Advertisement

दुर्ग मजबूत पर लक्ष्य साफ नहीं

मंत्रिमंडल में हर वर्ग को साधने की कवायद, मगर वादों पर अमल और लोकसभा चुनाव अभी भी चुनौती
शपथग्रहण समारोहः राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने विधायकों को दिलाई मंत्री पद की शपथ

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने कैबिनेट में दुर्ग संभाग के पांच मंत्रियों को शामिल कर अपना दुर्ग (किला) मजबूत कर लिया है। बघेल ने अपनी पसंद से मंत्रिमंडल बनाने के साथ सभी वर्गों और क्षेत्रों को साधा है। उन्होंने  चरणदास महंत और टी.एस. सिंहदेव के एक-एक प्रतिनिधि को मंत्री बनाया है। हालांकि, कई दिग्गजों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई। भूपेश बघेल के सामने अब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अधिक-से-अधिक सीटें दिलाने के साथ घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा करने की चुनौती है। इस वक्त राज्य की वित्तीय स्थिति भी बहुत नाजुक है। इस पर कांग्रेस को शराबबंदी का वादा भी मुश्किल में डाल सकता है। सरकार को शराब से सालाना करीब 4,500 करोड़ रुपये की आमदनी होती है।

कांग्रेस ने 90 में 68 सीटें जीतकर भाजपा का सफाया कर दिया। हालांकि, मुख्यमंत्री और मंत्रियों के चयन में उसके पसीने छूट गए। कांग्रेस आलाकमान ने 47 फीसदी आबादी वाले ओबीसी बहुल राज्य में ओबीसी नेता भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बना दिया। उन्होंने कमान संभालने के साथ ही आक्रामक पारी खेलना शुरू कर दिया है। पहले चार करीबियों को अपना सलाहकार नियुक्त कर दिया। उसके बाद ए.एन. उपाध्याय को हटाकर डीएम अवस्थी को प्रदेश का पुलिस प्रमुख बना दिया। यही तेवर मंत्रिमंडल के गठन में भी दिखा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा को मंत्री न बनाकर साफ कर दिया कि आलाकमान उनकी कितनी सुन रहा है। हालांकि, अरुण वोरा को विधानसभा उपाध्यक्ष का पद दिया जा सकता है।

यही नहीं, अविभाजित मध्य प्रदेश में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री कहलाने वाले सत्यनारायण शर्मा को भी मंत्री नहीं बनाया गया। छत्तीसगढ़ की राजनीति के धूमकेतु कहे जाने वाले शुक्ल परिवार के अमितेश शुक्ल को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। साहू समाज के बड़े साहू भी मंत्री नहीं बन पाए। ब्राह्मण प्रतिनिधि के रूप में दुर्ग जिले के रवींद्र चौबे को मंत्री बनाकर अपनी अहमियत बता दी। दुर्ग संभाग से ताम्रध्वज साहू, गुरु रुद्रकुमार, मोहम्मद अकबर और अनिला भेड़िया को मंत्री बनाया है। बस्तर, सरगुजा, बिलासपुर और रायपुर के मुकाबले छोटे दुर्ग संभाग से मुख्यमंत्री समेत मंत्रिमंडल में छह सदस्य हैं। इससे  भूपेश बघेल का कैबिनेट में दबदबा बना रहेगा। दुर्ग संभाग से एससी-एसटी, ओबीसी, महिला और सामान्य सभी का प्रतिनिधित्व है।

मंत्रिमंडल में टी.एस. सिंहदेव के कोटे से प्रेमसाय सिंह को मंत्री बनाया है। सरगुजा से दो मंत्री हैं। बस्तर से केवल कवासी लखमा ही मंत्री बनाए गए हैं। एक मंत्री का पद खाली है। उसे लोकसभा चुनाव के बाद किसी आदिवासी से भरा जाएगा। यह करना ही पड़ेगा, क्योंकि 27 आदिवासी विधायक कांग्रेस से जीतकर आए हैं। आदिवासी नेता और वरिष्ठ विधायक अमरजीत भगत को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर लोकसभा में आदिवासी वोट साधने की बात भी चल रही है। अल्पसंख्यक वर्ग से मोहम्मद अकबर को मंत्री बनाकर लोकसभा के मुस्लिम वोट पर निशाना साधने की कोशिश की गई है। चरणदास महंत को विधानसभा अध्यक्ष बनाने की बात चल रही है।

 भूपेश बघेल ने चुनावी वादे के तहत किसानों की कर्जमाफी, धान का खरीद मूल्य 2,500 रुपये करने और झीरम कांड की एसआइटी से जांच की घोषणा की है। बस्तर में किसानों की अधिगृहीत जमीन टाटा से वापस दिलाने, पत्रकारों, वकीलों और डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की घोषणा कर नई छवि पेश की है। लेकिन कांग्रेस के दिग्गजों को साथ लेकर लोकसभा की अधिक सीटें कैसे जीत पाएंगे, यह बड़ा सवाल है।

कैबिनेट के गठन में क्षेत्र और जाति समीकरण से ज्यादा मुख्यमंत्री की पसंद दिख रही है। 2019 का लक्ष्य भी साफ नहीं है। राज्य में लोकसभा की एक ही एससी सीट है, लेकिन इस वर्ग से दो मंत्री हैं जबकि एसटी सीट चार हैं और तीन मंत्री बनाए गए हैं। जाति संतुलन जरूर दिखाई दे रहा है। ब्राह्मण, बनिया और ठाकुर को भी प्रतिनिधित्व मिला है। मंत्रिमंडल तो बन गया अब जनता से किए वादे पर खरा उतरना है। यह संदेश भी देना होगा कि अफसरशाही हावी नहीं होगी।

Advertisement
Advertisement
Advertisement