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मेवाड़ जीतो, बनो सिकंदर

आदिवासी बहुल सीटों के नतीजे ही तय करते रहे हैं प्रदेश की सरकार, इसलिए भाजपा-कांग्रेस के दांव भारी
दमखम ः मेवाड़ में जीत के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पूरा जोर लगा रखा है

राजस्थान का मेवाड़ अरावली की पहाड़ियों, नदी-नाले और जंगलों से घिरा है। आदिवासी बहुल इस इलाके में विधानसभा की 28 सीटें हैं। इतिहास गवाह है कि चुनाव में जो पार्टी इस इलाके में दबदबा बनाती है, राज्य की सत्ता पर वही काबिज होती है। ऐसे में अचरज की बात नहीं कि इस बार भी विधानसभा चुनाव में मेवाड़ महत्वपूर्ण रणक्षेत्र बना हुआ है। यहां फतह हासिल करने के लिए सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस दोनों ने पूरा जोर लगा रखा है। पहले आंकड़ों पर गौर करें। 1998 के विधानसभा चुनाव में मेवाड़ क्षेत्र की कुल 30 सीटों में से कांग्रेस को 23 जबकि भाजपा को केवल चार सीटें मिलीं और सरकार कांग्रेस ने बनाई। 2003 के विधानसभा चुनाव में 21 पर भाजपा और सात पर कांग्रेस को जीत मिली और सरकार भाजपा ने बनाई। 2008 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो परिसीमन के कारण इस इलाके की कुल सीटें 30 से घटकर 28 हो गईं। उस समय कांग्रेस को 20 और भाजपा को छह सीटें मिली थीं और सरकार कांग्रेस की बनी। बीते चुनाव में भाजपा ने बाजी पलटते हुए 25 सीटों पर कब्जा जमाया जबकि कांग्रेस केवल दो सीटें जीत पाई और वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। यही कारण है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अगस्त माह के शुरू में अपनी गौरव यात्रा की शुरुआत के लिए मेवाड़ के राजसमंद जिले के चारभुजा को चुना। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने 24 अगस्त को ‘संकल्प रैली’ का आगाज चित्तौड़गढ़ के सांवलिया सेठ से की।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी इस इलाके में कई सभाएं कर चुके हैं। राजसमंद के भाजपा नेता भंवर लाल शर्मा ने आउटलुक को बताया, “चारभुजा से यात्रा शुरू करना हमेशा शुभ साबित हुआ है। 2008 में यहां से यात्रा शुरू नहीं की जा सकी थी, भाजपा ने सत्ता में आने का अवसर खो दिया था।” गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से लगते मेवाड़ में भील, मीणा, डामोर, गरासिया, कथौड़ी और पटेलिया जनजातियों का बाहुल्य है। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे इस इलाके ने राज्य को तीन मुख्यमंत्री दिए हैं। दिवंगत मोहन लाल सुखाड़िया ने 17 साल तक हुकूमत की तो हरिदेव जोशी तीन बार मुख्यमंत्री बने। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान प्रजा मंडल जैसे संगठनों ने जनजाति समाज को संगठित किया और कांग्रेस नेताओं ने सामंतशाही के विरुद्ध आदिवासी समाज की रहनुमाई की। स्वाधीनता संग्राम के दौरान भोगी लाल पंड्या, माणिक्य लाल वर्मा और गौरी शंकर उपाध्याय जैसे सेनानियों ने आदिवासियों के लिए शिक्षा का काम किया और भील महिलाओं के लिए रात्रि पाठशालाएं भी संचालित कीं। लेकिन, बाद में यह प्रक्रिया थम गई। भाजपा ने इसका फायदा उठाकर पिछले तीन दशक में मेवाड़ में अपना प्रभाव बढ़ा लिया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जब भी रथ पर सवार हुए मेवाड़ से जरूर गुजरे। इसकी शुरुआत राम रथ यात्रा से हुई और बाद में जनादेश यात्रा, भारत सुरक्षा यात्रा और भारत उदय यात्रा भी मेवाड़ से होकर गुजरी।

कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार सरकार विरोधी रुझान के कारण यह इलाका उसके साथ खड़ा होगा। राजसमंद जिला कांग्रेस अध्यक्ष देवकीनंदन गुर्जर ने आउटलुक को बताया, “मेवाड़ में जो जीतता है राज्य में उसकी ही सरकार बनती है। इस बार कांग्रेस के पक्ष में जबरदस्त माहौल है।” हालांकि, जनजाति समाज अभी चुप्पी साधे हुए है। लेकिन गुर्जर का कहना है, “जनजाति समाज जुबान का पक्का होता है, इस बार आदिवासी समाज ने कांग्रेस को समर्थन का वादा किया है।” वैसे वे मानते हैं कि आदिवासियों को गोलबंद करने के लिए प्रजा मंडल की तरह का कोई संगठन अब कांग्रेस के पास नहीं है।

दूसरी ओर, इस इलाके में वनवासी कल्याण परिषद की मजबूत मौजूदगी है। वनवासी कल्याण परिषद का न केवल मेवाड़ बल्कि राज्य के 11 जनजाति बहुल जिलों में व्यापक काम है। इनमें उदयपुर, राजसमंद, चितौड़गढ़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, सिरोही, पाली और बारां शामिल हैं। जनजाति क्षेत्र में परिषद 16 आश्रम छात्रावास, दो सेकेंडरी स्कूल, चार मिडिल स्कूल, 17 प्राथमिक और 108 एकल शिक्षक स्कूल और 179 बाल संस्कार केंद्र का संचालन कर रही है। गुर्जर ने बताया, “परिषद  सेवा के नाम पर राजनीति करती है। असल में वह भाजपा के लिए ही काम करती है।” हालांकि, परिषद के क्षेत्रीय संगठन मंत्री भगवान सहाय का कहना है, “हम सेवा कार्य में लगे हुए हैं। राजनीति से हमारा कोई सरोकार नहीं है।” लेकिन, जानकार भी मानते हैं कि परिषद के काम का लाभ भाजपा को मिलता है। इनके मुताबिक आदिवासियों को लुभाने के लिए भाजपा हिंदुत्ववादी संगठनों तो कांग्रेस एंटी इंकंबेंसी के भरोसे है।

उदयपुर के वरिष्ठ पत्रकार हिम्मत सेठ ने बताया, “सियासी दलों को लगता है आदिवासी भोले-भाले होते हैं और उन्हें प्रभावित करना आसान होगा। इसलिए दोनों दल मेवाड़ में पूरा जोर लगाते हैं।” आदिवासी बहुल डूंगरपुर के पत्रकार नितेश गर्ग का कहना है, “जनजाति क्षेत्र में मनरेगा एक प्रमुख मुद्दा है। मनरेगा का काम ठप्प पड़ने से आदिवासी नाराज हैं। खाद्य सुरक्षा योजना, मुफ्त दवा योजना और पूर्ववर्ती कांग्रेस राज में शुरू की गई अन्य योजनाओं में बदलाव से भी आदिवासियों का मोह भंग हुआ है।”

लेकिन, उदयपुर के भाजपा नेता गुणवंत सिंह झाला का कहना है, “फिजा भाजपा के पक्ष में है।” उनके मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चमक अब भी बनी हुई है जिसका फायदा भाजपा को मिलेगा। भाजपा महाराणा प्रताप को हिंदुत्व से जोड़कर माहौल अपने पक्ष में करने की कोशिश में भी है। वहीं, कांग्रेस बांसवाडा-रतलाम रेल परियोजना का काम अब तक शुरू नहीं होने का मुद्दा उठा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खुद इस मुद्दे पर भाजपा सरकार को घेरते हुए कहा है कि इस परियोजना को किनारे करने से क्षेत्र का बहुत नुकसान हुआ है।

इसके अलावा मेवाड़ के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जो वागड़ कहलाते हैं, में कभी प्रखर समाजवादी नेता मामा बालेश्वर दयाल का जबर्दस्त प्रभाव था। उनके रहते कांग्रेस और भाजपा वागड़ में पैर नहीं जमा पाए। लेकिन, उनकी मौत के बाद उनके कुछ समर्थक भाजपा तो कुछ कांग्रेस में चले गए। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कभी राजाओं का राजतिलक करने वाले मेवाड़ की धनुर्धारी जनजातियां इस बार भाजपा और कांग्रेस में से किसके सिर पर ताज रखती हैं।

तथ्य और आंकड़े

-राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों के लिए सात दिसंबर को वोट डाले जाएंगे और नतीजे चार अन्य राज्यों के साथ 11 दिसंबर को आएंगे।

-आदिवासी बहुल दक्षिणी राजस्थान के मेवाड़ इलाके में छह जिले उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़ और राजसमंद आते हैं।

-इस इलाके में विधानसभा की कुल 28 सीटें हैं। इनमें 16 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित हैं।

-बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ ऐसे जिले हैं, जहां की सारी विधानसभा सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं।

-गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से सटे मेवाड़ में जो पार्टी दबदबा बनाने में सफल रहती है राज्य में उसकी ही सरकार बनती है।

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