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सीधी लड़ाई में गठबंधन का पेच

भाजपा और कांग्रेस के बीच इस बार भी कांटे की लड़ाई, लेकिन जोगी कांग्रेस-बसपा गठबंधन का प्रदर्शन तय करेगा अगली सरकार किसकी
विकास यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री रमन सिंह

पहले के विधानसभा चुनावों की तरह इस बार भी छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है। लेकिन, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी), बसपा और सीपीआइ के बीच गठबंधन ने कुछ सीटों पर लड़ाई त्रिकोणीय बना दी है। इसलिए, अंतिम नतीजे इस बात पर निर्भर करेंगे कि यह गठबंधन भाजपा या कांग्रेस में से किसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। वैसे, इस गठबंधन में दोनों प्रमुख दलों का खेल बिगाड़ने का दमखम है। इस गठबंधन के कारण इस बार भी 2003 के विधानसभा चुनाव के जैसे ही हालात दिख रहे हैं। उस समय कांग्रेस से अलग होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के बैनर तले प्रत्याशी उतारे थे। राकांपा का एक ही प्रत्याशी चुनाव जीत पाया, लेकिन सात फीसदी वोट झटक कर उसने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया था। लेकिन, इस बार किसे नुकसान होगा, इसको लेकर यकीनी तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। यही कारण है कि बिलासपुर में गठबंधन की पहली रैली में उमड़ी भीड़ ने भाजपा और कांग्रेस दोनों की चिंताएं बढ़ा दीं। उन्हें नए सिरे से रणनीति बनाने को मजबूर कर दिया है।

हालांकि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पी.एल. पुनिया ने आउटलुक को बताया, “इस बार राज्य की सत्ता में लौटने का हमें पूरा यकीन है। जोगी कांग्रेस और बसपा के गठबंधन से कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं होगा।” दूसरी ओर, लगतार चौथी बार जीत हासिल करने के लिए भाजपा हर दांव आजमा रही है। प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामदयाल उइके का भाजपा में प्रवेश इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। उइके का भाजपा में जाना चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए बड़ा झटका बताया जा रहा है।

पाली-तानाखार के विधायक उइके 1998 में मरवाही से भाजपा के टिकट पर जीते थे। लेकिन, 2000 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के लिए अपनी सीट खाली कर वे कांग्रेस में शामिल हो गए। उसके बाद से मरवाही पर कांग्रेस काबिज रही है। उइके 2003 से पाली-तानाखार सीट से चुनाव जीतते रहे हैं। करीब दो साल पहले जब कांग्रेस से अलग होकर जोगी ने अपनी पार्टी बना ली तो कांग्रेस नेतृत्व ने जोगी समर्थकों को साधने की रणनीति बनाई। इसके तहत उइके को आदिवासी कोटे से प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। बताया जा रहा है कि उइके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल की कार्यशैली से खफा चल रहे थे।

राज्य में विधानसभा की 90 सीटें हैं और दो चरणों में 12 और 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। दो चरणों में चुनाव का फैसला भी भाजपा के लिए रणनीतिक जीत मानी जा रही है, क्योंकि 2013 के विधानसभा चुनाव के अनुभव को देखते हुए कांग्रेस एक ही चरण में चुनाव चाहती थी। पिछले चुनाव में पहले चरण में आदिवासी इलाके बस्तर और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के गृह जिले राजनांदगांव क्षेत्र में कांग्रेस को अच्छी-खासी बढ़त मिली थी। लेकिन, मतदान का दूसरा दौर आते-आते भाजपा डैमेज कंट्रोल में कामयाब हो गई थी। इस बार भी बस्तर में पहले चरण में चुनाव होना है। पहले कहा जाता था कि बस्तर फतह करने वाली पार्टी राज्य की सत्ता पर काबिज होती है। लेकिन, यह धारणा 2013 के चुनाव में टूट गई जब कांग्रेस इस इलाके की 12 में से आठ सीटों पर जीतकर भी भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब नहीं हो पाई। मैदानी इलाकों में शानदार प्रदर्शन के बलबूते भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही थी।

अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं जो मैदानी इलाकों में ही हैं। इनमें से नौ अभी भाजपा के पास हैं। इसके अलावा दस और सीटों पर इस वर्ग के मतदाता प्रभावी हैं। अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 18 कांग्रेस और 11 भाजपा के पास हैं। एससी सीटों पर पिछली बार सतनाम सेना ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया था। कहा जाता है कि भाजपा ने रणनीतिक तौर पर सतनाम सेना के प्रमुख बालदास की मदद की, जिसका अहसान उन्होंने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाकर चुकाया। इस बार इन सीटों पर जोगी कांग्रेस-बसपा गठबंधन खेल बना-बिगाड़ सकता है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की एससी खासकर सतनामी वोट बैंक पर मजबूत पकड़ मानी जाती है। पिछली बार बसपा को भले एक ही सीट पर कामयाबी मिली थी और उसका वोट शेयर छह से घटकर चार फीसदी पर आ गया था, फिर भी एससी वर्ग पर उसकी पकड़ बनी हुई है।

पुनिया ने आउटलुक को बताया, “जोगी कांग्रेस-बसपा गठबंधन का ज्यादा प्रभाव नहीं है। एससी सीटों पर इस गठबंधन को जो वोट मिलेंगे उससे नुकसान भाजपा को होगा, क्योंकि पिछली बार ऐसी ज्यादातर सीटों पर भाजपा को सफलता मिली थी।” जोगी कांग्रेस ने 55 और बसपा ने 35 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। सीपीआइ के बाद गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और सपा को भी साथ लाने की कोशिश जोगी कर रहे हैं। ऐसा हुअा तो जोगी कांग्रेस और बसपा दोनों को नए साझेदारों के लिए कुछ सीटें छोड़नी पड़ेंगी।

भाजपा के लिए चिंता की बात यह भी  है कि  चुनाव दर चुनाव उसके और कांग्रेस के बीच वोटों का फासला कम होता जा रहा है। 2013 के चुनाव में तो दोनों के बीच वोटों का फासला एक फीसदी से भी कम था। पिछले तीन चुनावों में वोट बढ़ने के बावजूद भाजपा सीटें बढ़ाने में नाकाम रही है। बीते चुनाव में 49 सीटें हासिल करने वाली भाजपा ने इस बार 65 सीटों का टारगेट तय कर रखा है। इसे  पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह राज्य भर का दौरा कर रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक का कहना है कि जनसंपर्क और यात्राओं की बदौलत पार्टी सरकार विरोधी लहर को बेअसर साबित करने में कामयाब रहेगी।

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