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सूरज की रोशनी से रात भी जगमग

सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करने की बढ़ती संभावनाओं, घटती लागत और बैट्री की दुनिया में आई तकनीकी छलांग से आसान हुआ हरित ऊर्जा क्रांति का सफर
बैट्रियों से आएगी ऊर्जा क्रांति

वह दिन दूर नहीं जब सूरज और हवा आपके घर-आंगन में हाजिरी लगाएंगे और जरूरत पर बिजली मुहैया कराएंगे। बस एक बैट्री यह कमाल कर दिखाएगी। वही लिथियम आयन युक्त बैट्री जिससे आपका स्मार्टफोन घनघनाता है, अब आपके घर-दफ्तर को रोशन करेगी, आपकी कार को रफ्तार देगी। यह कोई कोरा विज्ञान गल्प नहीं बल्कि हकीकत है। अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में तो कुछ घर इससे जगमग भी हैं। यह संभावना दोहरा आकर्षण पैदा कर रही है।एक, देश में सौर ऊर्जा को संभव और आसान बनाने की तकनीक में नई प्रगति और दूसरे, बैट्री तकनीक में आई क्रांति, जिससे अक्षय ऊर्जा को सोखने, भंडारण और बिजली मुहैया कराने की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं।

देश आज उस सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में है, जहां आने वाले कल को संकट में डाले बगैर ऊर्जा प्रचुरता की ओर बढ़ा जाए। बेशक, एकमात्र विकल्प जीवाश्म ईंधन (यानी कोयला, पेट्रोल-डीजल वगैरह) से अक्षय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ा जाए। लेकिन समस्या यह है कि अक्षय ऊर्जा या कहिए सौर ऊर्जा का ही कैसे संग्रह किया जाए? भारत में सूरज की रोशनी से ज्यादा प्रचुरता किसी चीज की नहीं है। लेकिन साधनों की कमी और सूर्य से लगातार रोशनी नहीं मिलने की बाध्यता के कारण लंबे समय से यह क्षेत्र हमें चिढ़ाता रहा है। पर अब हम एक नए बदलाव का गवाह बन रहे हैं। अक्षय ऊर्जा को बैट्री जैसे संग्रहीत करने वाले साधनों से जोड़ना मुमकिन है। एक और चीज जो करीब दिख रही है वह है, इलेक्ट्रिक वाहन। यह सब कुछ वैसे ही आकार ले रहा है जैसे स्टैनफोर्ड के शिक्षाविद और क्लीन डिसरप्‍शन के लेखक टोनी सीबा ने भविष्यवाणी की थी। सीबा की मानें तो महज तीन साल के भीतर ये सब चलन में होंगे। इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा संभावना भारत में ही है। मई में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल जब वियना एनर्जी फोरम को संबोधित करने के लिए मंच पर पहुंचे तो उनका परिचय एक ऐसे देश के मंत्री के तौर पर कराया गया ‘जो दुनिया में ऊर्जा क्षेत्र के सबसे बड़े बदलाव’ का केंद्र है। देश में ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ते निवेश में पहले से ही बड़ी हिस्सेदारी सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और इलेक्ट्रिक कारों की है। जानकारों का मानना है कि स्वच्छ ऊर्जा जल्द ही कोयले को खेल से बाहर कर ‌देगी। भारत और चीन में से एक हरित ऊर्जा क्रांति का नेतृत्व कर सकता है।

हालिया घोषित नीतियों और लक्ष्यों से पता चलता है कि भारत को दुनिया की सबसे हरित अर्थव्यवस्‍था में से एक बनना है। हालांकि ऊर्जा संचित करने योग्य बैट्रियों के निर्माण, दोबारा इस्तेमाल और अक्षय ऊर्जा को देश के इलेक्ट्रिक ग्रिड से जोड़े बिना लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। ऐसे में लीथियम आयन युक्त बैट्री तेजी से सबसे महत्वपूर्ण बन रही है। ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस के न्यू एनर्जी आउटलुक 2017 के अनुसार बिजली उत्पादित करने के लिए कोयले का इस्तेमाल कम नहीं करने के अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विचार से भारत का दृष्टिकोण बिल्कुल विपरीत हैं। उसका लक्ष्य 15 से भी कम वर्षों के भीतर दुनिया की सबसे हरित अर्थव्यवस्‍था में से एक बनना है। 2015 की पेरिस जलवायु संधि में भारत ने 2030 तक 2005 के स्तर से कार्बन उत्सर्जन में 33-35 फीसदी कटौती का वादा कर दुनिया को हैरान कर दिया था। 2022 तक 175 गीगावाट नवीन ऊर्जा का उत्पादन कर इस लक्ष्य तक पहुंचना है। इसमें से 100 गीगावाट सौर ऊर्जा, 60 गीगावाट पवन ऊर्जा, 10 गीगावाट जीवाश्म ईंधन और 5 गीगावाट छोटी पनबिजली परियोजनाओं से आएंगे। ये सब मिलकर 2030 तक देश की 40 फीसदी ऊर्जा जरूरतों को गैर जीवाश्म ईंधन से पूरा करने के बड़े लक्ष्य को पूरा करेंगे।

2030 में सड़क पर उतरने वाली हर कार इलेक्ट्रिक हो यह सुनिश्चित करना मोदी सरकार की सबसे परिवर्तनकारी योजना है। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने सितंबर में कार निर्माताओं से कहा था कि यदि इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन नहीं बढ़ाया तो पुरानी कारों पर ‘बुलडोजर’ चलवा दिया जाएगा। यह अक्षय ऊर्जा के बढ़ते असर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने जैसा नहीं है। इससे कार्बन उत्सर्जन घटेगा, प्रदूषण कम होगा, विदेशी मुद्रा (भारत तेल का सबसे ज्यादा आयात करता है) बचेगी। आयात कम होने से जीडीपी बढ़ेगा और भुगतान संतुलन मजबूत होगा।

अक्षय ऊर्जा रोडमैप 2030 पेश कर नीति आयोग बाजार को इसके संकेत दे चुका है। देश में अक्षय ऊर्जा के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक सीमेंस गमेसा के सीईओ रमेश कायमल ने बताया कि उनकी कंपनी बहुत तेजी, सालाना करीब 100 फीसदी की दर से बढ़ रही है। मांग को पूरा करने के लिए कंपनी को पांचवां अतिरिक्त संयंत्र लगाना पड़ा है। कायमल कहते हैं, “अब लोग समझने लगे हैं कि हवा और सूरज संसाधन हैं, इन्हें बर्बाद नहीं किया जा सकता।” अतिरिक्त संयंत्र के लिए नेल्लोर में राज्य सरकार ने 15 दिन में जमीन दे दी जो बताता है कि राज्यों में परियोजनाओं को लेकर अब कड़ी प्रतिस्पर्धा है। मध्य प्रदेश के रीवा में 750 मेगावाट का दुनिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादन संयंत्र लगाने का फैसला इस क्षेत्र में हो रहे बदलाव का चरम बिंदु है। इसकी 33 घंटे चली ऑनलाइन निविदा प्रक्रिया में दुनिया की कुछ बड़ी वैश्विक सौर ऊर्जा कंपनियां शामिल थीं। कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच 25 सालों के लिए 3.30 रुपये प्रति यूनिट की बोली लगाकर तीन कंपनियों महिंद्रा ‌रिन्यूएबल्स, एसीएमई सोलर और सोलएनर्जी पावर ने निविदा हासिल की। पहले साल का टैरिफ और भी कम था 2.97 रुपये प्रति यूनिट है। इसने सौर ऊर्जा को पहली बार देश में तापीय ऊर्जा से सस्ता कर दिया। एनटीपीसी की बिजली की औसतन कीमत 3.30 रुपये प्रति यूनिट है। गिरावट को समझने के लिए इस पर गौर करना जरूरी है कि 2011 में सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट लागत 12.76 रुपये थी।- गेमचेंजरः रीवा फर्म से बिजली खरीदने का समझौता भोपाल में अप्रैल में हुआ था

रीवा पहली ऐसी सौर ऊर्जा परियोजना है जिससे दूसरे राज्यों को भी बिजली बेची जाएगी। इससे इसके सबसे बड़े उपभोक्ता दिल्ली मेट्रो को बड़ी बचत होगी जो इस समय प्रति यूनिट 4.30 रुपये का भुगतान करता है। रीवा मॉडल का अनुसरण करते हुए राजस्‍थान की भादला सोलर पार्क परियोजना की लागत घटकर 2.90 रुपये प्रति यूनिट हो गई है। यहां सौर्य ऊर्जा कंपनी ऑफ राजस्‍थान लिमिटेड के साथ संयुक्त उपक्रम में राजस्‍थान रिन्यूएबल एनर्जी कॉरपोरेशन लिमिटेड 500 मेगावाट का प्लांट लगा रहा है। अदानी रिन्यूएबल एनर्जी पार्क राजस्‍थान लिमिटेड 250 मेगावाट की क्षमता वाला पार्क विकसित कर रहा है।

लागत के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। वास्तव में एक प्रौद्योगिकी तब तक ज्यादा सफल नहीं हो पाती जब तक यह सस्ती नहीं होती। केवल कड़ी प्रतिस्पर्धा ने ही रीवा फर्म को कीमत रखने को मजबूर नहीं किया। सौर ऊर्जा निगम के शीर्ष कार्यकारी अश्विनी कुमार ने बताया कि लागत में कमी का मुख्य कारण ‘प्रभावकारी बिजली खरीद समझौतों’ या ईपीपीए से पैदा भरोसा और सरकार की गारंटी है। ईपीपीए का मतलब मजबूत और ‌स्थिर मांग से है जो उपभोक्ताओं के साथ फायदेमंद मूल्य निर्धारण की व्यवस्‍था करता है।

अब घर की छत पर सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने को गुजरात, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, कर्नाटक, राजस्‍थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों के पास प्रतिस्पर्धी नीतियां हैं। केरल ने वायनाड के बानसुरा सागर रिजर्वेयर में पानी पर तैरने वाला सौर ऊर्जा उत्पादन संयंत्र लगाया है। देश में अक्षय ऊर्जा को रफ्तार देने का एक और रास्ता इलेक्ट्रिक कारें हैं। यह सौर ऊर्जा का बैट्री के तौर पर इस्तेमाल करने के सपने से जुड़ा है। सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चर्स के निवर्तमान अध्यक्ष विनोद दसारी कहते हैं भारत के इलेक्ट्रिक सपने को पूरा करने के लिए सबसे पहले बैट्री को प्रोत्साहित करने वाली नीति की जरूरत है। टोनी सीबा ने जून में कोलाराडो में क्लीन एनर्जी एक्‍शन में प्रेजंेटेशन देते हुए बताया कि किस तरह केवल 15 साल में दुनिया बदल जाएगी। वे कहते हैं, “प्रौद्योगिकी को स्वीकार करने की रफ्तार कभी सपाट नहीं होती। यह एस कर्व (देखें ग्राफ) में स्वीकार्य होता है।" इसके समर्थन में वे रंगीन टीवी के क्षेत्र में आए बदलाव का उदाहरण देते हैं। यह ग्राफ बताता है कि 1950 के दशक में जब रंगीन टीवी की कीमत ज्यादा थी मांग में ठहराव था। कीमतों में गिरावट के साथ धीरे-धीरे इसे स्वीकार करने की दर बढ़ गई। स्वच्छ ऊर्जा को लेकर सीबा ने जो भविष्यवाणी की थी वह 2017 के मध्य में ही अपने शीर्ष बिंदु पर पहुंच चुकी है। उनके अनुसार अब इसकी स्वीकार्यता लगातार बढे़गी।

अतिरिक्त ऊर्जा का भंडारण देश में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का अगला चरण है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के सलाहकार अचिन राय कहते हैं, ‘‘जब प्रोद्यौगिकी का सही तरीके से लाभ मिलने लगेगा तो कंपनियां स्वभाविक रूप से उपभोक्ताओं के लिए भंडारण की सुविधा भी लाएंगी।’’ अमेरिका की इले‌क्ट्रिक कार निर्माता टेस्ला ने घर में इस्तेमाल की जाने वाली एक पोर्टेबल बैटरी ‘पावरवाल’ बनाई है। यह सूर्यास्त के बाद भी जरूरत के अनुसार उत्पादन करती है। पावरवाल स्मार्टफोन एेप से जुड़ा होता है। टेस्ला के विज्ञापन में कहा गया है, “यह आपको बिजली जाने का पता भी नहीं चलने देती है और एक सप्‍ताह तक आपूर्ति करती है।”

टेस्ला के संस्‍थापक एलन मस्क बैट्री की नई तकनीक पर काम कर रहे हैं जिसे राष्‍ट्रीय बिजली ग्रिड में लगाया किया जा सके। जब मांग कम हो उस वक्त बैट्री में बिजली स्टोर करना और मांग बढ़ने पर आपूर्ति बढ़ाना इसकी कुंजी है। ज्यादातर नए शोध अक्षय ऊर्जा के ग्रिड को भंडारण योग्य बनाने पर केंद्रित है। औद्योगिक स्तर पर लिथियम आयन युक्त बैट्री का बैंक तैयार करना अगली तकनीकी छलांग है। एक बार नेशनल ग्रिड से जुड़ने के बाद ये ग्रिड से आपूर्ति नहीं होने पर भी खुद ब खुद ऊर्जा प्रदान करेंगे। इसके छोटे संस्करण और मीटर से जोड़ने पर घरेलू उपभोक्ता भी अक्षय ऊर्जा को संग्रह‌ित कर रात के समय इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। जर्मनी में उपभोक्ता बची हुई ऊर्जा को संचित कर इसे दोबारा नेशनल ग्रिड को बेच देते हैं। नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय में सचिव आनंद कुमार बताते हैं, “सरकार का अगला बड़ा जोर बैट्री निर्माण को प्रोत्साहित करने पर है।” इसरो की बैट्रियों ने सुनिश्चित किया है कि उपग्रह कार्यक्रम के दौरान अंतरिक्ष में कोई गड़बड़ी न हो। साल की शुरुआत में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र और ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने लिथियम ऑयन युक्त बैट्री की नई शृंखला का परीक्षण किया है।

निजी क्षेत्र भी बैट्री निर्माण के क्षेत्र में निवेश कर रहा है। सितंबर में सुजुकी मोटर्स ने बताया था कि वह गुजरात के हंसलपुर स्थित अपने लिथियम बैट्री प्लांट में 1,500 करोड़ रुपये के निवेश की योजना बना रही है। पैनासोनिक और एईएस हरियाणा में 10 मेगावाट का ऊर्जा भंडारण संयंत्र लगा रहा है। अक्षय ऊर्जा के लिए भारत का मिशन कोई अनूठा नहीं है, लेकिन प्रदूषण और तेल आयात में कमी लाने के लिए एजेंसियों को रणनीतिक जोर लगाना होगा। वित्त मंत्रालय के अनुसार यदि अक्षय ऊर्जा में इजाफा नहीं हुआ तो आयात दशक भर में दोगुना हो जाएगा। 10 वर्षीय राष्‍ट्रीय बिजली योजना का मसौदा बताता है कि भारत को कम से कम 2027 के अंत तक कोयला से बिजली उत्पादन करने वाली किसी नई परियोजना की जरूरत नहीं होगी। प्रो. राय के अनुसार इसे सुनिश्चित करने का विचार कोयले को पूरी तरह खत्म करना नहीं है बल्कि जीवाश्म ईंधन पर धीरे-धीरे निर्भरता कम कर अक्षय, पनबिजली और कोयले से उत्पादित ऊर्जा के बीच संतुलन बनाना है।  

इस दिशा में बढ़ने का एक और कारण मौजूद है। विश्व बैंक के अनुसार कम से कम 30 करोड़ भारतीय अब भी बिना बिजली के रह रहे हैं। काउंसिल ऑफ एनर्जी एनवायर्नमेंट का अध्ययन छत्तीसगढ़ के 570 प्राथमिक स्वास्‍थ्य केंद्रों में फोटोवोलेटिक सिस्टम के माध्यम से सौर ऊर्जा उपलब्‍ध कराने से आए बदलाव को बताता है। 15 जिलों में मूल्यांकन के आधार पर यह अध्ययन आधारित है। इससे पता चलता है कि सौर ऊर्जा युक्त अस्पतालों में बिजली नहीं रहने वाले ग्रामीण प्राथमिक स्वास्‍थ्य केंद्रों की तुलना में प्रसव में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। आकर्षक इलेक्ट्रिक कारों की तुलना में लोकहित में यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। आखिरकार, देश के सामाजिक ढांचे में भी ऊर्जा का संचार होना चाहिए।

 

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