोटे बजट की फिल्मों की सफलता से निर्माताओं को अचानक ही नई सीख मिली। इसका परिणाम यह हुआ कि अभी तक उपेक्षित, कम पैसे में काम करने वाले और शोषित (सलीम-जावेद को छोड़कर) लेखकों को वह सम्मान मिलने लगा जिसके वे हकदार थे।

बहरहाल, यह केवल बॉक्स ऑफिस की सफलता की एकमात्र वजह नहीं थी जिसके नाते लेखकों का पुनरुत्थान हुआ। इसके कई कारण थे। ऑनलाइन वीडियो चलाने वाले दिग्गजों अमेजन प्राइम और नेटफ्लिक्स के आगमन, शॉर्ट फिल्म और वेब सीरीज की सेटेलाइट चैनलों पर लोकप्रियता ने अच्छी स्क्रिप्ट को बहुमूल्य बनाने में योगदान दिया। लेकिन, फिर से एक गड़बड़ है। ऐसा नहीं है कि अभी अच्छी स्क्रिप्ट की बारिश हो रही है। फिल्म के लिए ‘अलग हट के’ वाले स्क्रिप्ट की मांग आपूर्ति से ज्यादा है। ऐसे में इंडस्ट्री उन सभी विकल्पों की तलाश कर रहा है जिससे अच्छी कहानी कहने वाले को सामने लाया जा सके।

नया अंदाजः द डर्टी पिक्चर में विद्या बालन

मुंबई की इंटरनेट मीडिया कंपनी सिनेस्तान डिजिटल प्राइवेट लि. ने बड़े स्तर पर स्क्रिप्ट राइटिंग प्रतियोगिता कराने का फैसला किया है। इस तरह के मुकाबले के लिए अब तक की सबसे बड़ी इनामी राशि रखी गई है जो 50 लाख रुपये की है। आयोजकों के अनुसार प्रतियोगिता का एकमात्र उद्देश्य प्रतिभावान लेखकों को इस तरह का प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराना है जहां से वे प्रोडक्शन हाउसों और स्टूडियो का ध्यान अपनी ओर खींच सकें। 

बेशक, यह प्रतियोगिता अपनी तरह की पहली नहीं है। सुभाष घई की मुक्ता फिल्म्स, फरहान अख्तर और रीतेश सिधवानी की एक्सेल एंटरटेनमेंट, मनीष मुंद्रा की दृश्यम् फिल्म्स जैसे नामी बैनरों से पहले भी इस तरह की प्रतियोगिता आयोजित की गई है। लेकिन, इनाम की बड़ी राशि के अलावा सिनेस्तान की प्रतियोगिता इस कारण और उत्सुकता जगा रही है क्योंकि इसकी ज्यूरी में कई नामी लोग हैं। इनमें सुपर स्टार आमिर खान, थ्री इडियट्स (2009) के डायरेक्टर राज कुमार हिरानी, विकी डोनर (2012) और पीकू (2016) की लेखक जूही चतुर्वेदी, गुलाम (1998) और राजनीति (2010) जैसी हिट फिल्मों को लिखने वाले दिग्गज सिनेरिस्ट अंजुम राजाबली शामिल हैं। आमिर के अनुसार, “स्क्रिप्ट राइटर प्रतियोगिता के विजेता को सिर्फ नकद इनाम ही नहीं मिलेगा बल्कि उन्हें अपनी कहानी को प्रोडक्शन हाउस के समक्ष रखने का मौका भी दिया जाएगा।” इस प्रतियोगिता के लिए जारी वीडियो मैसेज में वह कहते हैं, “यह नवागंतुकों के लिए ही नहीं अनुभवी लेखकों के लिए भी बड़ा मौका है।” इस प्रतियोगिता के प्रारंभिक चरण में भाग लेने की आखिरी तारीख 31 जनवरी थी।

लेकिन, क्या यह प्रतियोगिता आयोजकों के दावों के अनुसार बॉलीवुड के लिए गेम चेंजर साबित होगी? व्यापक रूप से प्रशंसित फिल्म न्यूटन के लेखक-निर्देशक अमित वी. मासुरकर कहते हैं कि इससे कुछ ताजा कहानियां जरूर सामने आएंगी लेकिन अच्छे कंटेंट की मांग इंडस्ट्री के लिए असमान्य नहीं है। वह आउटलुक से कहते हैं, “लोग हमेशा से अच्छी कहानियां चाहते हैं। फिर भी मेरा मानना है कि हिंदी सिनेमा को सिर्फ कंटेंट पर विश्वास करने में कुछ और साल लगेंगे।”

न्यूटन के लिए हाल ही में बेस्ट स्टोरी का फिल्मफेयर अवार्ड जीतने वाले मासुरकर कहते हैं, “कंटेंट नया बादशाह है। कंटेंट से खेलने के लिए बॉलीवुड को बढ़िया जगह भी मिली हुई है फिर भी मेरा मानना है कि अभी यह इंडस्ट्री में प्रारंभिक अवस्था है।” भारतीय चुनावों जैसे असामान्य विषय पर डार्क कॉमेडी बना कर पिछले साल ऑस्कर में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्मों की श्रेणी तक पहुंचने वाले मासुरकर मानते हैं कि मनीष मुंद्रा और आनंद एल. राय जैसे कुछ प्रोड्यूसर हैं जो ताजा आइडिया को लेकर खुले हैं पर इंडस्ट्री में ऐसा व्यापक सार नहीं है।

मसान का एक दृश्य

न्यूटन के अलावा मसान (2015) और कड़वी हवा (2017) जैसी ऑफबीट फिल्में बनाने वाले दृश्यम फिल्म्स के संस्थापक मनीष मुंद्रा ने भी कुछ समय पहले स्क्रिप्ट लेखन प्रतियोगिता आयोजित की थी और इसमें से दो स्क्रिप्ट को चुना था। मुंद्रा ने हालांकि न्यूटन को मंजूरी दे दी पर मासुरकर ने उनके साथ मुंबई में आधा घंटा तक कार में सवारी के दौरान चर्चा की। वह याद करते हैं, “मुझे शहरी व्यवस्था में ढल चुके युवाओं की वास्तविक स्थिति पर कुछ लिखने के लिए कहा गया। लेकिन जब मैं मनीष से मिला तो मुझे महसूस हुआ कि वे नए आइडिया के लिए ज्यादा खुले हैं। जब मैंने न्यूटन का आइडिया रखा तो उन्होंने इसे वास्तव में पसंद किया।”

वास्तव में, जिस विषय पर न्यूटन फिल्म बनाई गई उस पर पहले किसी ने काम नहीं किया था और बेशक इसने मासुरकर के पक्ष में काम किया। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि नई कहानी को लेने वाले सदैव रहते हैं। वे इस बात की परवाह नहीं करते कि यह किस चैनल से आ रहा है। वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई (2010), द डर्टी पिक्चर (2011), किक (2014) और गब्बर इज बैक (2015) जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों के स्क्रिप्ट राइटर रजत अरोड़ा कहते हैं, “दर्शक कभी अच्छी फिल्म की अनदेखी नहीं करता। यह बात मायने नहीं रखती कि यह बड़े या छोटे स्तर पर बनी है। अर्धसत्य (1984) छोटी फिल्म थी पर इसे देखने दर्शक ठीक उसी तरह उमड़ पड़ते थे जैसे ऋषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी की फिल्मों को देखने आते थे।”

अरोड़ा कहते हैं, “लेकिन अब बॉलीवुड स्टीरियो टाइप चीजों से ऊपर उठने की राह तलाश रहा है। पहले जो चीजें अस्वीकार्य थीं उनके लिए भी जगह निकाली जा रही है। सिनेमा दिन-प्रति-दिन बड़ा होता जा रहा है और यहां कई बदलाव हो रहे है। इन बदलावों के कारण इंडस्ट्री में नए विचार भी आ रहे हैं। अच्छे कंटेंट के लिए हो रही कोई भी प्रतिद्वंद्विता से सिनेमा को सदैव बड़े पैमाने पर फायदा होगा। इसके अलावा, इससे लेखकों को अच्छा पारिश्रमिक भी मिलेगा।”

अजय देवगन को लेकर पिछले साल बनी बादशाहो के लेखक अरोड़ा कहते हैं, “लेखक सदैव महत्वपूर्ण रहे हैं पर जब कोई नया माध्यम आता है तब उनका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। जब सैटेलाइट टेलीविजन चैनल आए तब लोगों ने कहा कि इससे सबसे ज्यादा फायदा लेखकों को होगा। आज भी, अमेजन प्राइम और नेटफ्लिक्स के उभरने से समान स्थिति उत्पन्न हुई है।”

किरदार में दमः न्यूटन का एक दृश्य

फिर भी, अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि हर फिल्मी लेखक अच्छे दिनों की ओर बढ़ रहा है। मुंबई के स्क्रीन राइटर एसोसिएशन (पूर्व में फिल्म राइटर एसोसिएशन) के कार्यकारी संयोजक दिनकर शर्मा के अनुसार, “लेखकों के लिए स्थिति में सुधार आया है। लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि हमने पूर्णता हासिल कर ली है।” देश के स्क्रीन लेखकों के सबसे बड़े संगठन का प्रतिनिधित्व करने वाले शर्मा कहते हैं, “दर्शकों का नया वर्ग अवश्य आया है पर कोई यह नहीं कह सकता कि सब कुछ बदल गया है। बहरहाल, यह खुशी की बात है कि कई प्रोड्यूसर रिच कंटेंट प्रोजेक्ट का समर्थन कर रहे हैं। वास्तव में, सिनेस्तान प्रतियोगिता के अलावा एक्सेल इंटरटेंनेट्स और दृश्यम फिल्म्स भी नई प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रतियोगिता करा चुके हैं। यह इंडस्ट्री के लिए शुभ संकेत है।” ऐसे में, हर कोई इस बात को स्वीकार नहीं कर सकता कि इस तरह की प्रतियोगिता नए स्क्रिप्ट लेखकों के लिए अवसरों का सागर साबित होगी। फिल्म लेखक विनोद अनुपम का मानना है कि स्क्रिप्ट प्रतियोगिताएं ताजा कंटेंट के लिए इंडस्ट्री की मायूसी को दर्शाती हैं। वह कहते हैं, “बहस का मुद्दा यह है कि क्या इंडस्ट्री लीक पर चलने वाले फॉर्मूले से हटने को तैयार है। ऐसा भी नहीं है कि समय के साथ समृद्ध हिंदी साहित्य में कहानियों की कमी आ गई है।”

राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त आलोचक कहते हैं कि वह इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि ऐसी प्रतियोगिताओं से नए हिंदी स्क्रिप्ट लेखकों को वास्तविक अवसर मिलेंगे। इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए तय शर्तें होती हैं। सबसे पहले प्रतियोगी को स्क्रीन राइटर एसोसिएशन का सदस्य होना चाहिए और कहानी भेजने के पहले उसका वहां पंजीकरण जरूरी है। दूसरी बात यह है कि नियम के तहत स्क्रिप्ट रोमन लिपि में होनी चाहिए। हिंदी भाषी इलाके वाले लेखकों के लिए सबसे नकारात्मक बात है क्योंकि इनमें से अधिकांश देवनगारी लिपि में लिखते हैं।

वह अफसोस जताते हुए कहते हैं, “सभी प्रविष्टियों को एक विशेष प्रारूप में जमा किया जाना चाहिए। यह ऐसी औपचारिकता है जिससे कई लेखक परिचित नहीं हैं। प्रतियोगिता की इस तरह की शर्तें बॉलीवुड के नियमों से परिचित लेखकों की तुलना में नए लेखकों को असुविधाजनक स्थिति में पहुंचा देती हैं।” अनुपम इस बात पर जोर देते हैं कि हिंदी सिनेमा को रोमन लिपि में लिखने की बाध्यता से बाहर आकर हिंदी लेखकों को अपनी लिपि में लिखने की छूट दी जानी चाहिए। अगर इंडस्ट्री की दिलचस्पी परिदृश्य में बदलाव लाने और ताजा प्लॉट ढूंढ़ने में है तो ऐसा किया जाना जरूरी है। अन्यथा, यह भाषाई पूर्वाग्रह प्रतिभा के एक बड़े वर्ग के साथ न्याय नहीं कर पाएगा और इस तरह की प्रतियोगिताओं का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

इस प्रतियोगिता का नतीजा चाहे जो भी हो पर इसने निश्चित रूप से लेखकों को प्रेरणा दी है। इतना ही नहीं अच्छे आइडिया और कहानी कहने की कला वालों के लिए नए दरवाजे भी खुले हैं। अच्छी स्क्रिप्ट पर नजर रखने के लिए पहचाने जाने वाले आमिर खान और राजू हिरानी जैसे लोग ज्यूरी में शामिल हैं। ये इस बात को जानते हैं कि यह मौका किसी अज्ञात लेखक के लिए सेलिब्रेटी सिनेमा लेखक बनने का मौका दे सकता है। इस तरह मानो एक नई इबारत लिखी जा रही है और पटकथा लेखकों का सिक्का बदस्तूर कायम होता जा रहा है।

 

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