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कौन बनेगा राष्ट्रपति

एनडीए के खेमे में कुछ वोटों की कमी और राजनैतिक गणित के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी से चौंकाऊ फैसले की उम्मीद
राष्ट्रपत‌ि भवन

कौन बनेगा, देश का अगला यानी 14वां राष्ट्रपति! मौजूदा राष्ट्रपति, 81 वर्षीय प्रणब मुखर्जी को दूसरा कार्यकाल मिलेगा या फिर अगले जुलाई महीने में उनके उत्तराधिकारी का चुनाव होगा। इस छोटे लेकिन जटिल सवाल का सटीक जवाब फिलहाल किसी के पास अभी नहीं दिख रहा है। अटकलों के बाजार में रोज कुछ नाम तेजी से उभरते हैं और फिर कई कारणों से दब भी जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पिछली गुजरात (सोमनाथ) यात्रा के दौरान उनका एक कथित बयान मीडिया की सुर्खियां बना जिसमें उन्होंने अपने सिपहसालार कहे जानेवाले भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की मौजूदगी में कहा था कि आडवाणी जी को राष्ट्रपति बनवाना उनके लिए गुरु दक्षिणा देने जैसा होगा। लेकिन उनके इस कथित बयान के 20 दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में आडवाणी के साथ ही भाजपा के मार्गदर्शक बना दिए गए पार्टी के एक और पूर्व अध्यक्ष मुरली मनेाहर जोशी तथा केंद्रीय मंत्री उमा भारती के खिलाफ साजिश का मुकदमा चलाए जाने से संबंधित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि मामले की सुनवाई त्वरित गति से होनी चाहिए। देश की सर्वोच्च अदालत के इस रुख के बाद आडवाणी जी को राष्ट्रपति बनाने की मुहिम कुछ मद्धिम सी पड़ गई लगती है। हालांकि कई बार राजनीतिक फैसले अदालती रुख पर भारी भी पड़ सकते हैं।

आडवाणी हों या कोई और, खासतौर से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभाओं के चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड जीत और मणिपुर और गोवा में येन-केन प्रकारेण भाजपा की सरकारें बन जाने के कारण अगले राष्ट्रपति के चुनाव में भाजपा और इसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का पलड़ा पहले से कुछ भारी हो गया है। यह भी तय-सा हो गया है कि अगला राष्ट्रपति भाजपा का और वह भी प्रधानमंत्री मोदी और उनके सिपहसालार अमित शाह की पसंद का ही होगा। इस लिहाज से भी कभी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू, बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद जैसे बहुतेरे नाम हवा में उछल रहे हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो सभी लोग मोदी जी का मूड भांपने में लगे हैं और मोदी जी हैं कि इस बारे में अपने पत्ते नहीं खोल रहे। यहां तक कि करीबी होने का दावा करने वाले नेताओं को भी इस संबंध में कोई भनक नहीं लगने दे रहे।

मोदी की कार्यशैली पर गहरी नजर रखने वाले राजनीति विज्ञानियों का मानना है कि मोदी इस मामले में भी कोई 'सरप्राइज’ दे सकते हैं। वह रायसीना हिल पर स्थित राष्ट्रपति भवन के लिए ऐसा नाम तय कर सकते हैं जिसके व्यक्तित्व से एक खास तरह का सामाजिक संदेश जाए और जो उनकी भावी राजनीति के हिसाब से भी फिट बैठता हो। ऐसे में झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का नाम प्रमुखता से सामने आता है। वह आदिवासी महिला हैं और ओडिशा की रहनेवाली हैं। प्रतिभा पाटिल के रूप में देश को महिला राष्ट्रपति तो मिल चुका है लेकिन द्रौपदी अगला राष्ट्रपति बनती हैं तो उन्हें पहली आदिवासी 'महिला’ राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल हो सकेगा। उन्हें राष्ट्रपति बनवाने का राजनीतिक लाभ मोदी ओडिशा विधानसभा के चुनाव में भी ले सकेंगे।

उम्मीदवार चाहे कोई भी हो नरेन्द्र मोदी और भाजपा किसी भी कीमत पर अपना राष्ट्रपति बनवाना चाहते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इसके लिए अगर किसी स्वतंत्र और गैर विवादित नाम पर विपक्ष के साथ आम राय बनाने की जरूरत पड़ती है तो वह इसके लिए भी तैयार हो सकते हैं। इसकी कवायद उन्होंने अभी से शुरू भी कर दी है। पिछले दिनों इस कवायद के तहत ही उन्होंने राजग के तमाम छोटे-बड़े 33 घटक एवं समर्थक दलों की बैठक बुलाई थी। इसमें उन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव के मद्देनजर संसद और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचक मंडल में राजग की स्थिति का आकलन किया था कि कौन-कौन साथ आ सकता है और कौन विरोध में जा सकता है। राजग के सबसे पुराने सहयोगी, केंद्र और महाराष्ट्र सरकार में भी साझीदार शिवसेना के राजनीतिक रुख को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और उनके रणनीतिकार अक्सर सशंकित रहते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा और फिर मुंबई नगर महापालिका के साथ ही राज्य के अन्य स्थानीय निकायों के चुनाव में शिवसेना ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। शिवसेना का राष्ट्रपति के दो चुनावों में भी भाजपा से अलग रुख रहा है। एक बार महाराष्ट्र गौरव के नाम पर शिवसेना कांग्रेस की प्रतिभा पाटिल का समर्थन कर चुकी है तो पिछले चुनाव में उसने कांग्रेस के ही प्रणब मुखर्जी को खुलेआम समर्थन दिया था। इस बार भी शिवसेना ने अगले राष्ट्रपति के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत का नाम उछालकर भाजपा और मोदी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है। ऐसे में जबकि भाजपा राष्ट्रपति के चुनाव के लिए एक-एक वोट के जुगाड़ में लगी है, शिवसेना की राजनीतिक पैंतरेबाजियां उसे परेशान कर रही हैं। भाजपा ने राष्ट्रपति के चुनाव के मद्देनजर ही अपने दो नव निर्वाचित मुख्यमंत्रियों योगी आदित्यनाथ और मनोहर पर्रीकर तथा उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को सांसद भी बने रहने को कहा है क्योंकि राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में एक सांसद के वोट की कीमत 708 की होती है और चुनावी गणित को देखते हुए मोदी और भाजपा किसी तरह का जोखिम लेने की स्थिति में नहीं हैं।

दरअसल, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी भाजपा की प्रचंड विजय के बावजूद राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में भाजपा और इसके सहयोगी-समर्थक दलों का समर्थन आधार 49 फीसदी से कुछ कम ही बन पा रहा है। यानी भाजपा को अपनी खांटी पसंद का राष्ट्रपति बनवाने के लिए तकरीबन 25 हजार अतिरिक्त मतों का जुगाड़ करना पड़ सकता है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति के चुनाव में संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के साथ ही राज्य विधानसभाओं (विधान परिषद नहीं) के निर्वाचित सदस्य ही मतदान कर सकते हैं। चुनावी गणित के मद्देनजर मोदी और भाजपा की नजर शिवसेना को अपने पाले में रखने के साथ ही बीजू जनता दल और अन्ना द्रमुक के दोनों धड़ों पर टिकी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी से भाजपा ओडिशा और झारखंड से भी कुछ अतिरिक्त वोट बटोर सकती है। लेकिन इससे भी बात नहीं बनते देख मोदी आम राय बनाने के नाम पर किसी स्वतंत्र और तटस्थ नाम को भी आगे बढ़ा सकते हैं।

दूसरी तरफ, गैर-भाजपाई विपक्ष राष्ट्रपति के चुनावी गणित में भाजपा की कमजोरी को अवसर के रूप में इस्तेमाल करने की जुगत में लगा है। विपक्ष के रणनीतिकार एक तरफ तो प्रधानमंत्री मोदी और भाजपानीत राजग के साथ भावी राष्ट्रपति के नाम पर आम राय कायम करने की प्रक्रिया में अपनी राय को अहमियत दिलाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, दूसरी तरफ सत्तारूढ़ पक्ष के साथ बात नहीं बन पाने की स्थिति में उनकी रणनीति एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारने की लगती है जो न सिर्फ तमाम गैर-भाजपा दलों को इस चुनाव में एकजुट रखने में कामयाब हो सके बल्कि चुनाव की स्थिति में भाजपा और राजग के मतदाताओं में भी सेंध लगा सके। विपक्ष के खेमे में ऐसे दो नाम हवा में हैं। एक, एनसीपी के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके पूर्व रक्षा मंत्री शरद पवार का है और दूसरा जनता दल यू के पूर्व अध्यक्ष और कभी राजग के संयोजक रहे शरद यादव का। यह दोनों न सिर्फ विपक्ष के अंतर्विरोधों पर काबू पा सकते हैं बल्कि सत्ता पक्ष के मतदाता वर्ग में सेंध भी लगा सकते हैं। पिछले दिनों मोदी सरकार द्वारा पद्म विभूषण से अलंकृत शरद पवार की उम्मीदवारी के बाद राजग में शिवसेना के सामने एक बार फिर मराठा गौरव के नाम पर उनका समर्थन करने का दबाव और तर्क बढ़ सकता है, वहीं अपने जोड़तोड़ के राजनीतिक कौशल का इस्तेमाल कर वह राजग के मतदाता वर्ग में से कुछ को अपनी ओर खींच सकते हैं। शरद यादव के बारे में कहा जा रहा है कि मंडल राजनीति का पुरोधा होने की उनकी राजनीतिक छवि राजग के सांसदों और विधायकों को आकर्षित करने में कारगर साबित हो सकती है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी और उनके रणनीतिकारों की रणनीति थोड़ी अलग तरह की हो सकती है। फिलहाल तो दोनों पक्ष इस संबंध में एक-दूसरे की राजनीतिक चाल और पहल का इंतजार करते ही नजर आ रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से साथ भाजपा अध्यक्ष अम‌ित शाह

उपराष्ट्रपति तो भाजपा का ही

सात अगस्त को देश के उपराष्ट्रपति का चुनाव भी होने जा रहा है। लोकसभा में भाजपानीत राजग के प्रचंड बहुमत को देखते हुए साफ है कि उपराष्ट्रपति भाजपा का ही होगा। उपराष्ट्रपति के चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्य मतदान करते हैं। भाजपा सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति के चुनाव में भले ही विपक्ष के साथ किसी तरह की आम राय पर सहमत हो सकें, उपराष्ट्रपति के नाम पर वह किसी भी तरह की आम राय या दबाव में नहीं आने वाले हैं। अगले उपराष्ट्रपति के रूप में भाजपा खेमे से एक बार फिर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, सूचना प्रसारण एवं शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन तथा समाजवादी पृष्ठभूमि के वरिष्ठ सांसद हुकुमदेव नारायण यादव के नाम लिए जा रहे हैं।

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