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नए कॅरिअर के लिए हुनर की नई राहें

आजकल बहुत से युवा अपनी दिलचस्पी से जुड़े क्षेत्रों में तलाश रहे हैं कॅरिअर के अवसर, एक नजर ऐसे युवाओं और नए कोर्सेज पर
एनआईटी हमीरपुर की वोकेशनल ट्रेनिंग लेते छात्र

ये युवा हैं, अधीर हैं, पर इतना जानते हैं कि इन्हें जीवन में क्या करना है। ये अपने पहले के लोगों द्वारा तय रास्ते पर आंख मूंद कर चलने के लिए तैयार नहीं हैं। कॅरिअर के लिए वे वह रास्ता अपना रहे हैं जहां भविष्य में रोजगार के अवसर ज्यादा हों। बाजार की बदलती जरूरतों, खासकर डिजिटल क्रांति के दौर में नौकरी की जरूरतों के अनुसार विश्वविद्यालयों ने अपने यहां चल रहे कोर्सों में हल्का बदलाव शुरू किया है। दिल्ली और मुंबई विश्वविद्यालय ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कोर्स शुरू किए हैं जो युवाओं की बदलती महत्वाकांक्षा के अनुरूप हों। ये कोर्स नीरस और परंपरागत नौकरियों से अलग हटकर युवाओं को नई तरह की नौकरी दिलाने में सहायक हैं। सरकारी और प्राइवेट विश्वविद्यालयों द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे व्यावसायिक कोर्सों में रीटेल मैनेजमेंट का कोर्स सबसे ज्यादा पढ़ाया जा रहा है। इसका कारण इस क्षेत्र में तेजी से हो रही बढ़ोतरी है। इसके बाद हेल्थकेयर (स्वास्थ्य सेवा) मैनेजमेंट और आईटी (इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) का नंबर है। आईटी में कंप्यूटर प्रणाली की मूलभूत जानकारी से लेकर प्रोग्रामिंग और डाटा साइंस की पढ़ाई कराई जाती है।

उद्यमिता, जो आज की तारीख में एक लोकप्रिय शब्द है, के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर तक के कोर्स उपलब्ध हैं। इनमें कई विशेषज्ञता वाले कोर्स उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली के आंबेडकर विश्वविद्यालय में बच्चों की प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा (अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन) में स्नातकोत्तर का कोर्स है तो जामिया मिल्लिया इस्लामिया सौर ऊर्जा (सोलर एनर्जी) में व्यावसायिक  डिग्री उपलब्ध करा रहा है। ये दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज द्वारा उपलब्ध कोर्सों से अलग हैं। पिछले साल दिल्ली सरकार ने भी कम अवधि के कई व्यावसायिक कोर्स शुरू किए। इनमें से कैटरिंग, स्वास्थ्य सेवा और रीटेल सेक्टर से जुड़े कोर्स ज्यादा लोकप्रिय हुए। 

सेंटर फॉर कॅरिअर डेवलपमेंट के जितिन चावला कहते हैं, ''कई कॉलेज व्यावसायिक कोर्स चलाते हैं। इन पर लोगों का ज्यादा ध्यान पिछले साल गया। चूंकि काफी अभिभावक अपने बच्चों को डिप्लोमा कोर्सों में भेजने से कतराते हैं इसलिए भ्रम दूर करने के लिए यूजीसी ने इस साल से खुद व्यावसायिक कोर्स शुरू दिया है।’’

भारत से अलग, कई देशों में व्यावसायिक डिग्री देने की परंपरा है। ऑस्ट्रेलिया ने तो 15 साल पहले से ही डिग्री स्तर के एकीकृत व्यावसायिक कोर्स को मान्यता दे रखी है। उदाहरण के लिए, यहां कोई छात्र एक साल की पढ़ाई के बाद डिप्लोमा और तीन साल की पढ़ाई के बाद डिग्री हासिल कर सकता है। भारत में भी अब कौशल विकास उपक्रम के तहत इसी तरह की बात सोची जा रही है। चावला बताते हैं कि सीबीएसई ने स्कूलों में पढ़ाई के लिए खाद्य प्रसंस्करण जैसे व्यावसायिक कोर्स शुरू किए हैं पर काफी अभिभावक अपने बच्चों को इसे पढ़ने से रोक रहे हैं। इसका कारण है कि छात्र जब कॉलेज में नामांकन के लिए जाते हैं तो व्यावसायिक विषयों के अंक कुल अंकों से काट लिए जाते हैं।

कॉलेज स्तर पर भी व्यावसायिक कोर्स में नामांकन कराने वाले अधिकांश छात्र या तो सरकारी स्कूलों से आते हैं या फिर वे गरीब परिवारों से होते हैं। इसका कारण यह है कि सरकार की प्रणाली ऐसी है कि वह अमीर घराने के बच्चों को इस ओर आकर्षित नहीं कर पाती है। लेकिन स्थिति तब बदल जाती है जब ऐसा ही कोर्स कोई नामी प्राइवेट विश्वविद्यालय लेकर आता है। चावला कहते हैं, ''अधिकांश भारतीय इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं कि उनका बच्चा व्यावसायिक कोर्स करे। भारत में वैकल्पिक कॅरिअर अपनाने की बात को जड़ जमाने में अभी भी वक्त लगेगा। अधिकांश छात्र इस ओर स्नातक करने के बाद तब रुख करते हैं जब वे अपनी इच्छा के अनुरूप काम करने के काबिल हो जाते हैं।’’ चावला इस बाबत अपने पास कॅरिअर के बारे में सलाह लेने आए एक छात्र का उदारहरण देते हैं। यह छात्र गेमिंग में कॅरिअर बनाना चाहता था जबकि उसके अभिभावक ऐसा नहीं चाहते थे।

कॅरिअर काउंसलिंग स्टार्ट अप स्टूडेंट डेस्टिनेशन के मोहन तिवारी कहते हैं, ''विडंबना है कि हर महीने बड़ी संख्या में युवा नौकरी के लिए आ रहे हैं पर न तो सरकार न ही प्राइवेट सेक्टर व्यावसायिक या कौशल विकास पर पर्याप्त ढंग से ध्यान दे रहे हैं। जबकि प्राइवेट विश्वविद्यालय अपने कोर्सों को नौकरी (प्लेसमेंट) को ही ध्यान में रख कर बनाते हैं। दूसरी ओर, सरकारी कॉलेजों या विश्वविद्यालयों में बदलाव के किसी भी प्रस्ताव को लागू होने में वर्षों लग जाते हैं।’’ तिवारी के अनुसार, ''एसटीईएम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ) से इतर भी नए कॅरिअर के बारे में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। हर छात्र एसटीईएम पर ही ध्यान केंद्रित कर रहा है मगर मेरा मानना है कि हमारे पास ऐसी योग्यता भी होनी चाहिए जो पूरी तरह व्यावसायिक हो।’’ तिवारी उन विशेषज्ञों में शामिल हैं जिनका मानना है कि व्यावसायिक योग्यता की जरूरत आने वाले 20 साल या उससे भी अधिक समय तक पड़ेगी क्योंकि ये कौशल आधारित होंगे और इनका रोजगार की जरूरतों से सीधा जुड़ाव रहेगा।

कॅरिअर के पुराने ढांचे को छोड़र बड़ी संख्या में बच्चे बढ़ईगीरी (कारपेंटरी) और हस्तशिल्प (हैंडीक्राफ्ट्स) जैसे उन क्षेत्रों में भी जाने का जोखिम उठा रहे हैं जो पहले एक समुदाय विशेष के लिए तय थे। अब, डिजाइन की पृष्ठभूमि वाले उद्यमशील युवा लुप्त होती कला की जानकारी लेने और उन्हें सीखने के लिए शहरों ही नहीं गांवों में भी जा रहे हैं। ऐसा करने के पीछे उनका मकसद उभरते हुए रुझान के अनुसार वस्तुओं को बनाना है। इससे न सिर्फ लुप्त होती कला और शिल्प को पुनर्जीवन मिल रहा है बल्कि कॅरिअर के नए अवसर भी पैदा हो रहे हैं। जेजे कॉलेज ऑफ आर्ट्स की तरह कुछ संस्थान सेरामिक्स, पॉट्री और पप्पेट्री में मनोरंजक कोर्स उपलब्ध करा रहे हैं।

स्कूल से बाहर आने या स्नातक करने के बाद कई छात्र अब किसी तरह की नौकरी मिलने की बात करने की जगह लेखक बन रहे हैं या कोई दूसरा मनोरंजक काम कर रहे हैं। कई नए अवसरों की जानकारी के लिए लंबी दूरी तक तय कर रहे हैं।

आज स्थिति यह है कि कई छात्र डॉक्टर या इंजीनियर बनने के पुराने ख्यालों से बाहर आकर अपनी अद्भुत योग्यता के अनुसार नए अवसरों की तलाश कर रहे हैं। अब यह बात अभिभावकों की समझ में भी आने लगी है। यही कारण है कि कॅरिअर के बारे में सलाह देने वाले छात्रों को उनकी ताकत, योग्यता, मानसिकता के अलावा उनकी क्षमता और झुकाव वाले कॅरिअर के अवसरों को अपनाने की सलाह दे रहे हैं।

आईआईएम, अहमदाबाद के पूर्व छात्र और 14 साल कारपोरेट दुनिया में गुजारने वाले मोहन तिवारी कहते हैं, ''छात्रों की महत्वाकांक्षा में आज कोई कमी नहीं आई है, यह अलग बात है कि उनका कॅरिअर लक्ष्य बदल गया है। 20 से 25 फीसदी लोग बदलते दौर और बाजार की जरूरतों के अनुसार दूसरों से आगे रहने के लिए खुद को अपग्रेड करना चाहते हैं।’’ वह बताते हैं, ''हमारे पास आने वाले छात्रों का आंकड़ा यह बताता है कि पिछले दो साल में 50 फीसदी से अधिक ने कॅरिअर के नए अवसरों को अपनाया है। यह शू डिजाइनिंग से लेकर फिल्म निर्माण, ब्लॉगर, यूट्यूबर, ई-एडवर्टाइजर और बहुत कुछ हो सकता है। 50 फीसदी से ज्यादा बच्चों परंपरागत कॅरिअर से अलग रास्ता अपनाया है। यह बड़ी छलांग है।’’

फैशन डिजाइनिंग हो या कम्युनिकेशन (संचार) मैनेजमेंट, इन सब ने कॅरिअर के अवसरों के नए दरवाजे खोले हैं। ये ऐसे कॅरिअर हैं जिनमें कौशल को हरदम उन्नत करने की जरूरत पड़ती है। जो ऐसा करते हैं वे अच्छे पेशेवर तो बनते ही हैं प्रतियोगिता के दौर में खुद को मजबूती से पेश भी करते हैं।

ऐसे में उद्योगों की जरूरत के अनुसार संस्थान कोर्सों में बदलाव भी कर रहे हैं। उदाहरण के लिए नीट विश्वविद्यालय ने कंप्यूटर साइंस कोर्स में बदलाव किया है। इसमें डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन तकनीक पर जोर दिया गया है ताकि वैसे आईटी इंजीनियर तैयार किए जा सकें जिनकी मांग हो। इस प्रोग्राम में मैथेमेटिकल और एलगोरिथम की अवधारणा को मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया गया। इसी तरह कंप्यूटर साइंस के एमएससी प्रोग्राम को इस तरह बनाया गया है कि इसमें छात्रों को कंप्यूटिंग के बारे में पूरी जानकारी दी जाए, अवधारणा की समझ बढ़ाई जाए, उनके लगाव के प्रति सिद्धांतों को बताया जाए, कौशल बढ़ाने के अलावा अप्लायड कंप्यूटिंग के क्षेत्र में प्रैक्ट‌िकल अनुभव भी उपलब्ध कराए जाएं। कई प्राइवेट विश्वविद्यालय बाजार की मांग को देखते हुए डाटा एनालिसिस, क्लाउड मैनेजमेंट, डिजिटल मार्केटिंग आदि में नए सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स उपलब्ध करा रहे हैं। जहां भी उपयोगकर्ता की मांग बढ़ी है वहीं विशेषज्ञता की जरूरत महसूस की गई है। यह मल्टीमीडिया और एनिमेशन में ज्यादा जरूरी हो गई है क्योंकि वर्तमान में इनकी मांग काफी बढ़ी है।

कुल मिलाकर 60 से 70 फीसदी लोग स्नातक के बाद व्यावसायिक कोर्स को अपनाते हैं जबकि 30 से 35 फीसदी स्कूल के बाद यहां आते हैं। इस क्षेत्र में आने के लिए उम्र की कोई बाध्यता नहीं है। बड़ी संख्या में लोग बदलाव के बाद इस नई पढ़ाई या विशेषज्ञता को अपना रहे हैं। बुलंद हौसले और मुक्त सोच वाले लोगों के लिए यहां कॅरिअर की प्रचुर संभावनाएं हैं।

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