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रजनीकांत का जलवा कितना दमदार

बगैर जयललिता एआइएडीएमके में बिखराव की आशंका और उपचुनाव में डीएमके के निराशाजनक प्रदर्शन से रजनीकांत के लिए राजनीति में कदम रखने का मौका तो माकूल पर चुनौती बड़ी
सियासी पारी खेलने को रजनीकांत तैयार

रजनीकांत के फिल्मी कॅरिअर के शुरुआती दिनों में निर्देशक की सबसे बड़ी चुनौती उनकी रफ्तार को संभालना था। अगर दृश्य की मांग होती कि रजनीकांत एक हॉल की तरफ टहलते हुए जाएं तो प्रतिष्ठित निर्देशक के. बालचंदर चिल्लाते रहते, ‘मेधुवा, मेधुवा’ (धीरे-धीरे!), ताकि कैमरा उनकी तरफ आराम से घूम सके। इसके बावजूद यह अभिनेता सनसनाते हुए आगे निकल जाता और कैमरामैन सिर हिलाता और रीटेक के लिए हाथ से इशारा करता रह जाता।

अनुभवी फिल्म निर्माता एस.पी. मुतुरमण याद करते हैं कि आखिरकार कैसे बालचंदर ने इस समस्या के समाधान की तरकीब निकाली। 82 वर्षीय मुतुरमण कहते हैं कि निदेशक के “कट, शॉट ओके” कहने के बावजूद उन्हें काबू में रखना आसान नहीं था। रजनीकांत अचानक अनूठे तरीके से हवा में सीटी बजाते हुए तेजी से कुर्सी से उठते या सिगरेट पीने के लिए चुपके से बाहर चले जाते।

आज 68 साल की उम्र में भी रजनीकांत में बिजली जैसी चपलता है। राजनीति में प्रवेश की घोषणा के दो दिनों के बाद मीडिया के साथ ‘मुलाकात’ कार्यक्रम के बाद जिस तरह वे पूरे वेग से आगे बढ़े, वह अस्वाभाविक तो नहीं था। लेकिन राजनीति में उस चाल को बरकरार रखना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी। रजनीकांत के इस कदम ने उनके प्रशंसकों में भारी उम्मीद जगा दी है। ये प्रशंसक अपने तलैवा (नेता) की राजनैतिक पारी का लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। तमिल जनता भी अब उनके अगले कदम के इंतजार में है। इसलिए रजनीकांत अपनी पार्टी शुरू करने में काफी लंबा समय नहीं ले सकते हैं।

फिल्म निर्माता और इतिहासकार जी. धनंजयन कहते हैं, “हां, रजनीकांत अब अपनी रफ्तार धीमी करने का जोखिम नहीं उठा सकते।” उन्हें यह देखना है कि उनमें मीडिया का आकर्षण फीका न पड़े। धनंजयन याद करते हैं कि 1972 में जब एमजी रामचंद्रन ने एआइएडीएमके शुरू किया तो उन्होंने पूरे राज्य भर में सभाएं कीं और अपनी फिल्मों को राजनैतिक संदेश देने का औजार बनाया। रजनीकांत के लिए यह अच्छी बात है कि उनकी दो फिल्में अभी पाइपलाइन में हैं।

एक अन्य तमिल सुपरस्टार इसी मुद्रा में हैं। अपनी राजनैतिक पार्टी शुरू करने के तमाम वादों के बाद कमल हासन अपनी आने वाली फिल्म विश्वरूपम-2 के पोस्ट-प्रोडक्शन के लिए लॉस एंजिलिस जा चुके हैं। लेकिन लंबे समय से राजनैतिक गलियारे से गैर-मौजूदगी से 63 वर्षीय अभिनेता को कुछ अगंभीर माना जाने लगा है। अगर कमल हासन खोई हुई जमीन पाने की कोशिश करते भी हैं, तो उन्हें पता चलेगा कि रजनीकांत ने उनकी गर्जना छीन ली है।

अभी तक लग रहा है कि तलैवा काफी सधी हुई चाल चल रहे हैं। रजनीकांत ने घोषणा के अगले दिन अपने फैंस एसोसिएशन से लोगों के जुड़ने के लिए वेबसाइट और ऐप को लॉन्च किया। उनके फैंस एसोसिएशन के एक पदाधिकारी सूर्या ने बताया कि हमसे हर शहर और गांव जाने के लिए कहा गया है, ताकि हर जगह के प्रशंसक औपचारिक रूप से एसोसिएशन से जुड़ सकें। साथ ही, अपंजीकृत एसोसिएशन को पंजीकृत कराने को भी कहा गया।

मजेदार तथ्य यह है कि रजनीकांत अपनी राजनीति का आधार धर्म या ‘आध्यात्मिकता’ को बना रहे हैं जो निरीश्वरवादी द्रविड़ राजनीति में कुछ अनजाना-सा है। नए साल पर वे चेन्नै के रामकृष्ण मठ गए और वहां के पीठाधीश स्वामी का आशीर्वाद लिया। वे जल्द ही उत्तराखंड के ऋषिकेश में अपने आध्यात्मिक गुरु बाबाजी से मिलने जाने वाले हैं। दूसरी द्रविड़ पार्टियों का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, जबकि रजनीकांत अध्यात्म में अपनी आस्था का प्रदर्शन करते हैं। हालांकि वे यह भी साफ करते चलते हैं कि उनकी राजनीति जाति या धर्म से ऊपर होगी। वे कहते हैं कि ‘आध्यात्मिक राजनीति’ नैतिक और निष्पक्ष राजनीति का ही दूसरा नाम है।

लेकिन आलोचकों को यह बात पच नहीं रही है। जिस तेजी से भाजपा ने राजनीति में उनके प्रवेश का स्वागत किया और उनकी ‘आध्यात्मिक राजनीति’ को गले लगाया, उससे यही कयास लगाया जा रहा है कि रजनीकांत भगवा पार्टी के लिए महज एक फ्रंट भर हैं। दलित पार्टी के महासचिव डी. रविकुमार कहते हैं कि देखिए, तमिलनाडु में भाजपा का न तो कोई आधार है और न ही कोई विश्वसनीय स्थानीय नेता। सो, उसने रजनीकांत को आगे किया है।

हालांकि, कुछ जानकार उन्हें संदेह का लाभ देना चाहते हैं। बाजार शोध विशेषज्ञ एंथनी राज बताते हैं कि यूरोप में कई राजनैतिक पार्टियां खुले तौर पर ईसाइयत को गले लगाती हैं और फिर भी अपनी राजनैतिक सोच धर्मनिरपेक्ष बता रही हैं। रजनीकांत कम से कम पाखंडी नहीं हैं। वे ईमानदार हैं और धर्मनिष्ठ हिंदू हैं। वे सांप्रदायिक नहीं होंगे।

रजनीकांत भी अपनी ईमानदारी पर अधिक जोर देते हैं। बाबा (2002) और लिंगा (2014) फिल्म फ्लॉप होने के बाद जब वितरकों को घाटा हुआ तो भरपाई के लिए उन्होंने अनूठा कदम भी उठाया। दरअसल, जब 2017 में बॉलीवुड स्टार सलमान खान की फिल्म ट्यूबलाइट फ्लॉप हो गई तो वितरकों ने घाटे की भरपाई की खातिर उन्हें राजी करने के लिए इसकी मिसाल भी दी। एक पूरी पीढ़ी को सिगरेट उछाल कर पीने का अंदाज सिखाने के बाद, उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे ऐसी कोई भी आदत न रखें, जो उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करे।

फिल्म इंडस्ट्री में रजनीकांत के साथी उन्हें आगाह करते हैं कि अपनी राजनीति में परिवार के हस्तक्षेप को लेकर उन्हें कठोर होना पड़ेगा। चाहे डीएमके हो या एआइएडीएमके, नेताओं के परिवार का खुल्लमखुल्ला हस्तक्षेप तमिलनाडु में राजनीति के लिए अभिशाप रहा है। रजनीकांत को अपनी दोनों बेटियों ऐश्वर्या और सौंदर्या की महत्वाकांक्षा की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। दोनों ने फिल्म निर्देशक के तौर पर पहचान बनानी चाही, लेकिन असफल रहीं। एक फाइनेंसर ने फिल्म कोचादियान के अधिकार को लेकर उनकी पत्नी लता को कोर्ट में घसीटा और किराया बकाया को लेकर एक बिल्डिंग की मालिक ने उनके स्कूल को बंद करा दिया। फिल्म इंडस्ट्री के उनके एक करीबी साथी कहते हैं कि रजनीकांत से इतर उनके पारिवारिक सदस्यों का वित्तीय रिकॉर्ड दागदार रहा है।

इसलिए रजनीकांत को इन आरोपों से निपटने का तरीका भी ईजाद करना पड़ सकता है। इसमें दो राय नहीं है कि उन्होंने अपने समय का इंतजार किया और सावधानी से पत्ते खेले। पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता के निधन और डीएमके के वयोवृद्ध नेता एम. करुणानिधि की बीमारी से बना राजनैतिक शून्य उनके लिए मौका है। हालांकि, कांग्रेस के पी. चिदंबरम से लेकर भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक हर पार्टी में रजनीकांत के मित्र हैं, लेकिन उनकी राजनीति उनकी अपनी होनी चाहिए। किसी दूसरे के प्रतिनिधि होने का आरोप झेलने से पहले रजनीकांत को खुद की अपनी पहचान बनानी होगी। उन्हें वह जिंदगी जीनी होगी, जिसे लेकर एक बार उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु चो. रामास्वामी से कहा था, “अगर मैं राजनीति में आता हूं, तो मैं कैरम बोर्ड पर स्ट्राइकर बनूंगा न कि गोटी”। अब उसे साबित करने का वक्त आ गया है। 

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