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बोल उठे लब, अब और नहीं

बॉलीवुड, कॉमेडी और सबसे भयावह मीडिया...इंडस्ट्री-दर-इंडस्ट्री थर्रा उठी, मीटू के बहादुराना बोल तेज हुए तो दबी-सिमटी हया की हदें टूटीं, अब वक्त है कि हर कामकाजी क्षेत्र वासना के भूखे दरिंदों से निजात पाए
मीटू से कठघरे में नामचीन

हाहाकार जैसे चौतरफा चक्रवात की तरह उमड़ा। संस्कारी किरदारों के सहारे नाम कमाने वाले ऐक्टर पर ऐसे आरोप कि दुर्नाम भी शर्मा जाए। बॉलीवुड में स्‍त्री शक्ति का परचम लहराकर मशहूर हुए फिल्मकार पर बेलज्जत वासना और डराने-धमकाने की तोहमत। हरियाणा के “रेप कल्चर” को उजागर कर नाम-धाम कमाने वाले पत्रकार के महिलाओं को तंग करने, डराने-धमकाने के किस्से। अंतरंग पेशकश से महिला को हैरान करने वाला बेस्टसेलर किताबों का लेखक। पत्रकारिता में नया मुकाम जोड़ने वाले पूर्व संपादक और अब केंद्रीय मंत्री पर महिला पत्रकारों के यौन शोषण के आरोपों की बारिश....

सिलसिला टूटता नहीं दिखता। कथित तौर पर वासना के भूखे नामचीन लोगों में पूर्व पत्रकार और केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री एम.जे. अकबर, अभिनेता नाना पाटेकर और आलोकनाथ, लेखक चेतन भगत और किरण नागरकर, फिल्मकार विकास बहल, पूर्व संपादक गौतम अधिकारी, पत्रकार के.आर. श्रीनिवास और मेघनाद बोस तथा कॉमेडियन तन्यम भट्ट शुमार हैं। आरोप मढ़ने वाली कुछ जानी-मानी हैं, जबकि कुछ ने नाम और चेहरे गुमनाम रखे हैं। ज्यादातर मामलों में वॉट्सऐप चैट के स्क्रीनशॉट पेश किए गए हैं जबकि कुछ में सिर्फ बयान ही हैं।

यह भारत का #मीटू (यानी ‘मैं भी उत्पीडि़त’ के परचम तले अपने ताकतवर शोषक के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हिम्मत) आंदोलन है जो उस समाज को करवट बदलने पर मजबूर कर सकता है, जहां पितृसत्ता और स्‍त्री-द्वेष की जकड़न इतनी मजबूत है कि महिलाओं की सामाजिक हैसियत निचले पायदान से उठती नहीं और चुपचाप शोषण सहने को मजबूर रहती हैं। यकीनन #मीटू के इजहार का यह सबसे मौजूं वक्त हो सकता है। लेकिन, खतरा भी बदस्तूर है कि कहीं यह उम्मीदों और विरोधाभासों के बोझ तले दब न जाए, क्योंकि ट्विटर और फेसबुक पर सच तथा कथित झूठे आरोपों के बीच मुठभेड़ चलती ही रहती है।

खैर, नतीजे जो भी हों, ऐसा लगता है कि यौन उत्पीड़न और पुरुषों की दरिंदगी के खिलाफ सामूहिक आवाज उठाने और पीड़ा साझा करने का मंच शहरी भारतीय महिलाओं को मिल गया है। इनमें कुछ तो ताकतवरों के यौन उत्पीड़न, तंग करने और डराने-धमकाने की वर्षों पुरानी गाथाएं हैं। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने आउटलुक को बताया, “यह सामाजिक आंदोलन की शक्ल ले रहा है और सब कुछ खुलकर कहा जा रहा है...पूरी प्रचलित सोच को अस्वीकार्य बताया जा रहा है। मुझे यह इस आंदोलन की बड़ी उपलब्धि दिखती है।”

महिलाओं की इस मुहिम से जिन क्षेत्रों की साख को सबसे ज्यादा बट्टा लगा है, उनमें देश का मीडिया भी है। आरोपों की कालिख तले सबसे बड़ा नाम जाने-माने पत्रकार और मौजूदा केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री एम.जे. अकबर का है। इस संबंध में पत्रकारों के सवालों को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भले टाल दिया हो, लेकिन खुद के साथ हुई घटनाओं का जिक्र करने वाली महिलाओं के तेवर सख्त हैं। पत्रकार प्रिया रमानी ने सबसे पहले अकबर का नाम लिया। फिर लेखिका प्रेरणा सिंह बिंद्रा ने आरोप लगाया कि अकबर ने रात के समय होटल के अपने कमरे में उन्हें ‘कामकाज पर बात’ के लिए बुलाया था। उन्होंने नौ अक्टूबर को ट्वीट किया, “मैं पूरी गंभीरता से कह रही हूं। झूठे आरोपों के नतीजों से मैं परिचित हूं। इस घटना को 17 साल हो चुके हैं और मेरे पास कोई ठोस साक्ष्य नहीं है।” उन्होंने बताया कि उनके इनकार के बाद चीजें कैसे “बदतर” होती गईं और अकबर ने “एक बार मीटिंग के दौरान अश्लील टिप्पणी की”। इसके बाद कई और महिलाएं आपबीती के साथ सामने आईं। इनमें एक अकबर की पूर्व सहयोगी गजाला वहाब भी हैं। गजाला ने अपनी पीड़ा विस्तार से बताई है।

एक के बाद एक जब आरोप लग रहे थे अकबर विदेश में थे। देश लौटते ही उन्होंने इन आरोपों को झूठा बताया। उन्होंने प्रिया रमानी पर मानहानि का केस भी किया है। अकबर का नाम सामने आने से पहले भी कई अन्य पत्रकारों पर आरोप लग चुके थे। कुछेक लोगों के खिलाफ तो कई महिलाओं ने आरोप लगाए। इससे मीडिया की एकदम बंद दुनिया में गहरे तक धंसे शोषण और स्‍त्री-द्वेष की संस्कृति से परदा हट गया है।

बिजनेस स्टैंडर्ड के मयंक जैन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली वायर वेबसाइट की पत्रकार अनु भुयन ने बताया कि कई बार लोग कई तरह की आशंकाओं के कारण सार्वजनिक तौर पर नहीं बोलते। “अपराधी से सहानुभूति और पीडि़त से बैर रखने वाली व्यवस्था में” शोषण को प्रमाणित करने का दायित्व पूरी तरह पीडि़त पर होता है। भुयन ने ट्वीट किया, “#मीटू क्योंकि मैं काफी समय तक सोचती रही कि क्या मैं उस तरह की हूं जिसके कारण यह आदमी इस तरह मेरे साथ पेश आया...और मुझे अपने साथ...के लिए कहा।” इसके बाद जैन ने अपने संस्थान से इस्तीफा दे दिया और ट्वीट कर माफी भी मांगी।  ‘हाउ द बीजेपी विंस: इनसाइड इंडियाज ग्रेटेस्ट इलेक्शन मशीन’ के लेखक प्रशांत झा को हिंदुस्तान टाइम्स के राजनैतिक संपादक का पद छोड़ना पड़ा। उन पर एक पूर्व सहयोगी ने शोषण का आरोप लगाया था। इसी अखबार के ध्रुवज्योति पुरकायत, जो एलजीबीटी अधिकार कार्यकर्ता भी हैं, पर भी आरोप लगे हैं। पत्रकार मनोज रामचंद्रन पर एक महिला ने 2005 में अश्लील संदेश भेजने का आरोप लगाया। हालांकि उन्होंने संदेश भेजने के अगले दिन ही माफी मांग ली थी। पत्रकार सागरिका घोष ने ट्वीट करके “वामपंथी और खोजी पत्रकारिता के एक स्तंभ” को “अजीब ऐयाश” बताया। सोशल मीडिया में कई लोग कयास लगा रहे हैं कि आउटलुक के संस्थापक-संपादक दिवंगत विनोद मेहता के लिए यह बात कही गई है। हालांकि पिछले साल एक साक्षात्कार में सागरिका ने मेहता को “सर्वश्रेष्ठ बॉस” बताया था।

हरियाणा दुष्कर्म की रिपोर्ट से नाम कमाने वाले क्विंट के मेघनाद बोस पर भी कई महिलाओं ने आरोप लगाए हैं। पत्रकार दिव्या कार्तिकेयन ने एक गुमनाम ट्वीट का स्क्रीनशॉट पोस्ट किया, जिसमें बोस पर शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया गया था। स्क्रीनशॉट में लिखा था, “उसने मेरे होठ छुए और अपनी उंगली मेरे मुंह में डाल दी।” अन्य महिलाओं ने भी बोस पर इसी तरह के आरोप लगाए हैं। बोस ने बयान जारी कर कहा है, “मैं शर्मिदा हूं और माफी मांग रहा हूं”, जबकि आउटलुक के प्रश्नों के जवाब में भेजे गए ईमेल में क्विंट ने कहा है, “पीओएसएच एक्ट 2013 के प्रावधानों के अनुसार आंतरिक समिति बना दी गई है। जांच पूरी होने तक बोस को ‘छुट्टी’ पर भेज दिया गया है।”

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट की बढ़ती संख्या भी बताती है कि देश में महिलाएं अब ज्यादा मुखर हो रही हैं। महिला और बाल विकास मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 तक देश भर में इस तरह के मामलों की संख्या 520-570 के बीच थी। लेकिन, इस साल जुलाई के अंत तक ही ऐसे 533 मामले दर्ज हो चुके थे। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने #मीटू मामलों से निपटने के लिए रिटायर्ड जजों की कमेटी गठित करने की बात कही है। यह कमेटी यौन शोषण के मामलों की तहकीकात कर आगे का रास्ता सरकार को सुझाएगी। यौन उत्पीड़न के कई रूपों को शामिल कर देश में दुष्कर्म कानून के दायरे को विस्तार दिया गया है, लेकिन सोशल मीडिया ट्रायल ने अस्पष्ट क्षेत्रों को सामने ला दिया है। हालांकि, अधिकांश संस्थानों का दावा है कि यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए उनके पास मजबूत तंत्र है।

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले देश में पहले भी सामने आ चुके हैं। लेकिन, वे ताकतवर पुरुषों के खिलाफ उठने वाली इक्का-दुक्का आवाजें ही थीं। मसलन, टेरी के पूर्व प्रमुख आरके पचौरी पर 2015 में एक पूर्व सहकर्मी ने मामला दर्ज कराया था। बीते साल कानून की छात्रा राया सरकार ने अकादमिक संस्थानों में कथित तौर पर यौन उत्पीड़न करने वालों की एक सूची सार्वजनिक की थी। इस सूची में 29 शैक्षणिक संस्थानों के 60 से अधिक नाम थे। इसने नैतिकता पर देशव्यापी बहस की शुरुआत की, लेकिन कुछ महीने में ही लोग सूची और आरोपी दोनों को भूल गए।

मौजूदा लपटें भी एक दशक पुरानी घटना से ही शुरू हुई हैं। पूर्व ब्यूटी क्वीन और अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने सह-अभिनेता नाना पाटेकर पर 2008 में फिल्म हॉर्न ओके प्लीज के सेट पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए सिने और टीवी आर्टिस्ट्स एसोसिएशन में शिकायत दर्ज कराई थी। एसोसिएशन ने शिकायत पर कुछ भी नहीं किया और दुखी दत्ता ने कुछ दिन बाद बॉलीवुड छोड़ दिया। बीते 25 सितंबर को एक टीवी साक्षात्कार में उन्होंने अपने आरोप दोहराए। यह अलग दौर था, जिसमें सोशल मीडिया चीजों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था। इसलिए, दत्ता की कहानी वायरल हो गई। और फिर एक-एक कर महिलाएं अपनी व्यथा के साथ आगे आने लगीं। अब #मीटू केवल एक हैशटैग नहीं रहा था, क्रांति बनने की दिशा में बढ़ रहा था जिसकी चपेट में आकर बड़े नाम नैतिकता के धरातल पर धराशायी हो रहे थे। ऐसे ही लोगों में अभिनेता आलोकनाथ भी हैं, जिन्होंने पर्दे पर भारतीय संस्कारों से ओत-प्रोत किरदार निभाकर मुकाम बनाया है। कम से कम दो महिलाओं ने उनपर जबर्दस्ती का आरोप लगाया है, जिससे आलोकनाथ ने इनकार किया है। सबसे पहले आरोप लगाने वाली विंता नंदा के खिलाफ उन्होंने मानहानि का मामला भी दर्ज कराया है।  वहीं, अभिनेता रजत कपूर ने यौन शोषण के आरोपों के बाद सार्वजनिक तौर पर माफी मांग ली।

उठते बवंडर के बीच बॉलीवुड की प्रतिक्रिया आरोपों को खारिज करने जैसी है। तनुश्री दत्ता के समर्थन में कुछ अभिनेत्री खड़ी हुईं, लेकिन ज्यादातर ने रहस्यमय चुप्पी साध ली। मूक ब्रिगेड में सबसे बड़ा नाम अमिताभ बच्चन का है, जिन्होंने 2016 में आई फिल्म पिंक में वकील के किरदार से देश को झकझोर दिया था और अदालत में बहस करते हुए कहा कि एक महिला के “नहीं का मतलब नहीं” होता है। इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि जिन पर आरोप लगे हैं उनमें से कई ने अपना कॅरिअर आदर्शों की बात कर बनाया है। कंगना रनौत अभिनीत क्वीन के निर्देशक विकास बहल पर यौन शोषण का आरोप फैंटम फिल्म की एक क्रू मेंबर ने लगाया है। यह घटना 2015 में हुई थी, लेकिन अनुराग कश्यप और फैंटम ने आरोप सार्वजनिक होने के बाद खेद जताया। फिल्म उद्योग के अंदर की खबर रखने वाले बताते हैं कि इस घटना के बारे में सबको पहले से पता था।

स्टैंडअप कॉमेडी के क्षेत्र को भी यौन दुर्व्यवहार के आरोपों ने भीतर झांकने को मजबूर कर दिया है। सबसे पहले लपेटे में आए लेखक और कॉमेडियन उत्सव चक्रवर्ती। लेखिका महिमा कुकरेजा ने चार अक्टूबर को ट्वीट कर एआइबी और हाफपोस्ट के अपने इस पूर्व साथी पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए। उन्होंने लिखा, “मैं चाहती हूं कि हर कोई यह जाने कि उत्सव चकवर्ती कितना नीच है। उसने मुझे नग्न तस्वीरें भेजी। फिर रोते हुए कहने लगा कि यदि यह बात मैंने किसी को बताई तो उसका कॅरिअर बर्बाद हो जाएगा। भारतीय कॉमेडी के दो सबसे प्रभावशाली लोगों को मैंने इसके बारे में बताया। कुछ भी नहीं हुआ...।” इसके बाद कई लोगों ने और गुमनाम अकाउंट से भी चक्रवर्ती के खिलाफ इसी तरह के आरोप लगे। बाद में उसने माफी मांग ली। चक्रवर्ती ने बताया कि वह इस पर “फिलहाल बात नहीं करेंगे” और इससे “सब कुछ खत्म हो गया है”।

इस मसले पर बेमन से प्रतिक्रिया देने वाली एआइबी तब हरकत में आई जब उसके सह-संस्थापक तन्मय भट्ट और गुरसिमरन खंबा पर भी यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगे। देश की शुरुआती महिला स्टैंडअप कलाकारों में से एक अदिति मित्तल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाकर कॉमेडियन कनीज सुरका ने हास्य की दुनिया को एक और झटका दिया। सुरका ने ट्वीट किया, “अदिति मित्तल स्टेज पर आईं और जबरन मेरे होठों को चूमा और अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी...सार्वजनिक माफी...मामला समाप्त हो जाएगा।”

लेखक चेतन भगत और किरण नागरकर भी आरोपों से बच नहीं पाए। संध्या मेनन ने गुमनाम अकाउंट का ट्वीट शेयर किया जिसमें नागरकर पर एक महिला ने अपनी ब्रा की पट्टी खींचने के आरोप लगाए थे। बाद में कंटेंट राइटर पूर्वा जोशी और पत्रकार शिल्पी गुहा ने इसी तरह के आरोप उनपर लगाए। हालांकि एक टीवी इंटरव्यू में नागरकर ने इससे इनकार किया। चेतन भगत पर एक महिला पत्रकार ने बिना नाम लिए आरोप लगाया और सोशल मीडिया में वाट्‍सऐप पर हुई बातचीत का स्क्रीनशॉट साझा कर दिया। लेखक ने आरोप लगाने वाले के साथ-साथ अपनी पत्नी से भी माफी मांगी और कहा कि “इस घटना के बाद नंबर डिलीट कर दिया था” और वे “वर्षों से संपर्क में नहीं हैं”।

कुछ लोगों ने अपना दोष कबूल कर लिया है, मगर कुछ पूरी तरह से इनकार कर रहे हैं। ऐसे लोग “कुछ याद नहीं होने” का दावा करते हैं। कई पत्रकारों द्वारा यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाने के बाद डीएनए के पूर्व एडिटर इन चीफ गौतम अधिकारी ने कहा कि किसी भी सहयोगी के साथ “इस तरह की गलती उन्हें याद नहीं आ रही”। टाइम्स ऑफ इंडिया के हैदराबाद संस्करण के रेजीडेंट एडिटर के.आर. श्रीनिवास पर आरोप लगाने वाली संध्या मेनन ने गौतम अधिकारी पर भी आरोप लगाए हैं। श्रीनिवास के साथ अपनी मुलाकात का जिक्र करते हुए मेनन ने ट्वीट कर बताया कि कैसे संपादक ने “उनकी जांघ पर हाथ फेरा”। पांच अक्टूबर को एक बयान में श्रीनिवास ने बताया कि संस्थान की यौन उत्पीड़न रोकथाम समिति ने इसकी जांच शुरू कर दी है और वे इसमें पूरा सहयोग देंगे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने आउटलुक को भेजे ई-मेल में कहा है, “हमारे यहां पीओएसएच नीतियां सख्ती से लागू हैं और यौन उत्पीड़न की कोई घटना बर्दाश्त नहीं की जाती।”

भारत में #मीटू आंदोलन विभिन्न प्लेटफार्मों से रफ्तार पकड़ रहा है, इसलिए कुछ संदेह भी हैं, खासतौर पर यौन उत्पीड़न को लेकर। नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया, “एकाध मामलों में मैं यकीनी तौर पर कह सकती हूं कि उसे यौन उत्पीड़न नहीं कहा जाना चाहिए। उन्होंने जो किया मैं उसका बचाव नहीं कर रही, लेकिन उनकी करतूतों को नैतिकता की कसौटी पर परखा जाना चाहिए न कि उत्पीड़न की तरह।” एंकर-स्तंभकार निधि राजदान का कहना है,“ मैं इस तरह के व्यवहार का बचाव नहीं कर रही। लेकिन, डेट असफल रहने या रिश्ता कामयाब नहीं होने पर आप उसे यौन उत्पीड़न तो नहीं कह सकते।”

कई लोगों का मानना है कि कार्यस्थल और अन्य जगहों पर महिलाओं के बीच सुरक्षा का भाव पैदा करने में देश की विफलता के कारण यह आंदोलन तेज हो रहा है। वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन कहती हैं, “कोई फर्क नहीं पड़ता कि शिकायतें कहां की जाती हैं, उन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत है।” संध्या मेनन के लिए, यह आंदोलन उन बदलावों को लाने का अवसर है जहां कानून अक्सर विफल रहता है। वह कहती हैं, “एक या तीन महिलाओं के आवाज उठाने से जरूरी नहीं ऐसे लोग बदल जाएं। लेकिन, जब 25 महिलाएं साथ आवाज उठाएंगी तो शायद वे ऐसा करने से पहले दो बार सोचेंगे।” आखिरकार, सबसे ताकतवर आरोपी अमेरिकी निर्माता हार्वे वेंस्टीन को कठघरे में खड़ा करने के लिए करीब 100 प्रमुख महिलाओं को सामने आना पड़ा था। यह दौर शुरू हुआ अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद। ट्रंप ने जैसी उद्दंड बयानबाजी की, उसने महिलाओं को मुंह खोलने पर मजबूर किया। एक बार फिर ट्रंप ने अपने उम्मीदवार ब्रेट केवेनॉग को सुप्रीम कोर्ट में स्थापित करने में कामयाबी पा ली तो #मीटू नए सिरे से जोर पकड़ रहा।

जाहिर है, हॉलीवुड से बॉलीवुड और उससे भी आगे #मीटू के सिलसिले का बढ़ना पूरी नव-उदारवादी सोच को कठघरे में खड़ा कर रहा है।

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