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जाटलैंड बना नया हब

2019 की सिविल सेवा परीक्षा में राज्य के 22 उम्मीदवार सफल, इनमें 14 ग्रामीण पृष्ठभूमि के
2017 में सोनीपत की गृहिणी अनु दहिया ने दूसरा स्थान हासिल किया था

एक समय था, जब ग्रामीण हरियाणा के युवाओं में फौज और पुलिस में जाने की ललक रहती थी, लेकिन अब उनकी आंखों में आइएएस बनने का सपना है। तभी देश की सैन्य सेवाओं में 13 फीसदी अफसर देने वाले हरियाणा से 2019 की सिविल सेवा परीक्षा में 22 अभ्यर्थी सफल हुए और इनमें से 14 ग्रामीण पृष्ठभूमि के हैं। सोनीपत के छोटे से गांव तेवड़ी के प्रदीप सिंह मलिक ने संघ लोक सेवा आयोग (यपूीएससी) की 2019 की सिविल सेवा परीक्षा में पहला रैंक हासिल किया है। चौथा रैंक हासिल करने वाले हिमांशु जैन भी ग्रामीण परिवेश से हैं। प्रदीप इसका श्रेय डिजिटल क्रांति को देते हैं। आउटलुक से बातचीत में उन्होंने कहा, “ग्रामीण इलाकों में प्रतिभा की कमी नहीं। दिशा और संसाधन न मिलने के कारण पहले वे अपनी प्रतिभा नहीं दिखा पाते थे, पर अब डिजिटल क्रांति ने उन्हें भी देश-दुनिया से जोड़ दिया है। ग्रामीण इलाकों के विद्यार्थियों को भी वही पाठ्य सामग्री उपलब्ध हो रही है, जो महानगरों के विद्यार्थियों को मिलती है।” प्रदीप की इस उपलब्धि पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि इससे प्रदेश के हजारों युवा प्रेरित होंगे। उन्होंने कहा, “उम्मीद करता हूं कि जिस तरह से प्रदीप सिंह ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है, उसी तरह वे देश सेवा और जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निष्ठापूर्वक कार्य करेंगे।”

नवंबर 1966 में अस्तित्व में आए हरियाणा के 53 वर्षों के इतिहास में प्रदीप मलिक पहले पुरुष अभ्यर्थी हैं, जिन्होंने पूरे देश में पहला स्थान हासिल किया है। इससे पहले 2005 की परीक्षा में मोना परुथी ने और 2011 में शेना अग्रवाल ने पहला स्थान हासिल किया था। दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमफिल करने वाली फरीदाबाद की मोना परुथी के पिता सेशन जज थे। एम्स दिल्ली से एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाली यमुनानगर की शेना अग्रवाल के पिता डॉक्टर हैं।

पहला रैंक हासिल करने से पहले दोनों भारतीय राजस्व सेवा (आइआरएस) में थीं। 2019 की परीक्षा में प्रथम आने वाले प्रदीप मलिक भी आइआरएस से आइएएस तक पहुंचे हैं। चौथे रैंक के हिमांशु जैन होडल (पलवल) के हैं। 2017 में पहले पांच में से तीन रैंक पर हरियाणा के अभ्यर्थी रहे थे। इनमें सोनीपत की 31 वर्षीय गृहिणी (चार वर्ष के बेटे की मां) अनु दहिया ने दूसरा, सिरसा के छोटे से दुकानदार के बेटे सचिन ने तीसरा और महेंद्रगढ़ के प्रथम कौशिक ने पांचवां स्थान हासिल किया था। यूपीएससी के मानकों के अनुसार सामान्य वर्ग में पहले 100 रैंक में आने वाले अभ्यर्थियों का आइएएस चयनित होना तय है। इस बार पहले 100 में हरियाणा के सात अभ्यर्थी हैं और इनमें से पांच ग्रामीण परिवेश से हैं।

यूपीएससी के आंकड़ों के मुताबिक 2011 से 2015 के दौरान हरियाणा के 51 अभ्यर्थी पहले 100 में आए थे। दिल्ली के ऐसे अभ्यर्थियों की संख्या 49 थी। उत्तर प्रदेश 118 अभ्यर्थियों के साथ पहले, 97 की संख्या के साथ राजस्थान दूसरे और 90 अभ्यर्थियों वाला तमिलनाडु तीसरे स्थान पर रहा। बिहार से 68, आंध्र प्रदेश से 61, महाराष्ट्र से 58 और केरल से 54 अभ्यर्थी आइएएस बने।

हरियाणा के मामले में राज्य के पूर्व मुख्य सचिव धर्मवीर एक खास पहलू की ओर इशारा करते हैं। वे कहते हैं, “हरियाणा में खेती के लिए जमीन कम होने से ग्रामीण इलाकों की प्रति व्यक्ति आय तेजी से कम हो रही है। ऐसे में खेलों में बेहतर प्रदर्शन के साथ नौकरी के लिए फौज और पुलिस में जाने वाले यहां के ग्रामीण अंचल के युवाओं का सिविल सेवा परीक्षा में भी उल्लेखनीय प्रदर्शन सकारात्मक बदलाव है। पांच-सात वर्ष पहले तक यूपीएससी की मेरिट में दो ऐच्छिक विषयों का महत्वपूर्ण योगदान होता था। इसलिए दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, आइआइटी दिल्ली, कानपुर, मुंबई और रुड़की से निकलने वाले विद्यार्थी शीर्ष 10 में जगह बनाते थे। अब एच्छिक विषय एक है और सामान्य ज्ञान, करंट अफेयर्स और निबंध पर जोर है। इसके चलते वे आम अभ्यर्थी भी अब मेरिट पा रहे हैं जो शीर्ष संस्थानों से नहीं पढ़े हैं।”

यूपीएससी की पहचान अभी भी पारदर्शी और निष्पक्ष संस्था के रूप में कायम है। तभी किसान, दुकानदार, रिक्शा चालक और मजदूरों के बच्चे भी कड़ी मेहनत के बल पर आइएएस, आइपीएस और आइआरएस बनने का सपना पूरा कर रहे हैं। धर्मवीर कहते हैं, “यूपीएससी में पारदर्शिता और निष्पक्षता नहीं होती तो मैं कभी आइएएस नहीं बन पाता। मैं खुद जींद जिले के गांव डूमरखां के आम परिवार से निकल कर हरियाणा के चीफ सेक्रेटरी के पद तक पहुंचा।” यह सिलसिला आगे बढ़े तो यकीनन बहुत कुछ बदल सकता है।

सफल उम्मीदवार

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