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पाताल प्रकृति कला

मेघालय की अनूठी गुफाओं में कई रहस्य ठहरे हुए हैं और इनमें कैद है पृथ्वी के अतीत की झलक
गहराई मेंः क्रेम मॉपन की गुफा का नजारा

धरती के गर्भ में बहते झरने की जल धारा में मोबाइल की सफेद रोशनी पड़ते ही दीवाल पर छायाएं झिलमिलाने लगती हैं। दरारों के बीच चमगादड़ झूलते हुए अपने बड़े-बड़े पंख फड़फड़ाते हैं। कंदरा के संकरे गलियारे में उनकी तेज कर्कश आवाज और तेज लगती है। आप सहारे के लिए एकतरफ दीवाल पर हाथ टेकते हैं तो सहसा आपकी बांह पर कुछ रेंगने लगता है और आपका दिल धौंकनी की तरह धड़कने लगता है। गुफाएं डरावनी हो सकती हैं बल्कि खतरनाक भी हो सकती हैं। लेकिन यहां अद्वितीय सौंदर्य, साक्षात पाताल स्वर्ग के दर्शन भी हो सकते हैं, जहां कला और विज्ञान के अनोखे संगम से आश्चर्यजनक छवियां और संरचनाएं आपको मंत्रमुग्‍ध कर सकती हैं। किसी फोटोग्राफर के लिए तो यह बेमिसाल मंजर है तो वैज्ञानिकों के लिए साक्षात प्रयोगशाला। क्रेम मॉम्लुह नाम की ये गुफाएं मेघालय में मौजूद हैं। 2003 में फरवरी की एक बेहद ठंडी दोपहर को इन गुफाओं में प्रसिद्ध गुफा विज्ञानी डरमोट खरप्रान डेली और कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के पेलिकोक्लिमोटोलॉजिस्ट (पुरा अवशेष विज्ञानी) आशीष सिन्हा उतरे। कई घंटों बाद जब वे गुफा से निकले तो उनके हाथ में स्टेलाग्माइट का एक टुकड़ा था, जिससे एक दिन पृथ्वी के विकास पर नई रोशनी पड़ेगी और इसी वजह से पूर्वोत्तर के इस राज्य को एक अनोखी पहचान मिल गई है। मेघालयन अब ऐसा पद है जो एक भू-वैज्ञानिक काल का नया द्योतक है। इसे इसी साल जुलाई में भू-वैज्ञानिक काल की गणना करने वाले इंटरनेशनल कमीशन ऑन स्ट्रेटीग्राफी (आइसीएस) से मान्यता मिली है।

भू-वैज्ञानिक काल का पैमाना बहुत बृहद और जटिल है लेकिन मूल रूप से यह पृथ्वी के 4.6 अरब साल के इतिहास को विभिन्न चरणों में बांटने के बारे में है, जो धरती में हुए महत्वपूर्ण परिवर्तनों के द्योतक हैं। जैसे, धरती पर नए जीवन का उद्भव या सभ्यताओं का पतन वगैरह। इसमें सबसे लंबा चरण ईऑन (आदिम काल या कल्प) है, फिर एरा (युग), अवधि, संवत और सबसे छोटा काल है। होलोसिन युग में प्रारंभिक काल मेघालयन 4,200 वर्ष पहले शुरू हुआ था, जब एक महा सूखे की वजह से सिंधु घाटी, मिस्र, यूनान और मेसोपोटामिया समेत कई सभ्यताएं नष्ट हो गई थीं।

क्रेम मॉम्लुह से मिले स्टेलाग्माइट के टुकड़े से कई महत्वपूर्ण संकेत मिले लेकिन सिन्हा को कतई एहसास नहीं था कि उनका यह अध्ययन मील का पत्‍थर बन जाएगा। आउटलुक से ईमेल पर भेजी गई प्रश्नावली के जवाब में 51 वर्षीय सिन्हा ने कहा, “मैं खुश भी हूं और चकित भी। खुश इसलिए कि हमारे अध्ययन से मेघालय को विश्व मानचित्र पर एक अलग पहचान मिली। चकित! क्‍योंकि मुझे उम्मीद नहीं थी कि आइएससी हमारे अध्ययन को तवज्जो देगा क्योंकि और भी अनेक अध्ययन थे जो हम से बेहतर भले न हों पर उतने ही अच्छे थे।”

यह 72 वर्षीय डेली के लिए अपने गृह राज्य मेघालय में गुफाओं को खोजने और उन्हें पहचान दिलाने के मिशन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है। शिलांग में अपने दफ्तर में उन्होंने आउटलुक से कहा, “इन अनूठी गुफाओं के संरक्षण पर जोर दे रहा हूं मैं। उम्मीद है कि मेघालयन युग से सरकार और लोगों को गुफाओं की महत्ता का एहसास होगा, यह समझ में आएगा कि ये गुफाएं कितनी महत्वपूर्ण हैं...इससे मैं जो बोझ अपने कंधे पर ढो रहा था, वह कुछ हल्का हुआ है।” 

मेघालय एडवेंचर्स एसोसिएशन के संस्थापक डेली और उनकी टीम ने 1990 के शुरुआती दशक में 1700 से ज्यादा गुफाओं की खोज की है। वे कहते हैं, “उनमें से करीब 1000 गुफाएं हम नक्शे पर ले आए हैं।” इनमें विश्व की सबसे लंबी 24.5 किलोमीटर की बलुआ पत्थर से बनी क्रेम पुरी की ‘फेयरी केव’ भी हैं। लंबाई के हिसाब से यह माउंट एवरेस्ट से तीन गुना लंबी होगी। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम जब इस गुफा में गई तो उन्होंने पाया कि यहां वनस्पति और जीव बहुतायत में हैं। यहां तक कि यहां डायनासोर के अवशेष के साथ 6.6-7.6 करोड़ वर्ष पहले पाए जाने वाले जलीय सरीसृप मोससॉरस के अवशेष भी हैं।

मेरठ, उत्तर प्रदेश में जन्मे सिन्हा कहते हैं, “गुफाओं का संरक्षण भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना प्राकृतिक जंगलों या ऐतिहासिक इमारतों का। गुफाओं की पारिस्थितिकी और उनमें रहने वाली प्रजातियों के बारे में बहुत कुछ है जो हम नहीं जानते।” डेली कहते हैं, बलुआ पत्थर का खनन मेघालय की गुफाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

उम्मीद है कि सरकार उनको नष्ट होने से रोकने के लिए कदम उठाएगी। वे कहते हैं, “हम फरवरी में फिर से क्रेम पुरी जा रहे हैं। क्या पता हम और अंदर खोज निकालें। यही तो गुफाओं की सुंदरता है। वे अपने रहस्य आसानी से नहीं सौंपतीं।”

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