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कौशल दिखाने का मौका ही कहां?

किसी मंत्रालय में पूरे तीन साल काम करने का सौभाग्य तो कुछेक मंत्रियों को ही मिला, बहुतों के विभाग कई बार बदले, कई मंत्रालय में आठ मंत्री आए-गए
बदली भूमिकाएं- गडकरी को जल, उमा को पेयजल मंत्रालय

छब्बीस मई, 2014 कोई मामूली तारीख नहीं है। इस दिन भारी बहुमत और बड़ी उम्मीदों के साथ सत्ता में आई नरेन्द्र मोदी सरकार ने शपथ ली और 46 मंत्री बनाए गए। इससे पहले मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में 77 मंत्री थे। उम्मीद जगी कि “मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिम गवर्नेंस” का नारा अब साकार होने जा रहा है। लेकिन बीते दिनों हुए फेरबदल के बाद मोदी सरकार में कुल 75 मंत्री हो गए हैं, जो यूपीए से बस दो ही कम हैं। जबकि एनडीए के नए सहयोगी जदयू से कोई मंत्री नहीं बना है। सरकार में टैलेंट और अनुभव की भरपाई करने के लिए चार पूर्व नौकरशाहों समेत नौ नए राज्यमंत्रियों को शामिल किया गया है। लेकिन छह मंत्रियों की छंटनी भी हो गई।

इस तरह कुल 32 मंत्रियों के मंत्रालयों में फेरबदल हुआ या उन्हें नई जिम्मेदारियां दी गई हैं। इस लिहाज से यह काफी व्यापक फेरबदल रहा। अच्छा प्रदर्शन करने वाले पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान और नितिन गडकरी जैसे मंत्रियों का कद बढ़ा है लेकिन रेल सुधार, नमामि गंगे, खेल और कौशल विकास जैसे मोर्चों पर नाकामियां स्वीकार करते हुए मंत्रियों को बदल दिया गया है। बेशक, कई मंत्री पीएम मोदी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। लेकिन यह भी सच है कि कई अहम मंत्रालयों में इतनी जल्दी-जल्दी बदलाव हुए कि मंत्रियों को जमकर काम करने का मौका ही नहीं मिला। कई मंत्रियों के महकमे तो हर साल बदल रहे हैं।

सबसे पहले नवंबर, 2014 में हुए कैबिनेट विस्तार में 21 नए मंत्रियों को जगह दी गई थी। इसके बाद जुलाई, 2016 के कैबिनेट विस्तार में 19 नए मंत्री बनाए गए। इस बीच कई मंत्रियों के दायित्व बदले जाते रहे। अब तक कुल 93 लोगों को बतौर मंत्री विभिन्न मंत्रालयों में आजमाया गया है। शुरुआत से अब तक करीब एक दर्जन मंत्रियों की छंटनी हो चुकी है। आखिर में शहरी विकास, पर्यटन और बिजली जैसे अहम मंत्रालयों का स्वतंत्र प्रभार पूर्व नौकरशाहों को दिया गया है। इससे मोदी सरकार और भाजपा में टैलेंट की कमी उजागर हुई और विपक्ष को ‘अबकी बार, अफसरों की सरकार’ का आरोप लगाने का मौका मिल गया।

हालांकि, कैबिनेट से राजीव प्रताप रूडी, कलराज मिश्र, बंडारू दत्तात्रेय, फग्गन सिंह कुलस्ते और संजीव बालियान की विदाई के पीछे इनके लचर प्रदर्शन को वजह बताया जा रहा है। कैबिनेट से बाहर किए जाने के बाद राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि बॉस हमेशा सही होता है। अपने कार्यकाल का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि उनका काम नौकरी योग्य वर्कफोर्स तैयार कराना था। रोजगार दिलाने की बात इसमें कहीं नहीं थी।

अगर खराब प्रदर्शन के आधार पर सुरेश प्रभु को रेल मंत्रालय से हटाया गया तो उद्योग एवं वाणिज्य जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय में उनकी दावेदारी कैसे बनती है। याद कीजिए रेल मंत्रालय में सबसे पहले सदानंद गौड़ा को मंत्री बनाया गया था। छह महीने के अंदर यह जिम्मेदारी मोदी के ट्रंप कार्ड के तौर पर लाए गए सुरेश प्रभु को दे दी गई। अब ढाई साल बाद रेल मंत्रालय का जिम्मा पीयूष गोयल को मिला है। बेशक, गोयल को बिजली और कोयला मंत्रालय में उनके प्रदर्शन का इनाम मिला है लेकिन आए दिन हादसों को देखते हुए रेल की डगर आसान नहीं होगी। इन बदलावों पर तंज कसते हुए पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ट्वीट करते हैं कि कृषि संकट में है। स्वास्थ्य संकट में है। लेकिन प्रभु मंत्री बने हुए हैं। हिचकोले खाते उद्योग और ठप पड़े निर्यात वाले मंत्रालयों में प्रभु आपका स्वागत है!

शुरुआत में मोदी सरकार को मिलते-जुलते कामकाज वाले मंत्रालयों का समूह बनाकर मंत्री के हवाले करने का श्रेय भी दिया गया था। समय के साथ यह मिथक भी टूट गया है। ‘नमामि गंगे’ वाला जल संसाधन मंत्रालय उमा भारती से लेकर नितिन गडकरी को दिया गया है, जिनके पास पहले ही सड़क परिवहन और शिपिंग जैसे अहम मंत्रालय हैं। उमा भारती के पास अब पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय रहेगा। यानी जल अलग, पेयजल अलग!

स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया, प्रधानमंत्री आवास योजना और स्वच्छ भारत अभियानों को सफल बनाने में जुटी केंद्र सरकार के मंत्रियों के प्रदर्शन का बारीकी से मूल्यांकन किया था। माना जा रहा है कि इसी आधार पर रूडी के साथ-साथ एमएसएमई मंत्रालय से कलराज मिश्र, श्रम मंत्रालय से बंडारू दत्तात्रेय, स्वास्थ्य मंत्रालय से फग्गन सिंह कुलस्ते और जल संसाधन मंत्रालय से संजीव बालियान की छुट्टी हुई है। वैसे तीन साल के दौरान कुल आठ मंत्रियों को जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्रालय का जिम्मा मिल चुका है। कृषि मंत्रालय भी पीछे नहीं है। वहां फिलहाल एक कैबिनेट और तीन राज्यमंत्रियों समेत कुल चार मंत्री हैं। कृषि मंत्रालय का जिम्मा भी अब तक कुल आठ  मंत्रियों को मिल चुका है। सामाजिक न्याय और कौशल विकास का भी यही हाल है। कैबिनेट में सुदर्शन भगत जैसे मंत्री भी हैं जिनका कार्यभार हर बार बदल जाता है। तीन साल में भगत के पास चार मंत्रालय रहे। एक मंत्रालय में औसतन एक साल भी काम करने को नहीं मिला।    

हालांकि, राज्यमंत्री महेंद्र नाथ पांडेय को यूपी भाजपा का अध्यक्ष बनाए जाने की वजह से इस्तीफा देना पड़ा। संजीव बालियान के इस्तीफे के पीछे भी जल संसाधन मंत्रालय में उनके प्रदर्शन से ज्यादा यूपी की राजनीति में उनकी भावी भूमिका को वजह माना जा रहा है। फिर भी इस फेरबदल में एक बात साफ है कि प्रदर्शन के नाम पर ही सही, पीएम मोदी ने लीक से हटकर बड़े फैसले लेने में संकोच नहीं दिखाया है। लेकिन यह भी सही है कि तीन साल में हुए तीन बड़े कैबिनेट फेरबदल के दौरान बहुत से मंत्रियों को ज्यादा दिन एक मंत्रालय में टिकने का मौका नहीं मिला। संयोग देखिए कि मोदी सरकार में जिन तीन राज्यमंत्रियों धर्मेंद्र प्रधान, निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल को प्रमोट किया गया है, उन्हें लगातार तीन साल काम करने का मौका मिला था।

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य रहे पूर्व आइएएस अधिकारी एनसी सक्सेना कहते हैं कि बीते तीन वर्षों में प्रमुख मंत्रालयों में लगातार परिवर्तन होते रहे हैं। ऐसे में मंत्रियों को भी टिककर काम करने का मौका नहीं मिलता। चार-छह महीने तो मंत्रियों को मंत्रालयों और विषयों को समझने में लग जाते हैं।

निर्मला सीतारमण को राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) से सीधे रक्षा मंत्री बनाना इस कैबिनेट विस्तार का सबसे बड़ा फैसला रहा। लेकिन रक्षा मंत्रालय में भी वे तीसरी मंत्री हैं। सेना को आधुनिक बनाने और अटकी रक्षा खरीद जैसी बाधाएं दूर करने के लिए उनके पास सिर्फ 20 महीने बचे हैं। शुरुआत में वित्त और कॉरपोरेट मामलों के अलावा रक्षा मंत्रालय का जिम्मा भी अरुण जेटली के पास था। फिर गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर को रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। लेकिन पर्रीकर को दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालनी पड़ी। ढाई साल के भीतर ही रक्षा मंत्रालय का प्रभार वापस अरुण जेटली के पास आ गया।

खेल मंत्रालय की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। खेल का जिम्मा सबसे पहले असम के कद्दावर नेता सर्बानंद सोनोवाल को दिया गया था। 2016 में असम का मुख्यमंत्री बनने से पहले उन्होंने पद छोड़ा तो इसका प्रभार डॉ. जितेंद्र सिंह को मिला। बाद में विजय गोयल खेल मंत्री बनाए गए। गोयल को 13 महीने ही हुए थे कि उनकी जगह राज्यवर्धन राठौड़ को खेल मंत्री बना दिया गया है। यानी तीन साल में चार खेल मंत्री!

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