Advertisement

राहुल गांधीः कसौटी पर नेतृत्व क्षमता

राहुल पर है कांग्रेस सह‌ित सभी की ‌‌न‌िगाहें
राहुल गांधी

ताकत: देश भर में कांग्रेस का आधार, बेदाग छवि, नए प्रयोग से परहेज नहीं

कमजोरी: मजबूत नेता के तौर पर न उभर पाना, अगंभीर राजनेता की छवि

मौका: मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दों की भरमार, युवा चेहरा

आशंका: नेतृत्व क्षमता पर सवाल, मुद्दों पर डटकर काम न करने का अतीत

 

पिछले महीने 47 साल के हो चुके राहुल गांधी अपने 13 साल के राजनैतिक कॅरिअर के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। 2013 में उनके कांग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद से पार्टी की हार का सिलसिला जारी है। हालांकि, पंजाब जैसे अपवाद भी हैं, लेकिन इसका श्रेय राज्य नेतृत्व को मिला। लोकसभा में 44 सीटों पर सिमटने और कई राज्यों में सत्ता गंवाने के साथ गठबंधन का फार्मूला भी कांग्रेस का साथ छोड़ रहा है। यूपी और पश्चिम बंगाल की हार का ठीकरा तो सहयोगी दलों ने कांग्रेस पर ही फोड़ा। यूपी जैसे बड़े राज्य में सिर्फ दो लोकसभा सांसद और केवल सात विधायक संगठन और नेतृत्व के मामले में कांग्रेस की कमजोरी उजागर करते हैं। यह कमजोरी राहुल गांधी को विरासत में नहीं मिली बल्कि वर्तमान में उपजी है।

कांग्रेस की दरकती राजनीतिक जमीन ही भाजपा नेताओं में ''कांग्रेस मुक्त भारत’’ का नारा लगाने का आत्मविश्वास भरती है। इसलिए कांग्रेस में प्राण फूंकना राहुल गांधी के लिए ही नहीं, विपक्ष का वजूद बचाए रखने के लिए भी जरूरी है। ''सूट-बूट की सरकार’’ के नारे के साथ शुरू में राहुल गांधी ने मोदी सरकार को घेरने में कामयाबी हासिल की थी। लेकिन भाजपाई प्रचार तंत्र के सामने उनके ये तेवर ज्यादा दिन नहीं टिके। बाद के दिनों में उनकी सक्रियता से ज्यादा चर्चा उनकी छुट्टियों की होने लगती है। उनके भाषणों का मजाक उड़ने लगता है। इन हमलों की कोई काट वे अब तक पेश नहीं कर पाए।

राहुल गांधी को करीब से जानने वाले लोग मानते हैं कि स्वभाव से वे खांटी राजनीतिज्ञ नहीं हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों में बेहद यकीन रखते हैं लेकिन उनके आसपास सलाहकारों का एक दायरा है जो अकसर आलोचकों के निशाने पर रहता है। लेकिन राहुल गांधी इतने भी नासमझ नहीं हैं। देश-दुनिया की समस्याओं और नीतिगत मुद्दों की गहरी समझ है। खूब पढ़ते-लिखते हैं। पार्टी संगठन को मजबूत करना चाहते हैं। हां, कम्युनिकेशन के स्तर पर समस्या है, जो उनके खिलाफ विरोधियों का हथियार बन गई है। मिसाल के तौर पर, चीन के राजदूत से मिलने के सवाल पर पार्टी की हां-ना ने विरोधियों को बैठे-बिठाए मौका दे दिया। वरना यही मुलाकात विदेश नीति में उनके दखल या प्रभाव को दर्शाने का मौका भी बन सकती थी। 

कांग्रेस की पहचान बन चुकी निर्णय प्रक्रिया में देरी और पार्टी कार्यकर्ताओं से शीर्ष नेतृत्व की दूरी भी राहुल गांधी पर भारी पड़ रही है। विपक्षी एकता की मुहिम में अहम भूमिका निभाने वाले जनता दल (यूनाइटेड) के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार को एक साथ लाना आसान था, लेकिन कांग्रेस आलाकमान को कुछ समझा पाना मुश्किल है। यही कारण है कि यूपी में बिहार जैसा प्रभावी महागठबंधन नहीं हो पाया। मायावती और राहुल गांधी को हारना मंजूर था, लेकिन सहयोगी दलों के साथ सीटें बांटने को तैयार नहीं थे। नतीजा सबके सामने है।

आक्रामक प्रचार के दौर में राहुल गांधी की कमजोर पड़ती छवि की एक बड़ी वजह खुद उनकी हिचक भी है। लंबे समय तक उन्होंने सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखी। ट्विटर पर आए भी तो अपने नाम के बजाय ऑफिस ऑफ आरजी के सहारे। किन्हीं और परिस्थितियों में प्रचार से दूरी शायद उनकी खूबी मानी जाती, लेकिन आज के दौर में यह आत्मघाती सिद्ध हो रही है। ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी ने अपनी छवि तोड़ने के प्रयास नहीं किए हैं। बीच-बीच में वे मोटरसाइकिल पर सवार होकर आंदोलनों में शामिल होते, सुरक्षा कवच तोडक़र हिंसा पीडि़तों से मिलते और दलितों के घर भोजन करते दिखाई पड़ते हैं। लेकिन 13 साल के सक्रिय राजनैतिक जीवन में ऐसा एक भी मुद्दा नहीं है, जिस पर उन्होंने डटकर काम किया हो। किसानों, दलितों और छात्रों के मुद्दों पर उनकी सक्रियता मेहमान कलाकार सरीखी है, जिसका विपक्ष क्या, कांग्रेस को भी खास फायदा नहीं पहुंचा।

ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी की अभी तक की राजनैतिक यात्रा पूरी तरह नाकामियों से ही भरी है। 2009 में कांग्रेस का दोबारा सत्ता में आना और यूपी से 21 सांसदों का चुना जाना बड़ी कामयाबी थी, जो उनके राजनैतिक कद को विस्तार दे सकती थी। लेकिन इस मौके को भी कांग्रेस ने 'राहुल कब पीएम बनेंगे’ की अटकलों में गंवा दिया। पार्टी के भीतर युवाओं को आगे बढ़ाने की उनकी कोशिशों ने कांग्रेस के कई पुराने दिग्गजों को बेचैन कर दिया था। लेकिन अब विपक्षी एकता की कोशिशों में राहुल के बजाय सोनिया गांधी की अग्रणी भूमिका इन धुरंधरों के हौसले बढ़ा रही है।  

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement