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अब घर आया अस्पताल

शहरी भारत में बीमार बुजुर्गों की तीमारदारी के लिए कम खर्च में घर पर ही देखभाल का बढ़ रहा चलन
मददगार ः एस.पी. कामरा (75) उन लोगों में से हैं जिन्होंने घर पर स्वास्थ्य देखभाल का विकल्प चुना

पचहत्तर साल के एस.पी. कामरा स्ट्रोक के इलाज के बाद जब अस्पताल से घर लौटे तो उनके परिवार वाले चिंतित थे। वह बिस्तर से उठ भी नहीं सकते थे और दिल्ली  के अपने घर में लगातार विशेषज्ञों की देखरेख में उनकी तीमारदारी की जरूरत थी। उनके बेटे प्रवीण ने जब विकल्प खोजने शुरू किए तो किसी ने उन्हें घर पर स्वास्‍थ्य सेवाएं मुहैया करने वालों के बारे में बताया। एक निजी कंपनी हेल्‍थ केयर एट होम के प्रशिक्षित परिचारकों ने कामरा की घर पर देखभाल की और वेंटिलेटर मानक देखने से लेकर उनके फ्ल्यूड चार्ट पर नजर रखने तक, हर घंटे के बाद उन्हें करवट दिलाने से लेकर हल्का व्यायाम कराने तक वह सब किया जो बीमार व्यक्ति की जरूरत होती है। यहां तक कि उन्हें दोबारा स्वस्थ करने के लिए मनोवैज्ञानिक संबल भी दिया। प्रवीण ने आउटलुक से कहा, “इस तीमारदारी और इलाज से मेरे पिता की सेहत में सुधार हुआ और वे वेंटिलेटर से बाहर निकल आए। अब उनके अंग सामान्य ढंग से काम कर रहे हैं। उनकी न्यूरोलॉजिकल स्थिति में भी सुधार हुआ, फिजियोथेरेपी से उनके अंगों में भी जान लौट आई। परिचारकों के भावनात्मक सहयोग और बातचीत से उन्हें जल्दी ठीक होने में मदद मिली।”    

इसी तरह सैकड़ों मील पश्चिम मुंबई में के. जयकांतम का परिवार भी ऐसी ही दुविधा में था। परिवार की 82 साल की बुजुर्ग डिमेंशिया के साथ-साथ गंभीर निमोनिया से पीड़ित थीं। उनके बेटे के. संपत ने घर पर स्वास्‍थ्य सेवाएं देने वाली एक निजी कंपनी जॉक्टर की सेवाएं लीं। संपत ने बताया, “शुरुआत में हम मां की देखभाल कर रहे थे। लेकिन बाद में हमें लगा कि हमें प्रशिक्षित लोगों की जरूरत है। डॉक्टर ने हमें दो प्रशिक्षित नर्सें उपलब्ध कराईं और एक पुरुष परिचारक भी। हम उनकी सेवाओं से बहुत खुश हैं। वे सारी मेडिकल प्रक्रियाएं जानते हैं और नियमित रूप से उनके स्वास्थ्य पर नजर रखते हैं। सबसे खास बात यह है कि वे बेहद मददगार हैं।”

भारत में मरीजों और अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या के बीच बड़ा अंतर है। ऐसे में शहरी इलाकों में अस्पताल से आने के बाद घर पर देखभाल के लिए प्रशिक्षित विशेषज्ञों की सेवाएं मिलने लगी हैं, जो कभी आस-पड़ोस की आया या गैर प्रशिक्षित घरेलू सहायिकाओं के भरोसे थी। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2017 के आंकड़ों के मुताबिक सरकारी अस्पतालों में औसतन 2,046 लोगों पर एक बिस्तर है। एक और शोध बताता है कि दुनिया भर में बीमारियां 20 फीसदी अकेले भारत में हैं। इसके लिए केवल आठ फीसदी डॉक्टर और अस्पताल में छह फीसदी बिस्तर हैं। निजी अस्पताल मरीज के सामान्य होते ही उससे छुट्टी चाहते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा बिस्तर खाली होते रहें और सर्जरी के ज्यादा मौके मिलते रहें। इससे ज्यादा कमाई की गुंजाइश बनी रहती है। यानी वे सामान्य इलाज के बदले सर्जरी की संख्या बढ़ाते हैं। अस्पताल उन मरीजों को छुट्टी देने को तरजीह देते हैं, जिनकी हालत स्थिर हो और उन सुविधाओं और चिकित्सा प्रक्रिया का उपयोग गंभीर मरीजों के लिए करते हैं।     

जानकारों के मुताबिक घर पर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसके कई कारण हैं, जिनमें अस्पतालों में महंगा इलाज, बुजुर्गों की जनसंख्या का बढ़ना, तीमारदारी की बढ़ती जरूरत, संयुक्त परिवारों का विघटन, अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव और गैर-संक्रामक बीमारियों में बढ़ोतरी, जिनमें अस्पताल में भर्ती होने से ज्यादा अच्छी तीमारदारी की जरूरत होती है। पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के अनुमान के मुताबिक भारत में घर पर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने वाला उद्योग 2018 में 7,800 करोड़ रुपये से बढ़ कर 2025 तक 91,000 करोड़ रुपये तक हो जाएगा।

इस उद्योग के बढ़ने में वरिष्ठ नागरिकों की बढ़ती संख्या (करीब 15 करोड़) भी बड़ी वजह है। देश में काम के सिलसिले में लोगों की दुनिया भर में आवाजाही बढ़ती जा रही है। ऐसे में अमूमन बुजुर्ग मां-बाप या पुरानी बीमारी से पीड़ित परिजन अकेले ही रह जाते हैं। इस अकेलेपन के कारण अंदाजन 29.7 फीसदी बुजुर्ग अवसाद के शिकार हो जाते हैं। ‘आइवीएच सीनियर केयर’ के मैनेजिंग पार्टनर स्वदीप श्रीवास्तव कहते हैं, “बुजुर्ग आबादी में अकेलापन और अवसाद पर ही हमारा फोकस है। अवसाद के मरीजों के साथ ऐसा कोई चाहिए, जिसके साथ वे कुछ खुशनुमा वक्त बिता सकें। वे अकेले रहेंगे तो उनकी दिमागी हालत तेजी से बिगड़ेगी। केयर मैनेजर उन लोगों से बात करते हैं और उन्हें व्यस्त रखते हैं। ये दोस्त की तरह पेश आते हैं, बुजुर्गों को सैर पर ले जाते हैं और किसी तरह की चिकित्सा की जरूरत होती है तो डॉक्टरों से फौरन संपर्क करते हैं।” ‘इंडिया होम हेल्थ केयर’ (आइएचएचसी) के संस्थापक और प्रबंध निदेशक त्यागराजन वेलयुथम कहते हैं, “होम हेल्थ केयर सर्विस सुविधा के साथ कई फायदे देती है खासकर मेट्रो शहरों में जहां अस्पताल जाना-आना मुश्किल भरा, समय खपाऊ और महंगा हो सकता है।”

बढ़ती दुरूह बीमारियां भी लोगों को घरेलू स्वास्थ्य सेवा का लाभ लेने के लिए मजबूर कर रही हैं ताकि उन्हें अक्सर अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत न पड़े। नर्स, डॉक्टर और परिचारक मरीज की जरूरत को उनके घर पर ही पूरी कर दें, यहां तक कि तकरीबन आइसीयू जैसी जटिल सुविधाएं भी, तो वाकई यह मुनासिब है। घर पर स्वास्थ्य देखभाल अस्पताल में भर्ती होने के मुकाबले सस्ता भी पड़ता है। अंदाजन अस्पताल में भर्ती होने के मुकाबले इसकी लागत 15 से 30 फीसदी कम बैठती है (देखें चार्ट)। मुंबई स्थित ‘जॉक्टर हेल्थ नेटवर्क’ की संस्थापक और सीईओ निधि सक्सेना कहती हैं, “अस्पताल में भर्ती होने के कुल खर्च पर हमारी कंपनी समान सुविधाओं के मद में 30 से 60 फीसदी बचत देती है। हमारे पास कैंसर की देखभाल जैसी विशेष सुविधाएं भी हैं। इन वजहों से लोग हमारी सेवाएं लेते हैं।” स्वदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि उनकी कंपनी सेना के रिटायर लोगों को रखती है क्योंकि वे मुश्किल हालात को भी फुर्ती से संभाल लेते हैं। वे कहते हैं, “कुछ लोग अनजान लोगों के घर में आने पर सहज नहीं रहते। लेकिन अगर वह पूर्व सैनिक है तो लोगों को थोड़ा भरोसा रहता है।”

दिल्ली के जेरिएट्रिक (बुजुर्गों) विशेषज्ञ पी.सी. राय कहते हैं, “बिस्तर पर ही रहने वाले मरीजों के लिए यह बहुत ही अच्छा विकल्प है। दिक्कत तब शुरू होती है जब नर्सें प्रशिक्षित नहीं होतीं।” अपना नाम न देने की शर्त पर एक और डॉक्टर भी कहते हैं, “प्रशिक्षित और समर्पित कर्मचारियों की कमी घरेलू स्वास्थ्य देखभाल की बड़ी समस्या है। आपात स्थिति में ये लोग बहुत विश्वसनीय नहीं हैं, खासकर बुजुर्ग मरीजों के मामले में। यह भी संभव नहीं है कि सिर्फ एक मरीज के लिए जरूरी मशीनों को वहां लगाया जा सके।”

इस मामले में एक और मुद्दा है। घरेलू स्वास्थ्य देखभाल को अभी नियामक प्राधिकरण के तहत लाया जाना बाकी है। कुछ गलत हो जाए तो मुआवजे की बात नहीं की जा सकती। नेशनल हेल्थ पॉलिसी 2017 के तहत नियामक के अंतर्गत सिर्फ अस्पताल, क्लिनिक, नर्सिंग होम और लेबोरेटरी ही आती हैं। इसके अलावा भारत में घरेलू स्वास्थ्य सेवा को बहुत-सी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में शामिल नहीं किया गया है। हाल ही में लॉन्च की गई आयुष्यमान भारत मिशन पॉलिसी में भी नहीं, जिसमें केंद्र ने पहले चरण में 10 करोड़ लोगों शामिल किया है। 

दिल्ली की हेल्थ केयर फेडरेशन ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल अंजन बोस कहते हैं, “अब सरकार का मुख्य ध्यान स्वास्थ्य बीमा पर है। इसलिए बीमा कंपनियों के लिए यह तेजी से बढ़ने और घर पर देखभाल को कवरेज में शामिल करने तथा इसका दायरा बढ़ाने का उपयुक्त समय है। बीमा एजेंसियां इसे अपनी ओर से दी जानी वाली विभिन्न योजनाओं से अलग करने के लिए अलग या ऐड-ऑन सेवा के रूप में प्रदान कर सकती हैं।” बहरहाल, कई कमियों के बावजूद, देश में घर पर स्वास्थ्य देखभाल की लोकप्रियता बढ़ रही है। जब मुंबई में रहने वाले अमर काजी (75 वर्ष) की गिरने के कारण रीढ़ की हड्डी में चोट आई तो वे घर पर देखभाल करने वाले लोग ही थे, जिनकी वजह से वह दोबारा स्वस्थ हो पाए।

वह कहते हैं, “मैं पूरी तरह बिस्तर पर था और थोड़ा-सा भी चलने के लिए मुझे सहारे की जरूरत पड़ती थी। मेरी बेटी का अपना परिवार और जिम्मेदारियां हैं। वह हर वक्त न आ सकती थी न मेरे साथ रह सकती थी। ये प्रशिक्षित हैं। वे मेरी सभी जरूरतों का खयाल रखते हैं। मुझे टहलाने ले जाते हैं, नहलाते हैं, दवा देते हैं और नियमित रूप से मसाज करते हैं। ये लोग मेरी परछाईं की तरह हैं।” काजी जैसे कई लोगों के लिए यकीनन घर से बढ़ कर कुछ नहीं है और घर पर देखभाल हो जाए तो उससे बेहतर भला क्या हो सकता है। अस्पताल और इलाज पर बढ़ते खर्च के इस दौर में यह मुफीद है पर सुरक्षा भी होनी चाहिए।

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