Advertisement

सूजा की अजीब दास्तान

व‌िद्रोही और व‌िवादास्पद कलाकार फ्रांस‌िस न्यूटन सूजा न‌िर्व‌िवाद रूप से जीन‌ियस थे
सूजा की च‌ित्रकारी

भारत को सन 1947 में जब स्वतंत्रता मिली, तो उसी वर्ष तत्कालीन बांबे में भारतीय आधुनिक कला के सबसे बड़े आंदोलन प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप (पीएजी या पैग) का जन्म हुआ। इस ग्रुप की उद्घाटन प्रदर्शनी में कुल छह कलाकार शामिल थे जिनमें से तीन सूजा, हुसेन और रजा भारतीय आधुनिक कला के सबसे बड़े नाम हैं। गाडे, आरा और बाकरे इस ग्रुप के तीन अन्य सदस्य थे जो अपने समय के कम बड़े कलाकार नहीं थे। गोवा में सन 1924 में जन्मे विद्रोही और विवादास्पद कलाकार फ्रांसिस न्यूटन सूजा पैग के केंद्र में थे, उन्होंने ही ग्रुप का घोषणापत्र बनाया, हुसेन को वही ग्रुप में लाए। तब मौलवीनुमा हुसेन बहुत संकोची थे। हुसेन और रजा ने अपने जीवन में आर्थिक सफलता जमकर देखी लेकिन लंदन के कला जगत के कठिन किले में पहुंच कर, वहां असाधारण सफलता पाकर भी सूजा अपने जीवन में लंबे समय तक आर्थिक अभावों से जूझते रहे। सन 2002 में मुंबई में निधन से पहले सूजा ने कुछ ही समय आर्थिक सफलता देखी। यह विडंबना ही है कि सन 2002 के बाद अगले पांच सालों में भारतीय आधुनिक कला का बाजार लगभग राक्षसी ढंग से शिखर पर पहुंच गया और सूजा के पुराने खरीदार, संरक्षक और गैलरियां करोड़ों का व्यापार करने लगीं। आज सूजा का कैनवास खरीदना आसान काम नहीं है। लेकिन सूजा की अजीब दास्तान है जो उनके परिवार वाले, अनेक पत्नियां और असंख्य प्रेमिकाएं, कला दीर्घाएं भी पूरी तरह कभी समझ नहीं पाईं। सूजा जीवन में सिर्फ दो ही आनंद जानते थे- कला रचने का आनंद और सेक्स का आनंद। उनकी कला में कभी-कभी सेक्स ने पोर्नोग्राफी की हदों को भी छूने की कोशिश की पर कुल मिलाकर उनकी कला अपने विरूपित चेहरों, कैथोलिक धर्म की चिंताओं-आशंकाओं (सूजा नास्तिक थे) और भव्य इरॉटिक, भीमकाय स्तनों वाली भरी-पूरी स्त्रियों से बार-बार एक नया जन्म लेती रही। रंगों का उनका इस्तेमाल अद्भुत था (खास तौर पर लैंडस्केप में) और उनके रेखांकन आधुनिक भारतीय कला की जादुई रेखाएं हैं।

सूजा की पहली पत्नी मारिया पुर्तगाली भाषा बोलने वाले गोवा के समृद्ध परिवार की थीं। सन 1945 में सूजा की बांबे आर्ट्स सैलून में हुई पहली प्रदर्शनी का पहला चित्र मारिया ने अपने साधारण वेतन का बड़ा हिस्सा देकर खरीदा था। सूजा को आश्चर्य हुआ कि मेरी पेंटिंग पर इतना पैसा खर्च करने वाली यह महिला आखिर कौन है? डेटिंग शुरू हुई जो सन 1947 में बाकायदा शादी में बदल गई। मारिया ने प्रदर्शनी से सन 1942 में बनी सूजा की पेंटिंग 'आवे मारिया’ खरीदी थी जो मारिया के बेडरूम में हमेशा रही और अब उनकी बेटी शैली सूजा की लिखने की मेज पर टंगी हुई है। शैली (पहले विवाह से सूजा की इकलौती बेटी) अपने जन्म की शुरुआत इसी पेंटिंग से मानती हैं। यह पेंटिंग कागज पर जलरंगों में बड़ी नाजुक किस्म की पेंटिंग है- प्रकृति की वन सुषमा के बीच चर्च की ओर जाते हुए लोग। नीले रंग का एक प्रशांत आलोक है इस पेंटिंग में।

शादी के समय फ्रांसिस न्यूटन सूजा को नहीं पता था कि उनकी पत्नी उनसे दस साल बड़ी है। यह तथ्य बरसों बाद सन 1993 में उनकी बेटी शैली ने पिता को बताया। सूजा तब भी इस बात को सच मानने के लिए तैयार नहीं हुए। बोले, 'यह सब बकवास है।’ लेकिन मां ने अपने आखिरी दिनों में बेटी को सूजा से दस साल बड़े होने और पासपोर्ट में इस तथ्य को छिपाने की बात बता दी थी।

सूजा से मेरा खुद का परिचय बहुत पुराना है। वह लंदन से न्यूयॉर्क जाकर बस गए थे। वहां उनका जीवन आर्थिक तंगी में गुजर रहा था। भारत आकर गैलरियों को कम कीमत में काम बेचकर वे अपना जीवन चला रहे थे। राजधानी, दिल्ली की धूमीमल गैलरी के मालिक स्व. रवि जैन उनके पुराने प्रशंसक थे। वे उनके शो भी करते रहते थे, उनका काम भी खरीदते रहते थे। सत्तर के दशक में साप्ताहिक 'दिनमान’ में मेरे वरिष्ठ सहकर्मी प्रसिद्ध हिंदी कवि श्रीकांत वर्मा ने एक बार मुझे जेम्स जॉयस के अपनी पत्नी नोरा को लिखे नौ अश्लील पत्र दिखाए जो सूजा ने न्यूयॉर्क से श्रीकांत वर्मा को पढ़ने के लिए भेजे थे। वे पत्र तब तक सार्वजनिक नहीं हुए थे। उन्हीं दिनों उन्हें पहली बार छापा गया था। उसी के बाद मेरी सूजा से पहली मुलाकात हुई और मैं उनसे उनके जीवन के अंत तक बराबर मिलता रहा। सूजा जीनियस थे, यह निर्विवाद है। वे बहुत बड़े कलाकार थे। मारिया ने अपनी बेटी शैली को कई बार यह कहा था, 'तुम्हारे पिता आदमी के रूप में बास्टर्ड हैं पर वे महान कलाकार हैं।’

सूजा लंबे समय तक मारिया की दर्जीगिरी और उसकी मेहनत पर आश्रित रहे। तलाक के बाद भी मारिया ने लंदन में अपनी गैलरी 'आर्ट्स 38’ में सूजा की दो एकल प्रदर्शनियां कीं। वे सूजा की आर्थिक तंगी में बराबर मदद करने की कोशिश करती रहीं। लेकिन शादी के कुछ सालों बाद ही लंदन में सूजा जब मारिया के घर में ही दूसरी औरत को ले आए और उससे सेक्स संबंध बनाए, तो ऐसे जीनियस को पत्नी के लिए भी बर्दाश्त करना आसान नहीं रहा। इतिहास में हमें अनगिनत जीनियस मिल जाएंगे जिनकी पत्नियां दूसरी औरतें ही नहीं, बहुत कुछ झेलती रहीं। सवाल यह है कि कला बड़ी है या जिंदगी? कला के नाम पर निजी जीवन का बलिदान कहां तक?

शैली अपनी मां को भी जीनियस मानती हैं। ड्रेस डिजाइनर के रूप में उनके पास कैंची थी, चित्रकार के रूप में पिता के पास जादुई कूची थी। सूजा खूब काम करते थे। एक बार मैं दोपहर में उनसे मिलने गया, तो उनके कमरे में चारों तरफ सात नई बनाई पेंटिंग बिखरी हुई थीं। सुबह से दोपहर तक उन्होंने इतना काम कर दिया था। उनकी रचनात्मक ऊर्जा बेमिसाल थी। उनका मस्तिष्क एक ओर कला से आंदोलित रहता था, दूसरी ओर वे स्त्रियों और सेक्स से आंदोलित रहते थे। एक बार 'दिनमान’ के लिए एक इंटरव्यू में मैंने उनसे पूछा, ’आप कितनी हिंदी बोल लेते हैं?’ उनका जवाब था, 'जितनी हिंदी जी.बी. रोड (दिल्ली की वेश्याओं का बदनाम अड्डा) के लिए जरूरी है।’

'वर्ड्स एंड लाइंस’ (सूजा लेखक भी बहुत अच्छे थे) में सूजा स्वीकार कर चुके हैं, 'मां जब नहाती थी, तो मैं एक छेद से छिप-छिप कर देखता था।’ 1994 के एक इंटरव्यू में सूजा ने एक जगह पर कहा है, 'मैं आज 72 साल का हूं पर मेरी आज भी सेक्स में दिलचस्पी है और मेरे खयाल में जब तक मैं जिंदा हूं वह बनी रहेगी। लेकिन मेरी दिलचस्पी सिर्फ सेक्स में नहीं है। मेरी दिलचस्पी शब्दों में है, रंगों में है, फूलों में है, प्रकृति की सुंदरता में है, आसमान, बादलों, तूफानी समुद्र में है। ये सभी चीजें मुझे उत्तेजित करती हैं, वे मेरे खून में झुनझुनी पैदा करती हैं।’ सूजा के अहं, स्त्रियों से स्थायी रिश्ते न बना पाने की उनकी सेक्स आंदोलित मानसिकता और पश्चिमी कला दुनिया में गैर पश्चिमी देशों के कलाकारों का संघर्ष-कारण थे कि सूजा जीवन के अंत तक संघर्ष करते रहे। उनकी पत्नियों-प्रेमिकाओं ने उनका भले ही साथ छोड़ दिया पर कला ने साथ नहीं छोड़ा। आज गैलरियां और आर्ट कलेक्टर सूजा के चित्र खोजते रहते हैं। पर उनकी अजीब दास्तान को कोई समझ नहीं पाता है। कला नीलामियों में सूजा का ग्राफ ऊपर चढ़ता जा रहा है। हुसेन की तरह वह करोड़ों की बुगात्ती कार (सूजा ने लिखा है वह कारों और स्त्रियों के सपने देखते थे, कार के सपने बंद हो चुके हैं) नहीं खरीद पाए या रजा की तरह अपनी फाउंडेशन के कैश रजिस्टर को दिन-रात बढ़ते नहीं देख सके। उनकी कला समग्रता अद्भुत बेचैनी में हमारे अधिक नजदीक है।

(लेखक कला समीक्षक हैं)

Advertisement
Advertisement
Advertisement