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नए विवादों की पेनाल्टी

एशियाड में मौका चूकने से हॉकी टीम वर्ल्डकप के पहले ही पस्त, ओलंपिक में क्वालिफाई की चुनौती बढ़ी
टीम इंडिया की बढ़ी मुश्किलें

तीन गोल्ड, नौ सिल्वर और तीन ब्रॉन्ज यानी कुल 15 पदक। एशियन गेम्स में पदकों के लिहाज से भारतीय हॉकी टीम की सफलता बाकी देशों से काफी बड़ी है। यह सफलता और सुनहरी हो सकती थी, बशर्ते इंडोनेशिया में 18वें एशियन गेम्स में भारतीय हॉकी टीम पिछली बार की तरह इतिहास दोहराते हुए गोल्ड मेडल जीतने में सफल रहती। ग्रुप मैचों के नतीजे और आंकड़े बताते हैं कि भारतीय टीम ने शुरुआती पांच मैचों में कुल 76 गोल दागे। इंडोनेशिया को 17, हांगकांग को 26, जापान को 8-0 से मात दी, तो दक्षिण कोरिया को 5-3 पर रोका। वहीं, श्रीलंका के खिलाफ 20 गोल दागकर अपने मंसूबे जाहिर कर दिए।

विशाल गोल अंतर से जीत दर्ज कर सेमीफाइनल में अपनी जगह पक्की करने वाली भारतीय टीम का मुकाबला यहां मलेशिया से होने वाला था। मलेशिया के खिलाफ मुकाबला 2-2 से बराबरी पर रहने के बाद मैच सडेन डेथ तक पहुंचा। यहीं भारतीय कप्तान पी.आर. श्रीजेश से चूक हुई और टीम के 6-7 से हारने के बाद हॉकी इंडिया में उथल-पुथल का दौर शुरू हो गया।

एक तरफ इस हार से 2020 के टोक्यो ओलंपिक में सीधे प्रवेश का टिकट नहीं मिला, तो दूसरी तरफ हाइ परफॉर्मेंस डायरेक्टर डेविड जॉन ने हार के लिए सीनियर खिलाड़ियों पर ठीकरा फोड़ दिया। टीम के सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में एक सरदार सिंह ने संन्यास की खबर से सबको चौंका दिया। कयास लगाए जाने लगे कि उन पर टीम प्रबंधन की तरफ से दबाव बनाया गया, ताकि किसी को बलि का बकरा बना कर विवाद को शांत किया जाए। हालांकि, सरदार सिंह ने संन्यास के लिए किसी तरह के दबाव की बातों को खारिज किया। लेकिन, उन्होंने इससे इनकार नहीं किया कि उनकी मौजूदा फिटनेस जिस तरह की है, उस हिसाब से वह दो-तीन साल और खेल सकते थे। इस पूरे मामले में पूर्व हॉकी खिलाड़ी और ओलंपियन दिलीप टिर्की ने आउटलुक को बताया कि अगर सीनियर खिलाड़ी फिट हैं और उन्हें लगता है कि दो-तीन साल खेल सकते हैं, तो उन्हें मौका देना चाहिए। तकनीकी तौर पर पूरा मामला क्या है, पता नहीं। लेकिन इतने वरिष्ठ खिलाड़ी को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

मामला यहीं नहीं खत्म होता है। हाइ परफॉर्मेंस डायरेक्टर डेविड जॉन ने अपनी रिपोर्ट में डिफेंसिव एरर, प्रदर्शन में अनियमितता वगैरह को हार का कारण बताया। सीनियर प्लेयर्स उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर सके। यही वजह है कि पी.आर. श्रीजेश, सरदार सिंह, एस.वी. सुनील और रूपिंदर पाल सिंह जैसे सीनियर प्लेयर्स पर गाज गिरी। सरदार सिंह ने संन्यास लिया, तो 18 से 28 अक्टूबर के बीच मस्कट में होने वाली चैंपियंस ट्रॉफी के लिए सुनील और रूपिंदर पाल सिंह को नहीं चुना गया।

कप्तान बदला

श्रीजेश से बेहतर विकल्प नहीं मिल पाने के कारण उन्हें चैंपियंस ट्रॉफी के लिए बरकरार रखा गया है। लेकिन ओडिशा हॉकी वर्ल्डकप के लिए वे कप्तान नहीं रहेंगे और यह जिम्मा मनप्रीत सिंह को सौंप दिया गया है। यहां तक कि चैंपियंस ट्रॉफी में भी मनप्रीत ही टीम की अगुआई करेंगे। इसी साल 28 नवंबर से 16 दिसंबर के बीच ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में हॉकी विश्वकप होना है। ऐसे में ऐन पहले टीम में व्यापक बदलाव से टीम की तैयारियों पर कितना असर पड़ेगा? इस पर 1992 के बार्सिलोना और 1996 के अटलांटा ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का नेतृत्व करने वाले परगट सिंह ने आउटलुक को बताया कि विश्वकप बेहद करीब है। ऐसे में टीम और कप्तानी में इतना बदलाव नहीं करना चाहिए। अगर करते भी हैं, तो खिलाड़ियों को भरोसे में लेकर करना चाहिए। वह कहते हैं, “किसी प्रतियोगिता को लेकर कुछ खिलाड़ियों का नजरिया अलग होता है। फिर भी विश्वकप करीब होने की वजह से मुझे नहीं लगता कि तैयारियों पर उतना असर पड़ेगा।”

हाइ परफॉर्मेंस डायरेक्टर की छुट्टी

एशियम गेम्स के बाद हॉकी में विवादों का सिलसिला थमा भी नहीं था कि हॉकी इंडिया के नए अध्यक्ष मुश्ताक अहमद ने हाइ परफॉर्मेंस डायरेक्टर डेविड जॉन की सेलेक्शन पैनल से छुट्टी कर दी। यानी जॉन विश्वकप के लिए बनी खिलाड़ियों की चयन समिति का हिस्सा नहीं होंगे। इस फैसले के पीछे डेविड जॉन की वह रिपोर्ट है, जिसमें उन्होंने एशियन गेम्स में भारतीय टीम के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कुछ सीनियर खिलाड़ियों को निशाना बनाया था। मुश्ताक अहमद ने हॉकी इंडिया की सीईओ एलेना नॉर्मन को लिखा कि डेविड जॉन सीनियर हॉकी टीम के कुछ खिलाड़ियों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं, ऐसे में उन्हें विश्वकप के लिए चयन संबंधी मामलों से अलग रखा जाए। चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और किसी तरह के पूर्वाग्रह को दूर रखने के मद्दे नजर डेविड जॉन को अंततः विश्वकप के लिए चयन समिति से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

सीनियर खिलाड़ियों के प्रति इस तरह के रवैए के बाद डेविड जॉन की तुलना भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कोच ग्रेग चैपल से की जाने लगी है। चैपल भी सीनियर भारतीय क्रिकेटरों को लेकर एकतरफा रुख अपनाते थे, तो एशियन गेम्स के बाद डेविड जॉन का रुख भी कुछ ऐसा ही नजर आया। दरअसल, डेविड जॉन को हाइ परफॉर्मेंस डायरेक्टर के अलावा भारत में हॉकी के लिए जमीनी स्तर पर कार्यक्रमों के विकास, इन कार्यक्रमों को चलाने वाली अकादमियों की पहचान और भारतीय मूल के कोचों के लिए कोचिंग प्रोग्राम विकसित करने के लिए रखा गया था। अब इन तमाम मुद्दों पर वह कितना काम कर पाए, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एशियन गेम्स के बाद खुद मुख्य कोच हरेंदर सिंह पर भी तलवार लटकने लगी है। इंग्लैंड के खिलाफ 1995 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी में कदम रखने वाले पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ दिलीप टिर्की कहते हैं कि सीनियर खिलाड़ियों को लेकर डेविड जॉन ने जो टिप्पणी की, वह उनकी व्यक्तिगत राय है। लेकिन एशियन गेम्स का सेमीफाइनल मेरे हिसाब से दो-तीन साल में भारतीय टीम का सबसे खराब मैच था। इसी परफॉर्मेंस की वजह से यह बयान दिया गया। फिर भी एक मैच को लेकर इस तरह की प्रतिक्रिया वाजिब नहीं है, क्योंकि खिलाड़ियों को कई दौर से गुजरना पड़ता है। अच्छा खिलाड़ी भी कई बयानों की वजह से दबाव में आ जाता है।

एशियन गेम्स के बाद इन तमाम विवादों के बावजूद एक युवा भारतीय हॉकी टीम मस्कट में चैंपियंस ट्रॉफी में उतर रही है। उसके बाद अगला बड़ा मुकाबला विश्वकप होगा, जहां सबसे बड़ी चुनौती 2020 ओलंपिक में एंट्री के लिए शानदार प्रदर्शन करना होगा। वरना एक चूक फिर हमें 2008 की दहलीज पर ले जाएगा, जब भारत 2006 के एशियन गेम्स के फाइनल में नहीं पहुंच पाने के कारण बीजिंग ओलंपिक में सीधे एंट्री का मौका गंवा बैठा था। फिर क्वालिफाइंग दौर में ब्रिटेन के हाथों 2-0 से हार के कारण आठ बार की ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता टीम ओलंपिक के इतिहास में पहली बार अपनी जगह बनाने में नाकाम रही।

एशियन गेम्स के बाद हालात फिर पहले जैसे हैं, लेकिन मौका विश्वकप में शानदार प्रदर्शन का भी है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में जो घटनाक्रम हुए, उससे दबाव भी बरकरार है।

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