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जोगी को मिली नई सियासी बैसाखी

हाइकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री की जाति की जांच के लिए बनी सरकारी कमिटी को खारिज किया, कांग्रेस को इसमें साजिश का संदेह
तेवर तीखेः जोगी की जाति पर उठे विवाद से गर्मा रही है प्रदेश की राजनीति

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जाति के मामले में छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट के फैसले से साफ है कि राज्य में नौसिखियों के हाथ में तलवार थमा दी गई है। छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट ने जोगी की जाति की जांच के लिए गठित हाइपावर कमेटी को तकनीकी आधार पर गलत मानते हुए नए सिरे से कमेटी बनाकर जांच का आदेश दिया है। कोर्ट ने कमेटी के गठन की सूचना राजपत्र में  प्रकाशित न करने को दूसरी चूक माना है। अब सवाल यह उठ रहा है कि सरकार में बैठे लोगों को यह पता नहीं था कि किसी भी समिति के गठन की सूचना राजपत्र में प्रकाशित की जाती है, तभी उसकी वैधता होती है और एक ही अधिकारी किसी समिति में तीन-तीन पदों की जिम्मेदारी संभालकर कैसे किसी के साथ न्याय कर सकती है? जोगी के मसले पर हाइकोर्ट का फैसला आने के बाद सवाल यह भी उठाने लगा है कि रीना बाबा साहेब कंगाले की अध्यक्षता वाली कमेटी द्वारा दूसरे मामलों में दिए गए फैसले का क्या होगा? अजीत जोगी की जाति के मामले में हाइपावर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद जोगी से वसूली और उनके बेटे अमित की विधायकी को शून्य घोषित करने की मांग करने वाली कांग्रेस अब हाइकोर्ट के फैसले के बाद रमन सरकार की चूक को जोगी को बचाने और राजनीतिक फायदा लेने की रणनीति मान रही है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव का कहना है कि यह जोगी को बचाने के लिए रमन सिंह की चाल है। पांच हजार दिन और 14 साल सरकार चलाने वालों से ऐसी चूक तो नहीं होनी चाहिए? बीजेपी प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव का कहना है कि हाइकोर्ट के निर्देश पर जल्द नए सिरे से कमेटी बना दी जाएगी। पर पहले तो यह साफ होना चाहिए ‌कि कांग्रेस अजीत जोगी को क्या मानती है? आदिवासी के नाम पर कांग्रेस ने ही उन्हें छत्तीसगढ़ का पहला मुख्यमंत्री बनाया था। आदिमजाति कल्याण विभाग की विशेष सचिव रीना बाबा साहेब कंगाले की अध्यक्षता वाली हाइपावर कमेटी ने 27 जून, 2017 को अजीत जोगी को आदिवासी मानने से इनकार कर दिया था। इसके बाद बिलासपुर के कलेक्टर ने अजीत जोगी के आदिवासी होने का प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया। अजीत जोगी ने हाइपावर कमेटी  की रिपोर्ट के खिलाफ सवाल खड़े किए और छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट में याचिका दायर की। अजीत जोगी का कहना था कि कमिटी के तीन पदों पर ट्राइबल डिपार्टमेंट की स्पेशल सेक्रेटरी रीना बाबा कंगाले ही प्रभारी हैं।

शतरंज की बाजीः सरकारी चूक को रमन सिंह की चाल बता रही कांग्रेस

रीना कंगाले कमेटी की अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य सचिव हैं। किसी कमेटी में एक ही व्यक्ति तीन पदों की जिम्मेदारी कैसे संभाल सकता है? सरकार ने बहुत जूनियर अफसर को कमेटी का चेयरमैन बना कर रिपोर्ट तैयार करवाया। विजिलेंस कमेटी की रिपोर्ट को नहीं मानी गई। जोगी का कहना है कि ट्राइबल डिपार्टमेंट में जूनियर अफसरों की पोस्टिंग को लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री रमन सिंह को पत्र लिखा था। इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने जूनियर अफसरों की पोस्टिंग पर तो कुछ नहीं कहा, जरूर उन्होंने जोगी को उनके साथ न्याय का भरोसा दिया था।

जोगी की जाति का मामला 30 साल से चल रहा है। हाइकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट से होते हुए हाइपावर कमेटी तक आया। कोर्ट से जोगी को छह बार राहत मिल चुकी है। सातवीं बार भी हाइकोर्ट में उनके खिलाफ फैसला नहीं आया। अजीत जोगी इसे सच की जीत बता रहे हैं तो याचिकाकर्ता संत कुमार नेताम हाइकोर्ट के ताजा फैसले से दुखी हैं। उन्होंने कहा कि वे छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हाइपावर कमेटी को जोगी की जाति का फैसला तीन महीने में करना था। रिपोर्ट छह साल में आई। रिपोर्ट में देरी के कारण भी मुख्यमंत्री रमन सिंह पर जोगी की मदद करने का आरोप लगता रहा।

सुप्रीम कोर्ट ने 13 जनवरी 2011 को जोगी की जाति की जांच के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को हाइपावर कमेटी बनाने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित हाइपावर कमेटी में चूक लालफीताशाही को इंगित करता है। एक रिटायर्ड आइएएस अधिकारी का कहना है कि कमेटी का गठन ही नहीं, अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के ऑर्डर भी राजपत्र में छपने चाहिए। हाइपावर कमेटी की सूचना राजपत्र में न छपने के लिए संबंधित विभाग के अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक जिम्मेदार हैं। नियम-कायदे और प्रक्रिया निर्धारित हैं। जरूरत तो केवल उसे देखने की है। वैसे तो राज्य में अफसरों की फौज है, लेकिन दो पूर्व मुख्यसचिवों के राज्य के आला पदों पर रहते ऐसी चूक की प्रशासनिक हलकों में चर्चा है। दोनों ही पूर्व मुख्यसचिवों को मुख्यमंत्री रमन सिंह का काफी विश्वासपात्र कहा जाता है।

रीना कंगाले को ट्राइबल डिपार्टमेंट की मुखिया बनाने से पहले इस विभाग की जिम्मेदारी प्रमुख सचिव स्तर के एक अधिकारी के पास थी और सचिव भी अलग था। ट्राइबल कमिश्नर की जिम्मेदारी भी दूसरे आइएएस के पास थी। अचानक सरकार ने विशेष सचिव स्तर के अधिकारी को पूरी कमान सौंप दी। वैसे छत्तीसगढ़ सरकार में जूनियर आइएएस अधिकारियों को बड़ी जिम्मेदारी देने की प्रथा-सी बन गई है। राज्य के कई सीनियर आइएएस केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए आवेदन लगा चुके हैं। छत्तीसगढ़ में बड़े अफसरों की कमी भी इसका एक बड़ा कारण माना जाता है। यही वजह है ‌क‌ि आइएएस के काडर पोस्ट पर आइएफस और दूसरे विभागों के अधिकारियों की पदस्थापना की गई है।

राज्य में चाहे जो भी स्थिति हो, छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट के फैसले के बाद एक बात तो साफ है प्रशासन तंत्र की लापरवाही कहें या चूक, उससे न केवल जोगी का बल्कि राज्य के 33 फीसदी से अधिक आदिवासी समाज का भरोसा राज्य के प्रशासन तंत्र से डगमगाया है। हाइपावर कमेटी में तकनीकी खामियां न होतीं और राजपत्र में उसकी अधिसूचना जारी हो जाती तो जोगी की जाति को लेकर 30 साल से चला आ रहा लुकाछुपी का खेल खत्म हो गया होता और राजनीतिक परिदृश्य भी साफ हो जाता। हाइकोर्ट के फैसले के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने जल्द हाइपावर कमेटी गठित करने की बात कही है, लेकिन लगता नहीं कि राज्य में 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले जोगी की जाति के मुद्दे से पर्दा हटेगा।

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